बुधवार, 16 जनवरी 2013

वो क़ायम रखता मेरे जीने की वज़ह !!!

सब्र के बाँध में
हिचकियों के पहरे थे
हर चेहरे के पीछे जाने कितने चेहरे थे
सब कहते हैं
सब्र का फल मीठा होता है
इसकी मिठास से तो कभी रू-ब-रू  न हुई
फ़कत मजबूत होते गये
हर बार मेरे इरादे
और एक बाँध बन गया सब्र का
जिसके नीचे बहती रही दर्द की नदी
चुपके - चुपके
....
हारना कभी हालातों से सीखा ही नहीं
हौसले की उँगली
उम्‍मीद की किरण फिर वही पग‍डंडियाँ
जिन पर सरपट दौड़ती जिंदगी
कभी संकल्‍पों के धागे
कभी विकल्‍पों के सोपान
चढ़ना और उतरना
पाना और खोना
हर हाल में मुस्‍काना
...
कभी अपने ही मेरे बनाते दीवार
मुझे नजरबंद करने के लिए
किस तरह जिंदा रहेगी देखे तो
उफ्फ !!! कैसे हैं ये मेरे अपने
मेरे गम पर हँसते
मेरी खुशियों पर मुँह बिसूरते
पर वो है न ऊपरवाला
मेहरबान जो इतने गमों के बीच भी
मेरे होठों पर तबस्‍सुम ले ही आता
मैं सज़दे में होती उसके
वो क़ायम रखता मेरे जीने की वज़ह
... सामने वाले का मुँह खुला का खुला रह जाता
ये आखिर बला क्‍या है :)

28 टिप्‍पणियां:

  1. प्रभावी -
    भाव
    प्रवाह-
    शुभकामनायें-सदा ||

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  2. हर बार मेरे इरादे
    और एक बाँध बन गया सब्र का
    जिसके नीचे बहती रही दर्द की नदी
    चुपके - चुपके
    .....बहुत खूबसूरत गहरी और शांत रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा !!

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  3. कभी अपने ही मेरे बनाते दीवार
    मुझे नजरबंद करने के लिए ... अपने ही ये कदम उठाते हैं

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  4. हौसले बने रहे ....और लोगों की हैरानी भी

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  5. हौसले की उँगली थामें
    सच कह रही हूँ मैं
    चली जा रही हूँ
    आगे ही आगे

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  6. हौसला बुलंद रहे । बहुत ही सुंदर कविता ।

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  7. ... सामने वाले का मुँह खुला का खुला रह जाता
    ये आखिर बला क्‍या है :)
    बला नहीं बहादुर हैं आप !!

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  8. वाह वाह.....बहुत ही सुन्दर......शुरू के दो पैरे तो लाजवाब हैं ।

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  9. बहुत सुंदर .
    जालिम लगी दुनिया हमें हर शक्श बेगाना लगा
    हर पल हमें धोखे मिले अपने ही ऐतबार से

    नफरत से की गयी चोट से हर जखम हमने सह लिया
    घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से

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  10. कभी संकल्‍पों के धागे
    कभी विकल्‍पों के सोपान
    चढ़ना और उतरना
    पाना और खोना
    हर हाल में मुस्‍काना
    -------------------------
    वाह ..

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  11. बेहद प्रभावशाली रचना !!!

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  12. सब्र का फल मीठा होता ही है...जो अनंत धैर्य रख सकता है अनंत का द्वार उसके लिए खुल जाता है..

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  13. मैं सज़दे में होती उसके
    वो क़ायम रखता मेरे जीने की वज़ह
    ... सामने वाले का मुँह खुला का खुला रह जाता
    ये आखिर बला क्‍या है :)

    बस यही है सत्य ………सुन्दर रचना

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  14. हारना कभी हालातों से सीखा ही नहीं
    हौसले की उँगली
    उम्‍मीद की किरण फिर वही पग‍डंडियाँ
    जिन पर सरपट दौड़ती जिंदगी
    कभी संकल्‍पों के धागे
    कभी विकल्‍पों के सोपान
    चढ़ना और उतरना
    पाना और खोना
    हर हाल में मुस्‍काना

    सुन्दर और भावपूर्ण, आशा

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  15. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.

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  16. बेहद खूबसूरत रचना... जीने की वजह कायम रहे... शुभकामनायें

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  17. अपने ही रास्ते मेन रोड़े अटकाते हैं ..... लेकिन जब हर बाधा पार कर ली जाये तो मुंह तो खुला होना ही है .... बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  18. इस बल में बड़ी जान है !
    भीतर की मजबूती संघर्ष के दिनों में और निखरती है !

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  19. यही हौसला चाहिए जो औरों को हैरान भी कर जाये और परेशान भी ! बहुत खूबसूरत एवं बेहतरीन रचना ! शुभकामनायें !

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