सोमवार, 11 जून 2012

जिसका कवच तुम हो ... !!!












विचारों की भीड़ में गुम
ढूंढती हूँ एक ऐसा विचार
जो तुम्‍हारी तरह
मजबूत हो
जिसका नाम लेते ही
हर कमजोर हौसला जी उठे
एक नई ताकत लेकर
.....
मजबूती ही नहीं है तुम्‍हारे पास
अदम्‍य साहस की भी धनी हो तुम
मैने देखा है जाने कितने ही
कमजोर पलों को
जीवनदान देते हुए तुम्‍हें !!
...
जिन्‍दगी जब भी कभी खुद से हैरान हो
सवाल करती है ढेरो
तब तुम देती हो दिशा एक नई उसे
विचलित होता है मन जब भी
समझाती हो उसे
परिस्थितियां जब भी अनुकूल नहीं होती हैं
तुम दिखलाती हो
नदी के ठहरे हुए पानी को
ठहराव में ही एकत्र होते हैं
झांड़-झंकाड़ और गंदगी
ठहरना क्‍यूँ ??
सतत् बहते रहने में ही जीवन का सार है
आओ आगे बढ़ो मेरे साथ
उंगली पकड़ चल पड़ती हो
मार्गदर्शक की तरह ...
....
तुम रोज सुबह
हम सबके चेहरे पर
एक मुस्‍कान देती हो विश्‍वास की
स्‍नेह की रेखा को  खींचती हो
अपनी मजबूत उंगलियों से
इस छोर से लेकर उस छोर तक
तभी तो हम सब
बंधे हुए हैं इस एक ही सूत्र में
जिसका कवच तुम हो
कहो तो कौन हमें
विलग कर सकता है ... !!!

31 टिप्‍पणियां:

  1. यह कवच अटूट हो , निर्बाध हो , अडिग हो ....

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  2. हम कितना ही मज़बूत हो जाएँ, हम सबको इस कवच की ज़रुरत होती है... अच्छी रचना....

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  3. अद्भूत सम्वेदनशील अनुभूति!! अमरता की अजस्र धारा सम कवच!!

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  4. तभी तो हम सब
    बंधे हुए हैं इस एक ही सूत्र में
    जिसका कवच तुम हो
    कहो तो कौन हमें
    विलग कर सकता है ... !!!
    i am agree with RASHMI PRABHA JI

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  5. जिसे ममतामयी कवच मिल जाता है उसे कौन विलग कर सकता है या रोक सकता है आसमाँ छूने से

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  6. प्रेम के ऐसे अट्टू बंधन ही होते हैं जो विश्वास और साहस देते अहिं हर मोड़ पे ... साथ रहते हैं कवच बन के ...

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  7. बहुत गहन और सुन्दर पोस्ट।

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  8. सतत् बहते रहने में ही जीवन का सार है
    आओ आगे बढ़ो मेरे साथ वाह! सच्ची बात....

    जिसका कवच तुम हो
    कहो तो कौन हमें
    विलग कर सकता है ... !!!

    बहुत सुंदर रचना....
    सादर।

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  9. इस मजबूत कवच को कौन अलग कर सका है !!
    रिश्तों की यही बौन्डिंग बनी रहे !

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  10. माँ से बढ कर दुनिया में कोई नही । सुन्दर कविता ।

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  11. माँ तो माँ ही होती है....बहुत सुंदर रचना

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  12. ठहराव नहीं नदी की तरह निरंतर बहते रहने में ही सार है ....बहुत ही सार्थक एवं सुंदर अभिव्यक्ति

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  13. "तभी तो हम सब
    बंधे हुए हैं इस एक ही सूत्र में
    जिसका कवच तुम हो
    कहो तो कौन हमें
    विलग कर सकता है .."
    बहुत सुंदर भावाभिव्यक्‍ति! बधाई !


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    आपका इंतज़ार है मेरे ब्लॉग पर !

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  14. अति सुन्दर लिखा है.....इस उत्कृष्ट रचना के लिए ... बधाई स्वीकारें

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  15. आपकी बहुत सी कविताओं में एक स्त्री पात्र है जो संभालता है, साथ ले चलता है, मज़बूती देता है. वही इस कविता में 'कवच' है.
    मजबूती ही नहीं है तुम्‍हारे पास
    अदम्‍य साहस की भी धनी हो तुम
    मैने देखा है जाने कितने ही
    कमजोर पलों को
    जीवनदान देते हुए तुम्‍हें !!

    बहुत सुंदर कविता है.

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  16. बहुत सुन्दर और भावप्रणव प्रस्तुति!
    सदा जी आपसे एक बार मोबाइल पर बात हुई थी मगर अब वो नम्बर मिस हो गया है।
    मेरा नम्बर है-
    09997996437
    आपसे कुछ परामरश करना है!
    आशा है अन्यथा नहीं लोगी बिटिया!

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  17. खूबसूरत और गहरे अहसासों से रची सुंदर रचना .......
    शुभकामनाएँ!

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  18. कितना सुन्दर चित्रण किया है आपने माँ का...वास्तव में वह शक्ति है ......बहुत खूब सदाजी !!!!!!!

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  19. ठहरना क्‍यूँ ??
    सतत् बहते रहने में ही जीवन का सार है

    स्वच्छ निर्मल जल की तरह प्रवाहमयी ...उत्क्रिश्त रच्ना ...!!
    बहुत बहुत शुभकामनायें सदा जी ...
    आपके विचारों को नमन ....

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  20. सतत् बहते रहने में ही जीवन का सार है
    आओ आगे बढ़ो मेरे साथ

    लाजवाब रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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