गुरुवार, 26 नवंबर 2009

मेरे घाव आज भी ....

See full size imageकहते हैं वक्‍त हर घाव भर देता है

पर मेरे घाव आज भी

उतनी ही टीस देते हैं

संवेदनाओं के मरहम

से मुझे और पीड़ा होती है

सफेदी इसकी

उतनी शीतल नहीं रही

ज्‍वंलत हो गई है

आंखे नहीं देखना चाहती

वह दृश्‍य

जब इन सफेदपोशो ने

चढ़ाये थे इनपर हार फूलों के

इन्‍हें शहीद कहकर

जाने कितने घोषणाओं से

बटोरी थी वाहवाही

कहने की बजाय ये

कुछ करके दिखाते

जिससे कम होता

आतंक का साया

जिसके भय से हम

आज भी मुक्‍त नहीं हुये हैं ।

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

सवाल मेरा ...?


सवाल पर

सवाल मेरा,

तुम्‍हारा

खामोश रहना,

जानते हो

कितनी उलझने

खड़ी कर देता है

मेरे लिये,

उन खामोशी के

पलों में कितना

बिखर जाती हूं

तुम्‍हारे जवाब देने तक

टूट जाती हूं

इतना कि

फिर एकाकार नहीं हो पाती

निर्विकार होकर

अपने आप से ही

विमुख हो जाती हूं

मैं भी तुम्‍हारी तरह ।


शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

हंसी में द्वेश ...

मैं आज बांटना चाहता हूं

लोगो के गम

देना चाहता हूं

उनके होठों पे मुस्‍कान

पर उन्‍हें मेरी

इस बात पे यकीं नहीं होता

जरूर किसी ने उन्‍हें

धोखा दिया होगा,

तभी तो उन्‍हें आदत हो गई है

फरेब, मक्‍कारी की,

धोखे और बेईमानी की

वह सच में झूठ

हंसी में द्वेश

प्‍यार में नफरत को देखा करते हैं ।

बुधवार, 18 नवंबर 2009

देवता पे चढ़ाया न जाएगा ...

कल वो बच्‍चा था बहल गया था बातों से

आज उसकी सोच को बहलाया न जाएगा ।

कलियां खिलने से पहले मुर्झा गई हैं अब,

यूं इनको किसी देवता पे चढ़ाया न जाएगा

मेरे जज्‍बातों की कदर थी उसको तभी तो,

कहा उसने मुंह मोड़ के यूं जाया न जाएगा ।

दफ्न जाने थे कितने राज उसके सीने में,

हर राज यूं सरेआम बतलाया न जाएगा ।

नफरतो के साये में बीता है हर दिन मेरा,

नगमा वफा का मुझसे गाया न जाएगा ।

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

भीगा चेहरा ...

मेरे आंसुओ से भीगा चेहरा

तुम्‍हें कभी अच्‍छा नहीं लगता कि

मैं रोऊं

पर कारण जरूर बन जाते हो

कभी देर से आने पर

कभी बिना कुछ कहे

चले जाने पर

कभी कभी हंस के मनाने पर ।


मंगलवार, 10 नवंबर 2009

कौन सा शब्‍द ...?

जाने कब

कौन सा शब्‍द

रच देता है इतिहास

जिससे अमर

हो जाती हैं रचनायें

जाने कौन सा पल

घटित हो जाता है

जीवन में

जाने कब

जब वह अविस्‍मरणीय

हो जाता है,

जाने वक्‍ता हो जाता है

जीवन में कब मौन

खो जाता है हर लफ्ज,

उसका जाने कब

घटित हो जाती हैं

जीवन में

ऐसी घटनाएं

जब वह अपनों के बीच

रहकर भी तन्‍हा हो जाता है !


सोमवार, 9 नवंबर 2009

शबनमी बूंदे जो ...


नाजुक पंखड़ी तेरी हर एक ठहरी गुलाब,

खिले जब तू लगे सिर्फ मेरा ही मेरा हो ।

हवायें मंद-मंद खुश्‍बू साथ तेरी लायें जब,

मन में मेरे तेरी खुश्‍बू का हरदम फेरा हो ।

मैं संभलकर लाख राहों पे चला रहबर तो,

करता क्‍या जो कांटो पे ही तेरा बसेरा हो ।

तेरी नजाकत से वाकिफ हैं कांटे भी तभी,

चाहत में तेरी चारों ओर इनका ही घेरा हो ।

शबनमी बूंदे जो तुझपे आकर ठहर जाती,

कह रही हो जैसे पहले हक इन पे मेरा हो ।

शुक्रवार, 6 नवंबर 2009

तेरे डर से वह ...

मैं आज तुझसे तेरी

शिकायत करना चाहता हूं

जिस बात का इल्‍म

तुझको है

पर य‍कीं नहीं

वह भी बताना चाहता हूं

कोई गर

तेरी बात मानता है

तो उसे तेरी

फिक्र होती है

तेरे डर से वह

हर बात मानता नहीं ।

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

न सुनने की बीमारी है ...

खामोशियों पे तनहाई आज भारी है,

हम ही जाने कैसे रात गुजारी है ।

कान तरसते रहे सुनने को आवाज,

हर आहट पे चौकता ये हर बारी है ।

मेरे कहते कहते लब सूख गये,

तुझको तो न सुनने की बीमारी है ।

नजरों को झुका लेगा या मुंह फेरेगा,

जाने कोई कैसे ये तू ही अत्‍याचारी है ।

सिला न देना मेरी मुहब्‍बत का मत दे,

रूठे तू जब भी मनाना मेरी जिम्‍मेदारी है ।

मंगलवार, 3 नवंबर 2009

पवित्रता की आंच पर ....

अभिमान का दाना,

तुम नहीं खाना,

तुम्‍हें भी

अभिमान आ जाएगा

सजाना रिश्‍तों को

अपनेपन से

परोसना

उनकी थाली में

स्‍नेह का भोजन

जिसे पकाया गया हो

पवित्रता की आंच पर

जिससे

उसमें महक होगी

विश्‍वास की,

एकता का रस होगा

जो तुम्‍हारी जिभ्‍या को

रसास्‍वादन कराएगा,

तुम्‍हारी सोच को

संकुचित नहीं होने देगा

एक मजबूत मस्तिष्‍क

जो लड़ सकेगा

हर चुनौती से,

बचाएगा

तुम्‍हारे विचारों को

इधर-उधर भटकने से

संजो सकोगे तुम

वो सपने जिन्‍हें

हकीकत बनने से

कोई रोक नहीं पाएगा ।