सोमवार, 18 जून 2012

मैं बेनका़ब हो जाऊँ ... !!!

कभी भी टांग देना खुद को
उदासी की खूंटी पर
हँसी का पर्दा लगाकर
कसकती आत्‍मा
पर्दे के भीतर
टोह लेती रही
आते-जाते चेहरों का
सच पढ़ती
और मायूस हो
दुआ करती
बस एक बार
जोर की आंधी आ जाए
और मैं बेनका़ब हो जाऊँ
...

35 टिप्‍पणियां:

  1. वाह: बहुत सुन्दर रचना..सादाजी..

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  2. बस एक बार
    जोर की आंधी आ जाए
    और मैं बेनका़ब हो जाऊँ

    बहुत सुंदर रचना,,,,,

    RECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,

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  3. आत्मा की दुआ कबूल होगी तो आत्म प्रकाश फैल जाएगा...!
    सुन्दर!

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  4. हम सबका जीवन ऐसा ही है। एकदम दिखाव का।

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  5. अनीता जी की आज की पोस्ट की एक पंक्ति लिखती हूँ.....
    "लुकाछिपी है,खुद से खुद की...."

    सुन्दर भाव...
    सस्नेह.

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  6. Shayad yahee hua mere saath.....benaqab to ho chukee hun......lekin zindagee jeene kee koyi wajah bhee to ho!

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  7. निरावरण ही तो नहीं हो पाता आज आदमी और इसीलिए कसकता रहता है अपने ही बनाए सँवारे मुखौटों में कभी तो यह ओढ़ी हुई केंचुल उतारी जाए ,थोड़ा सा बस थोड़ा सा जी लिया जाए ,प्यार का एक घूँट पी लिया जाए ,एक नखलिस्तान चंद लम्हों का जी लिया जाए .
    बढ़िया रचना है आपकी -
    और मायूस हो
    दुआ करती
    बस एक बार
    जोर की आंधी आ जाए
    और मैं बेनका़ब हो जाऊँ
    ...

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  8. बहुत सुन्दर रचना..सदा जी..

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  9. बेनकाब होने को कितने लोग चाहते हैं ज्यादा तर तो चेहरे पे चेहरा लगाये घूमते हैं ।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

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  10. मन ही मन में छिपकर रहने से क्या लाभ, खुलकर जिया जाये..

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  11. सच है ...हर मन की चाहत है स्वतंत्र हो जीने की

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  12. हम हर पल दोहरी ज़िन्दगी जीने को बाध्य हैं।

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  13. उदासी की खूंटी और हंसी का पर्दा लगा कर कब तक जिया जा सकता है ... सुंदर रचना

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  14. आते- जाते चेहरों का सच पढ़कर उदासी का बेनकाब हो जाने का मन ...मन आजकल ऐसे ही दौर से गुजरता लगता है हर पल !

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  15. झूठा आवरण अधिक समय नहीं टिकता!! खूब अभिव्यक्ति!!

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  16. मुखौटों का दुःख बड़ा दुःख देता है ज़िन्दगी में .नकली ज़िन्दगी जीने की कसक ता -उम्र ढौइए .हल चल नै पुरानी पर आरोग्य खिड़की परोसने के लिए आपका शुक्रिया .

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  17. सुभानाल्लाह बहुत ही खुबसूरत पोस्ट।

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  18. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..

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  19. बेहद खूबसूरत प्रस्तुति....

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  20. बेहद गहन भाव ....बहुत ही सुंदर लिखा है ...सदा जी ...!!

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  21. दोहरी जिंदगी जीना इसे ही कहते है. आत्मा कही ना कही जरूर रोटी होगी इस बनावटीपन पर.

    सुंदर भावपूर्ण कविता.

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  22. जोर की आंधी आ जाए
    और मैं बेनका़ब हो जाऊँ

    अंतर मन की आवाज ......एक कसक .....

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  23. ये विचारों की, बदलाव की, क्रांति की .. सबकी ख्वाहिश है.. बेनकाब, बेबाक.. सिर्फ सत्य!!
    सादर

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  24. उदासी में भी हमारा अस्तित्व अपने स्वरूप और अपनी अपेक्षाओं को नहीं भूलता. उदास मनःस्थिति का गहन वर्णन है. कठिन अभिव्यक्ति.

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  25. आस्कर वाइल्ड ने भी ऐसे ही कुछ कहा था, मन के बेहद एकाकी भावों को सुंदर बिंब दिए हैं आपने, आभार

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