सोमवार, 16 जनवरी 2012

कुद़रत के इस खेल पर ....!!!

















उम्र जब शून्‍य की अवधि से
मां के ऑंचल से झांककर
घुटनों के बल चलकर
लड़खड़ाते कदमों से अपनों की
उंगली को थाम कर
सीखती चलना फिर
वक्‍त की रफ़्तार के साथ
दौड़ती जिन्‍दगी में सरपट भागी  भी  जहां
वहां नये रिश्‍तों की गर्माहट से
हाथों में हाथ लेकर हमसफ़र का
मंजिलों पे बढ़ाया कदमों को
पर उम्र यहां भी अपनी समझाइशें
साथ लाई
रिश्‍तों ने रिश्‍तों को जोड़ा
लेकिन उम्र ने साल दर साल
अपनी वर्षगांठ मनाई  ...
मुस्‍कराहटों के बीच
उम्र अपने अनुभवों की लकीरें
देह पर छोड़कर
बड़ी ही सुगमता से
स्‍याह बालों को
सफे़दी की झिलमिलाहट
में परिवर्तन की बया़र के बीच
कमर को झुकाती कभी
हाथों में सहारे के लिए
लाठी की टेक  लगाती
हथेली के कंपन के बीच
संभालती काया
शिथिल तन ढीली चमड़ी
वृद्धावस्‍था की मंजिल
पा ही गई उम्र
जाने किस घड़ी अंत हो जाए
सुबह और शाम के बीच
ये चलती हुई धड़कन बंद हो जाए
इस चलने की तैयारी में
अनुभवों को बांटती
यादों को समेटती रूह
आज भी आशीष की पोटली से
दुआओं की बरसात करती  जब
कुछ बूंदे स्‍नेह की
चेहरों पे एक निख़ार ले ही आती  जब
वह कुद़रत के इस खेल  पर
ढली हुई उम्र के साथ
मन ही मन मुस्‍करा उठती ...!!!

25 टिप्‍पणियां:

  1. वाह सदा जी...
    एक कविता में पूरी उम्र गुज़ार दी...
    बहुत सुन्दर.

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  2. बहुत सुन्दर रचना है कुछ पंक्तिया तो लाजवाब है...शुरुआत से अंत तक सब कुछ सार्थक

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  3. यादों को समेटती रूह
    आज भी आशीष की पोटली से
    दुआओं की बरसात करती जब
    कुछ बूंदे स्‍नेह की ...
    awesome !!

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  4. बहुत सुंदर
    आपने जो तस्वीर लगाई है, सच में बहुत अच्छी है।

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  5. बहुत सुन्दर,बहते भाव..अभिव्यक्ति अच्छी लगी |

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्र जब शून्‍य की अवधि से
    मां के ऑंचल से झांककर
    घुटनों के बल चलकर
    लड़खड़ाते कदमों से अपनों की
    उंगली को थाम कर
    सीखती चलना फिर
    वक्‍त की रफ़्तार के साथ
    दौड़ती जिन्‍दगी में सरपट भागी भी जहां
    वहां नये रिश्‍तों की गर्माहट से

    भावनात्मक गहरे भाव लिए खुबशुरत रचना,...

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  7. कोमल मगर गहन भावो का समावेश्।

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  8. sab jaante hein aisaa hee honaa hai
    rone se faaydaa nahee ,isiliye hanste huye jeenaa hai

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  9. सुन्दर भावों के साथ लिखी गई सुन्दर रचना ...

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  10. उम्र का यह यात्रा वृत्तांत अच्छा लगा !
    बहुत कोमल भाव !

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  11. यूँ ही बढती रहती है उम्र और चलता रहता है जिंदगी का चक्र ... सुन्दर रचना

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  12. लाजवाब चित्रण!! भावनाएं साकार हो उठी!!

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    1. उम्र अपने अनुभवों की लकीरें
      देह पर छोड़कर
      बड़ी ही सुगमता से
      स्‍याह बालों को
      सफे़दी की झिलमिलाहट
      में परिवर्तन की बया़र के बीच
      कमर को झुकाती कभी
      हाथों में सहारे के लिए
      लाठी की टेक लगाती
      हथेली के कंपन के बीच
      संभालती काया
      शिथिल तन ढीली चमड़ी
      वृद्धावस्‍था की मंजिल
      पा ही गई उम्र
      Yahee to antim saty hai!

      हटाएं
  13. ह पर छोड़कर
    बड़ी ही सुगमता से
    स्‍याह बालों को
    सफे़दी की झिलमिलाहट
    में परिवर्तन की बया़र के बीच
    कमर को झुकाती कभी
    हाथों में सहारे के लिए
    लाठी की टेक लगाती
    हथेली के कंपन के बीच
    संभालती काया
    शिथिल तन ढीली चमड़ी
    वृद्धावस्‍था की मंजिल
    सुन्दर भावों के साथ
    पा ही गई उम्र

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  14. कुदरत के खेल निराले होते हैं ... उम्र का लेखा जोखा उसी के हाथ है ...

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