मंगलवार, 22 जनवरी 2013

श्रद्धा कब तक आखिर निष्‍ठावान रहेगी ???

मौन कब तलक रहें शब्‍द
स्‍वरों की साधना  में तत्‍पर  रहते
हिफ़ाजत करते स्‍वाभिमान की
अंतस की पीड़ा को मुखर होते देख
नियमों की दहलीज़ लांघी है जब भी
विश्‍वास को दरकिनार कर
शब्‍द चीखा है अपनी पूरी ताकत से  !!!
...
पर कहाँ सुनता है कोई किसी की
सबके पास अपनी-अपनी
जोर आजमाईश के शब्‍द हैं
अपनी-अपनी मतलबपरस्‍ती है
अवसर भी अब सिर्फ बहाना ढूँढने लगे हैं
कब किसी के काम आना है
कब किसी के हाथों से फिसल जाना है
चालबाज़ी जब फितरत ही हो जाये तो
कहिये श्रद्धा कब तक आखिर निष्‍ठावान रहेगी ???
आम आदमी की
  ....
वे कहते हैं ऐसे में मौन धारण कर लो
पर मौन रहना इतना सहज़ है क्‍या
मौन के क्षणों में जब भी रहे
अंतस पर पड़े जख्‍मों की पपडि़यां
बिना खरोंचे ही उधड़ने लगीं
रक्‍त का रिसाव होता एक आह ! निकल ही जाती है
...
सच तो यह है बिना प्रयास कुछ भी संभव नहीं ..
ना ही सफल वक्‍ता होना ना ही  मौन रह पाना
बस तुम प्रयासों की उँगली मत छोड़ना
सफलता तुम्‍हारी होगी !!!

बुधवार, 16 जनवरी 2013

वो क़ायम रखता मेरे जीने की वज़ह !!!

सब्र के बाँध में
हिचकियों के पहरे थे
हर चेहरे के पीछे जाने कितने चेहरे थे
सब कहते हैं
सब्र का फल मीठा होता है
इसकी मिठास से तो कभी रू-ब-रू  न हुई
फ़कत मजबूत होते गये
हर बार मेरे इरादे
और एक बाँध बन गया सब्र का
जिसके नीचे बहती रही दर्द की नदी
चुपके - चुपके
....
हारना कभी हालातों से सीखा ही नहीं
हौसले की उँगली
उम्‍मीद की किरण फिर वही पग‍डंडियाँ
जिन पर सरपट दौड़ती जिंदगी
कभी संकल्‍पों के धागे
कभी विकल्‍पों के सोपान
चढ़ना और उतरना
पाना और खोना
हर हाल में मुस्‍काना
...
कभी अपने ही मेरे बनाते दीवार
मुझे नजरबंद करने के लिए
किस तरह जिंदा रहेगी देखे तो
उफ्फ !!! कैसे हैं ये मेरे अपने
मेरे गम पर हँसते
मेरी खुशियों पर मुँह बिसूरते
पर वो है न ऊपरवाला
मेहरबान जो इतने गमों के बीच भी
मेरे होठों पर तबस्‍सुम ले ही आता
मैं सज़दे में होती उसके
वो क़ायम रखता मेरे जीने की वज़ह
... सामने वाले का मुँह खुला का खुला रह जाता
ये आखिर बला क्‍या है :)

सोमवार, 14 जनवरी 2013

ये निर्णय ... शून्‍य होकर भी अडिग कैसे है ???














निर्णय शून्‍य है
हर तरफ एक रिक्‍तता का अहसास है
सन्‍नाटा भयाक्रांत अपने आप से
तोहमतो का बाज़ार गर्म है
कुछ तोहमतें लटकी हैं सलीब पर
बहते लहू के साथ
बड़ा ही भयावह दृश्‍य है
अंतर्रात्‍मा चीत्‍कार करती है
हर बार इक नई कसौटी पर
कब तक आखिर कब तक
वह अपने अधिकारों के लिये
आहुति देगी अपने स्‍वाभिमान की
...
निर्णय .. आखिर कब लिया जाएगा ???
या किया जाएगा ...
ये सवाल आज भी अटल है
हर शख्‍़स के कांधे पर
हर माँ की आँखो में,  हर बेटी की जुबान पर
तारीख गवाह होती है हर बार
कानून की नज़र में
जुर्म बड़े ही शातिर तरीके
बड़े ही सुनियोजित ढंग से
अंजाम दे दिया जाता है
फरियादी सुनवाई के लिये
आत्‍मा की पैरवी करते-करते
एक दिन खुद-ब-खुद तारीख बन जाता है !!!
...
निर्णय .. खुद कैद में है जब
कहो कैसे वह जिरह करे अपनी आजादी की
मुझे बुलंदी का ताज़ पहनाओ
हर सोई हुई आत्‍मा को जगाओ
व्‍यथित है हर भाव मन का
पर फिर सोचती हूँ
ये निर्णय ... शून्‍य होकर भी
अडिग कैसे है
जरूर रूह इसकी भी छटपटा रही होगी
तभी तो इसने अपने जैसी रूहों को
एक साथ कर ...
एक नाम दिया है संकल्‍प का
...

