गुरुवार, 5 नवंबर 2009

न सुनने की बीमारी है ...

खामोशियों पे तनहाई आज भारी है,

हम ही जाने कैसे रात गुजारी है ।

कान तरसते रहे सुनने को आवाज,

हर आहट पे चौकता ये हर बारी है ।

मेरे कहते कहते लब सूख गये,

तुझको तो न सुनने की बीमारी है ।

नजरों को झुका लेगा या मुंह फेरेगा,

जाने कोई कैसे ये तू ही अत्‍याचारी है ।

सिला न देना मेरी मुहब्‍बत का मत दे,

रूठे तू जब भी मनाना मेरी जिम्‍मेदारी है ।

13 टिप्‍पणियां:

  1. खामोशियों पे तनहाई आज भारी है,

    हम ही जाने कैसे रात गुजारी है ।


    कान तरसते रहे सुनने को आवाज,

    हर आहट पे चौकता ये हर बारी है ।


    मेरे कहते – कहते लब सूख गये,

    तुझको तो न सुनने की बीमारी है ।


    नजरों को झुका लेगा या मुंह फेरेगा,

    जाने कोई कैसे ये तू ही अत्‍याचारी है ।


    सिला न देना मेरी मुहब्‍बत का मत दे,

    रूठे तू जब भी मनाना मेरी जिम्‍मेदारी है ।

    हर एक लाइन बहुत सुन्दर है, बधाई !

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  2. तुझको तो न सुनने की बीमारी है ।

    नजरों को झुका लेगा या मुंह फेरेगा,

    जाने कोई कैसे ये तू ही अत्‍याचारी है ।

    सिला न देना मेरी मुहब्‍बत का मत दे,

    रूठे तू जब भी मनाना मेरी जिम्‍मेदारी है ।


    sundar kavita

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  3. रूठे रब को मानना आसान है
    रूठे यार को मनाना मुश्किल है

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  4. पसंद आई यह रचना सुन्दर अभिव्यक्ति

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  5. सिला न देना मेरी मुहब्‍बत का मत दे,

    रूठे तू जब भी मनाना मेरी जिम्‍मेदारी है

    bahut hi sunder pabktiyan ...........


    poori kavita dil mein utar gayi aapki........

    bahut sunder

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  6. मेरे कहते – कहते लब सूख गये,
    तुझको तो न सुनने की बीमारी है ......

    YE TO PYAAR KA MANUHAAR HAI ..... AAP BOLTE RAHEN VO NA SUNE .... ISI KO TO PREM KI ADAA KAHTE HAIN .... SUNDAR RACHNA HAI ...

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  7. सिला न देना मेरी मुहब्‍बत का जालिम,
    रूठा तू जब भी, मनाना मेरी लाचारी है।

    बुरा मत मानना,
    मैंने कुछ शब्दों मे हेरा-फेरी कर दी है।
    अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर है।

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  8. हाय ...ये ना सुनने की बीमारी ....फिर भी ...
    सिला न देना मेरी मुहब्‍बत का मत दे,
    रूठे तू जब भी मनाना मेरी जिम्‍मेदारी है ।
    कैसी लाचारी है ...
    सुन्दर कविता ..!!

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