मंगलवार, 3 नवंबर 2009

पवित्रता की आंच पर ....

अभिमान का दाना,

तुम नहीं खाना,

तुम्‍हें भी

अभिमान आ जाएगा

सजाना रिश्‍तों को

अपनेपन से

परोसना

उनकी थाली में

स्‍नेह का भोजन

जिसे पकाया गया हो

पवित्रता की आंच पर

जिससे

उसमें महक होगी

विश्‍वास की,

एकता का रस होगा

जो तुम्‍हारी जिभ्‍या को

रसास्‍वादन कराएगा,

तुम्‍हारी सोच को

संकुचित नहीं होने देगा

एक मजबूत मस्तिष्‍क

जो लड़ सकेगा

हर चुनौती से,

बचाएगा

तुम्‍हारे विचारों को

इधर-उधर भटकने से

संजो सकोगे तुम

वो सपने जिन्‍हें

हकीकत बनने से

कोई रोक नहीं पाएगा ।

24 टिप्‍पणियां:

  1. जिसे पकाया गया हो

    पवित्रता की आंच पर

    जिससे

    उसमें महक होगी

    विश्‍वास की,
    \

    in panktiyon ne dil chhoo lia.....

    behtareen shabdon ke saath ek behtareen kavita.........


    Regards.....

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  2. अपनेपन से परोसना
    उनकी थाली में स्नेह का भोजन
    जिसे पकाया गया हो
    पवित्रता की आंच पर.....

    बहुत खूब, उम्दा भाव !!

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  3. गहरी भावना लिए बेहद
    सार्थक रचना

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  4. ख़ूबसूरत रचना है.....गहरी संवेदनाएं लिए,एक सुन्दर सन्देश के साथ

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  5. अभिमान का दाना,

    तुम नहीं खाना,

    तुम्‍हें भी

    अभिमान आ जाएगा


    वाह...वाह....!
    सदा जी!
    3 बार यह कविता पढ़ चुका हूँ!
    इतना ही कहूँगा कि बेहतरीन है।

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  6. तुम्‍हारे विचारों को

    इधर-उधर भटकने से

    संजो सकोगे तुम

    वो सपने जिन्‍हें

    हकीकत बनने से

    कोई रोक नहीं पाएगा ।
    बहुत ही सुन्दर!

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  7. बचाएगा
    तुम्‍हारे विचारों को
    इधर-उधर भटकने से
    संजो सकोगे तुम
    वो सपने जिन्‍हें
    हकीकत बनने से
    कोई रोक नहीं पाएगा ।

    बहुत सुन्दर और आत्मविश्वास से भरी रचना

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  8. सजाना रिश्‍तों को
    अपनेपन से
    परोसना
    उनकी थाली में
    स्‍नेह का भोजन
    जिसे पकाया गया हो
    पवित्रता की आंच पर
    बहुत ही अछे बात कही है आपने रचना के माध्यम से ........ लाजवाब

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  9. सजाना रिश्‍तों को
    अपनेपन से
    परोसना
    उनकी थाली में
    स्‍नेह का भोजन
    जिसे पकाया गया हो
    पवित्रता की आंच पर
    बहुत सुन्दर रचना है बधाई

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  10. एकता का रस होगा
    जो तुम्‍हारी जिभ्‍या को
    रसास्‍वादन कराएगा
    वाह बहुत खूब लिखा है आपने ! इस भावपूर्ण और बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

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  11. rachnaa ke shabd-shabd meiN
    shaasvat sach ka sandesh chhipaa hai
    abhivaadan svikaareiN

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  12. कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
    बहुत सुन्दर रचना । आभार

    ढेर सारी शुभकामनायें.

    SANJAY KUMAR
    HARYANA

    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  13. सुंदर विचारों को समाहित किया है आपने इस कविता में..

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  14. बेहद गहन अर्थ समेटे उम्दा रचना।

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  15. नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल में आपकी रचना पढ़ी..
    बहुत सुन्दर सदा जी,
    बधाई.

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  16. अभिमान का दाना,
    तुम नहीं खाना,

    बड़ी सुन्दर रचना....
    सादर बधाई

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  17. ऐसे भोजन के दुर्लभ स्वाद और पोषण की महत्ता समझ पाये तो पूरे समाज का उद्धार हो जाये !

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  18. जिस अंदाज में अपने कहा मन को भा गया.. कहते हें 'जिसने खाया जैसा अन्न उसका हुआ वैसा ही मन' इसको ही सार्थक कर रही है कविता.

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