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

जीना है तो मरना सीखो !!!

मन का शोक विलाप के आंसुओं से
खत्‍म नहीं हुआ है
संवेदनाएं प्रलाप करती हुई
खोज रही हैं उस एक-एक सूत्र को
जो मन की इस अवस्‍था  की वज़ह बने
आहत ह्रदय चाहता है
जी भरकर चीखना कई बार
इस नकारा ढपली पर जिसे हर कोई
आता है और बजा कर चला जाता है
अपनी ताल और सुर के हिसाब से
....
जीना है तो मरना सीखो !!!
डरना नहीं ये बात पूरे साहस के  साथ
कहते हुये निर्भया हर सोते हुये को जगा गई
दस्‍तक तो उसने दे दी है हर मन के द्वार पर
यह हमारे ऊपर है हम साथ देते हैं
या फिर अपने कानों को बंद कर
अनसुना करते हुए
खामोशी अख्तियार कर लेते हैं !!!

बुधवार, 9 जनवरी 2013

फा़यदे का सौदा !!!

कुछ खुशियां खरीदते वक्‍़त
मुझे तुम्‍हारी याद आई
हैरान क्‍यूँ हो इतना
आज़ हर चीज़ की कीमत
अदा करनी होती है
बस इस लिए निकल गया
यह सच भी
....
कीमत अदा करते वक्‍़त
मैने सबसे पहले
तुम्‍हारी हँसी के बदले में
आंसू लिये
तब ये खिलखिलाती हँसी
तुम्‍हारे चेहरे पर देख सकी
ना शुक्रिया मत कहना
तुम्‍हें पता है न तुम्‍हें हँसते देख
मेरे चेहरे पर मुस्‍कान
खुद-ब-खुद आ जाती है
कहो .. हुआ न ये फा़यदे का सौदा !!!
...
माँ कहा करती है हमेशा से
किसी के लिये कुछ अच्‍छा करते वक्‍़त
खुद को थोड़ा कष्‍ट हो भी जाये तो
इसमें कुछ बुरा नहीं होता :)
...
 

शनिवार, 5 जनवरी 2013

जिसकी जैसी नज़र ... !!!














शब्‍दो का अलाव
मत जलाओ इनकी जलन से
तुम्‍हारे मन की तपिश
शीतलता में नहीं बदलेगी
जो शब्‍द अधजले हैं
उनके धुंए से
दम घुट जाएगा
भावनाओं को आंच पर
जिस किसी ने भी रखा है
उसकी तपिश से  वह भी
सुलग गया है भीतर ही भीतर
इन भावनाओं की
समझ तो है न तुम्‍हें
ये जितना दुलार देती हैं 
जितना समर्पण का भाव रखती हैं
हृदय में उतनी ही निष्‍ठुर भी हो जाती हैं
इनका निष्‍ठुर होना मतलब
पूरी तरह तुमसे मुँह फेर लेना
....
भावनाओं को जानना है तो
जिन्‍दगी से पूछना
बड़ा ही प्‍यारा रिश्‍ता होता है
इनका जिन्‍दगी के साथ
ये जन्‍म से ही आ जाती हैं साथ में
फिर मरते दम तक
हमारी होकर रह जाती हैं
हमारे दुख में दुखी  तो
हमारी खुशी में खुश रहना
इनकी फि़तरत होती है 
...
इनका समर्पण रूह तय करती है
प़ाक लिब़ास में लिपटी
भावनाएं जैसे मां के आंचल में
कोई अबोध शिशु
बस उतनी ही अबोध होती हैं  ये भी
जिसकी जैसी नज़र होती है
बिल्‍कुल वैसे ही दिखती हैं ये ... !!!

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

कुछ रिश्‍ते ..... (9)

कुछ रिश्‍ते
टूटूते नहीं बल्कि छूट जाते हैं,
हालातों के साये में
खौफ़ज़दा होकर
.......
कुछ रिश्‍ते
ए‍क स्‍तंभ होते हैं
जिनकी पना़ह में हर
रिश्‍ता साँस लेता है
.....
कुछ रिश्‍ते
गुलाब से होते हैं
जिसकी सुगंध सबके लिये
एक समान होती है
....
कुछ रिश्‍ते
बुनियाद होते हैं ऐसी
जिन्‍हें हर तूफ़ान में
खुद को अडिग
रखना होता है
.....
कुछ रिश्‍ते
जितेन्‍द्रीय होते हैं
जो जीत लेते हैं
सबका विश्‍वास
....