गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

द्वेश का बीज ....

मुझे बीज बहुत अच्‍छे लगते हैं,
बचपन में कभी
कोई बीज हांथ लगता तो
उसे घर के आंगन में
उत्‍साह के साथ बो देती थी
नियम से सींचना
और उसे अंकुरित होते
देखने की उत्‍सुकता  में
भोर में उठ जाना
मां मेरी उत्‍सुकता देख कहती
तुम्‍हें पता है ...
जैसे ये बीज हैं न
वैसे ही होते हैं  संस्‍कार के बीज
बस फर्क इतना होता है
उन्‍हें धरती पर नहीं
मन के आंगन में बोया जाता है
मैं हैरानी से  कहती ...मन का आंगन
मां बातों के प्रवाह में कहती
हां परोपकार... सदाचार ...कर्तव्‍य ... निष्‍ठा...
समर्पण ... सम्‍मान
त्‍याग और प्रेम
जो हमें मिलते हैं विरासत में
उनके बीज बचपन से ही तो
बोये जाते हैं
बस बेटा एक बीज
बहुत बुरा होता है और कड़वा भी
वो है द्वेष का 
जानती हो इसमें ईर्ष्‍या की खाद  व
अहित भाव का जल पड़ता है
इसे कभी भी पनपने मत देना
वर्ना यह द्वेश भाव कब 
प्रेम की जड़ों को खोखला कर देता है
कोई नहीं जानता
बड़े से बड़ा वृक्ष
धराशाई हो जाता है
और कितने घोसले उजड़ जाते हैं  ...!!!

28 टिप्‍पणियां:

  1. घृणा, द्वेष आध्यात्मिक रोगों में शुमार होते हैं. माताओं ने इन्हें वर्जनाओं की भाँति माना और प्रेम, स्नेह के संस्कार के बीज बोए. ऐसी माताओं को नमन.

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  2. बहुत ही सार्थक और सशक्त अभिव्यक्ति दिल को छू गयी …………सुन्दर सीख दे गयी।

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  3. bahut khoob,
    magar kuchh bimaariyaan
    bagiche mein baahar se bhee aa jaatee hein
    bageeche ke paudhon ko beemaar kartee hein

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  4. प्रस्तुति इक सुन्दर दिखी, ले आया इस मंच |
    बाँच टिप्पणी कीजिये, प्यारे पाठक पञ्च ||

    cahrchamanch.blogspot.com

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  5. सचमुच...
    बहुत सुन्दर तथ्य को रखांकित करती खूबसूरत रचना...
    सादर बधाई...

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  6. सार्थक सन्देश देती हुई बेहतरीन रचना ....

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  7. EXCILENT बड़ी सरलता से आज अपने बहुत ही गहन बात कहदी...

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  8. एक कहावत है,..जैसा बोओंगे वैसा काटोगे,..
    प्रेरणा देती,बहुत अच्छी प्रस्तुति,..
    नए पोस्ट् में इंतजार है,...

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  9. एक खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.....

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  10. मन में बोया संस्कार का बीज!
    सुन्दर!

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  11. बहुत ही सार्थक सत्य को उद्घाटित करती रचना ...शुभ कामनायें

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  12. आप तो आज भी नित्य नियम से बीज बो ही रही हैं।
    सदाविचार पर के आपके पोस्ट संस्कारों के बीज बोने के समान ही है।
    बहुत अच्छी कविता।

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  13. द्वेश भाव प्रेम की जड़ों को खोखला कर देता है
    sach hai

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  14. त्‍याग और प्रेम
    जो हमें मिलते हैं विरासत में
    उनके बीज बचपन से ही तो
    बोये जाते हैं
    बस बेटा एक बीज
    बहुत बुरा होता है और कड़वा भी
    वो है द्वेष का
    जानती हो इसमें ईर्ष्‍या की खाद व
    अहित भाव का जल पड़ता है
    इसे कभी भी पनपने मत देना

    PRERAK AUR SUNDAR PRASTUTI.

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  15. सच कहा है ... इर्षा का बीज जो एक बार पनप जाता है तो निकालना मुश्किल होता है ... बहुत उम्दा ...

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  16. superb!!! sanskaar ke beej ko kitne achchhe tarike se samjhaayaa hai. waah!!

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