गुम जाने की उसकी बुरी आदत थी,
या फिर
मेरे रखने का सलीका ही सही न था,
चश्मा दूर का
अक्सर पास की चीजें पढ़ते वक़्त
नज़र से हटा देती थी
एक पल की देरी बिना वह
हो जाता था मेरी नज़रों से ओझल
कितनी बार नाम लेती उसका
जाने कहाँ गया ?
दिखता भी नहीं था वह दूर जो हो जाता था
उसको ढूँढते वक्त
बरबस एक ख्याल आता था
काश मोबाइल की तरह इसकी भी कोई
प्यारी सी रिंगटोन होती J
तो यूँ ढूँढने की ज़हमत तो नहीं होती !
....
इस मुई चाबी को भी
हथेलियों में दबे रहने की जैसे आदत हो,
पर कब तक ??
कभी तो उसे इधर-उधर रखना ही होता न
मन ही मन बल खाती ये भी
नज़र बची नहीं कि खामोशी की
ऐसी चादर तानती
सारे तालों की हो जाती बोलती बंद
और मच जाती सारे घर में खलबली
मची हड़बड़ाहट के बीच
एक कोफ़्त भी होती
काश इसे टांग दिया होता किसी कीले पर
मेरी ही आदत खराब है या फिर
इसे ही चुप्पी साधने में मज़ा आता है!!!!
उम्दा लेखन |
जवाब देंहटाएंउम्दा लेखन |
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (25-11-2015) को "अपने घर भी रोटी है, बे-शक रूखी-सूखी है" (चर्चा-अंक 2171) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
कार्तिक पूर्णिमा, गंगास्नान, गुरू नानर जयन्ती की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कहीं ई-बुक आपकी नींद तो नहीं चुरा रहे - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 27 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंचश्मे और चाबी की खोज में मची भगदड़ .... और फिर उनका मिल जाना दे जाता है सुकून ..... :) :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार रचना की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार रचना की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति। कुछ चीजों को ढूंढते वक्त कई बार ऐसा ही अहसास होता है कि रिंग करो और उसे ढूंढ लो।
जवाब देंहटाएंकोई चीज समय पर नहीं मिलने पर यही लगता है काश की ऐसा होता वैसा होता लेकिन मिल जाने पर वही भूल करना जैसे हमारा स्वभाव बन जाता है जो परेशानी का सबब बन जाता है। . बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसुन्दर और बेहद भावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंअद्भुत अभिव्यक्ति :) ..... मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंवाह! नववर्ष की मंगलकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएं