मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

ऊंचे दरख्‍तों के साये में . . . .

कुछ भलाई के काम कर, औरों के काम आ,
नाम चट्‌टानों पे लिख कोई मशहूर नहीं होता ।

आंखों में बसने के संग सांसों में पला हो जो,
फ़कत कह देने से वह दिल से दूर नहीं होता ।

खुद से खफ़ा है तू औरों से खुश क्‍या होगा,
मायूस दिल हो गर तो चेहरे पे नूर नहीं होता ।

ऊंचे दरख्‍तों के साये में छांव, चाहे न लगे,
लेकिन ठंडी हवाओं से वो दूर नहीं होता ।

ख्‍वाहिशों के समन्‍दर में लगाता है गोता हर कोई,
हकीकत का मोती ‘सदा' हर मुठ्‌ठी में नहीं होता ।

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