शनिवार, 3 दिसंबर 2011

वक्‍त की बात ...











तुम तक पहुंचने के लिए
मुझे बस
कुछ कदमों का
फासला तय करना था
लेकिन कभी
वक्‍त ने साथ नहीं दिया
कभी दिल न इजाजत नहीं दी ...
........................
मैने हालातों को
वक्‍त के हवाले कर दिया है
इसलिए जो है जैसा है
उसे वैसे ही रहने दो
हर घाव भर जाएगा
वक्‍त के मरहम से ....
........................
कठपुतलियों का खेल अब
गुजरे वक्‍त की बात हो गया
पर फिर भी लोग जाने क्‍यूं
कभी किसी के हाथ
सौंप देते हैं खुद को
या किसी को
बना लेते हैं अपने हाथों
की कठपुतली ....

41 टिप्‍पणियां:

  1. sundar kavitaa

    ye waqt kee baat hee to hai
    jinhein kabhee dekhaa nahee
    kabhee milaa nahee
    jaanne lagaa
    naye ahsaas se jeene lagaa

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  2. कठपुतलियों का खेल अब
    गुजरे वक्‍त की बात हो गया
    पर फिर भी लोग जाने क्‍यूं
    कभी किसी के हाथ
    सौंप देते हैं खुद को
    या किसी को
    बना लेते हैं अपने हाथों
    की कठपुतली ....

    Bahut sundar...
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  3. बिल्कुल सही बात कही …………पता नही क्यो हम हमेशा दूसरे पर ही निर्भर करने लगते हैं…………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  4. कठपुतलियों का खेल अब
    गुजरे वक्‍त की बात हो गया
    पर फिर भी लोग जाने क्‍यूं
    कभी किसी के हाथ
    सौंप देते हैं खुद को
    या किसी को
    बना लेते हैं अपने हाथों
    की कठपुतली ....waah

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  5. क्षणिकाओं का ज़वाब नहीं !
    एक से बढ़कर एक !

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  6. समर्पण का आनन्द विश्वास में आता है।

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  7. बहुत सुंदर कविता बधाई....
    नई पोस्ट में स्वागत है

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  8. कठपुतलियों का खेल अब
    गुजरे वक्‍त की बात हो गया
    पर फिर भी लोग जाने क्‍यूं
    कभी किसी के हाथ
    सौंप देते हैं खुद को
    या किसी को
    बना लेते हैं अपने हाथों
    की कठपुतली ....

    बहुत अच्छा प्रश्न उठाया है आपने।

    सादर

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  9. कठपुतलियों के सहारे गहरा चिंतन....
    सुंदर अभिव्यक्ति....
    सादर बधाई...

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  10. सदा,

    मैं आपकी इन पंक्तियों के बारे में सोच रहा हूँ ..

    मैने हालातों को
    वक्‍त के हवाले कर दिया है
    इसलिए जो है जैसा है
    उसे वैसे ही रहने दो
    हर घाव भर जाएगा
    वक्‍त के मरहम से ....

    क्या ऐसा होता है सच में ?
    बाकी तो पूरी कविता मन को छूती हुई गुजरती है ..


    विजय

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  11. तुम तक पहुंचने के लिए
    मुझे बस
    कुछ कदमों का
    फासला तय करना था
    लेकिन कभी
    वक्‍त ने साथ नहीं दिया
    कभी दिल न इजाजत नहीं दी ..

    ....बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  12. इसलिए जो है जैसा है
    उसे वैसे ही रहने दो
    हर घाव भर जाएगा
    वक्‍त के मरहम से ....

    वाह...बेजोड़ भावाभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  13. मैने हालातों को
    वक्‍त के हवाले कर दिया है
    इसलिए जो है जैसा है
    उसे वैसे ही रहने दो

    भावपूर्ण और सार्थक अभिव्यक्ति ...

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  14. निश्चित ही समय बड़े से बड़ा घाव भी भर देता है.भावपूर्ण कविता.

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  15. कठपुतली पर मालकियत जो होती है..

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  16. कविता इतनी मार्मिक है कि सीधे दिल तक उतर आती है।

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  17. बहुत ही मार्मिक भाव समेटे बेह्तरीन अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
  18. मैने हालातों को
    वक्‍त के हवाले कर दिया है
    इसलिए जो है जैसा है
    उसे वैसे ही रहने दो
    हर घाव भर जाएगा
    वक्‍त के मरहम से ....


    जिन्दगी का सच लिख दिया ...बिन बोले ...हर कोई अपने हिस्से की खामोश जिन्दगी जीये जा रहा है

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  19. जीवन का कटु सत्य है....खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति....

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  20. जिंदगी का सच...
    वक्‍त से बडा कोई नहीं....
    सुंदर प्रस्‍तुति।

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  21. अत्यंत मार्मिक प्रस्त्तुति और सच्चाई को स्वीकार करने की सदाशयता. बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  22. मैने हालातों को
    वक्‍त के हवाले कर दिया है
    इसलिए जो है जैसा है
    उसे वैसे ही रहने दो
    हर घाव भर जाएगा
    वक्‍त के मरहम से ....
    Pata nahee ghaav kabhee bharte bhee hain ya nahee....

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  23. वैसे तो यह दुनियाँ ही एक रंगमंच है। सभी कठपुतली हैं। अभिनय करते हैं। एक स्वप्न, जो टूटता है तो जाग पाते हैं हम।

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  24. कल 05/12/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  25. बिल्कुल सही बात कही बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    बेहद खूबसूरत ...पोस्ट
    शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!

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  26. जब न वक्त साथ दे और न दिल इजाज़त,तब स्वयं को वक्त की कठपुतली बनाने से ही सुनहरा भविष्य संभव। ओशो सिद्धार्थ कहते हैं-
    बहती हो जब प्रतिकूल हवा,तुम शांत बैठ जाओ कुछ पल।
    जब हवा थमे,आगे चल दो,तेरी मुट्ठी में होगा कल।।

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  27. वक्त बहुत बेरहम होता है ...कठपुतली बन कर कभी इंसान खुद नाचता है ..कभी न चाह कर भी ...

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  28. बहुत खूब ... तीनों जबरदस्त ...
    ये सच है कभी कभी छोटे छोटे फांसले सालों तक तय नहीं हो पाते ...

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  29. कठपुतली के खेल शायद इसी लिए लुप्त हो गए कि यह भूमिका इंसान ने संभाल ली है ....
    वक़्त के विभिन्न रूप अच्छे लगे

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  30. कठपुतलियों का खेल अब
    गुजरे वक्‍त की बात हो गया
    पर फिर भी लोग जाने क्‍यूं
    कभी किसी के हाथ
    सौंप देते हैं खुद को
    या किसी को
    बना लेते हैं अपने हाथों
    की कठपुतली ....

    शानदार......बेहतरीन........हैट्स ऑफ इसके लिए|

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  31. क्या कहूँ सदा जी :-) सार्थक एवं लाजवाब प्रस्तुति....

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  32. वक्‍त ने साथ नहीं दिया
    कभी दिल न इजाजत नहीं दी .....

    कुछ था उनको गुमान
    कुछ था हमें गरूर
    दरम्या के ये फासले दूरियाँ बन के रह गए .....

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  33. वाह!!!सदा जी
    बहुत खूबसूरत रचना अच्छी पोस्ट,,,,,
    मेरे नए पोस्ट में स्वागत है,.....

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