रिश्ते न बढ़ते हैं,
रिश्ते न घटते हैं,
वो तो उतना ही
उभरते हैं ।
जितना रंग उनमें,
हम अपनी
मुहब्बत का भरते हैं ।
रिश्ते उतना ही
मिटते हैं
जितनी नफरत
हम आपस में
करते हैं ।
रिश्ते न बढ़ते हैं,
रिश्ते न घटते हैं,
वो तो उतना ही
उभरते हैं ।
जितना रंग उनमें,
हम अपनी
मुहब्बत का भरते हैं ।
रिश्ते उतना ही
मिटते हैं
जितनी नफरत
हम आपस में
करते हैं ।
धरा का सीना छलनी है इतना,
देख के आंखे नम हो जाती हैं ।
देखें बरखा कब तक आ पाती है ।
जाने कब माटी सोंधी कर पाती हैं ।
लोगों की उम्मीदें जो बंध जाती हैं ।
झूमेंगी फिजायें पवन ये कहती जाती है ।
चल रही हवायें इन दिनों मतलब की,
तू चला कर तो जरा संभल-संभल के ।
इनका झौंका तुझे भी ना लेकर चल दे,
अपनी बात किया कर संभल-संभल के ।
हिसाब की बातें किया कर संभल-संभल के ।
नादान दिल आ ही जाता है ऐसी बातों में,
लोगों से मिलाया कर इसको संभल-संभल के ।
अब तो ‘सदा’ रिस्ते बनाया कर संभल-संभल के ।
वफा की चाहत में ये,
दिल दीवाना हो गया ।
रहता है जिस तन में,
उससे बेगाना हो गया ।
नजरों में तस्वीर उसकी,
बसाये जमाना हो गया ।
ये तो इक खजाना हो गया ।
हम कदम हम निवाला था जो,
वो ख्वाब बन पुराना हो गया ।
ना बातें मुकद्दर की किया कर,
जो भी है तू हंस के जिया कर ।
जीने के हैं चार दिन इसी बात
पर ही अमल कर लिया कर ।
तेरे-मेरे की रूसवाईयों को छोड़,
सच्चाई से रूबरू हो लिया कर ।
झुका के सजदे में सर रब के,
आगे कानों को छू लिया कर ।
करनी कर के पछतावे जो कोई
तू ऐसे जुर्म से बच लिया कर ।
ये बातें गजल तो ना हुईं सदा तू
सीधी सच्ची बात समझ लिया कर ।
मेरी जिन्दगी खुली किताब,
जो भी पढ़ना चाहे पढ़ ले,
कहता जा रहा वक्त का,
हर लम्हा जिसको,
जो करना हो वो कर ले,
मेरी जिन्दगी . . .
ना मैं रूकता हूं,
ना मैं लौटकर आता हूं,
जिसको पकड़ना है मुझे,
बस इसी पल पकड़ ले,
मैं कहता हूं अच्छा भी,
मैं कहता हूं बुरा भी,
कोई पल मेरा,
रच देता इतिहास,
कोई पल मेरा,
बन जाता
किसी के लिए बनवास,
मेरी जिन्दगी . . .
खुशियां भी लाता हूं,
रंजो गम भी झोली में,
जिसको जो लेना है,
वह उसी पल पकड़ ले ।
जीत भी है हार भी,
मन में भरपूर विश्वास भी,
मेरी जिन्दगी . . .
मैं गतिमान हूं,
ना मैं अभिमान हूं,
ना ही मैं मान हूं,
मैं तो हर पल नियति के,
साथ कदम से कदम,
मिलाकर चलायमान हूं,
मेरी जिन्दगी . . .
मेरा नाम रहता,
सब की जुबान पर,
फिर भी होते,
सब मुझसे अंजान से,
मैं रूकता नहीं,
मैं ठहरता भी नहीं,
मैं किसी के लिए,
बदलता नहीं,
मैं किसी से कुछ,
छिपाता भी नहीं . . . ।
एक श्रमिक अपने लिये ऐसा सोचता है कि सारी उम्र उसे श्रम ही करना है उसके लिये ना तो विश्राम है ना ही पल भर के लिये आराम, यहां तक कि जीवन के अन्तिम दिनों में भी जब वह बोझ उठाने के काबिल नहीं रह जाता तो पेट भरने के लिये वो पत्थर तोड़ने जैसे काम करता है परन्तु आराम वह कभी नहीं कर पाता, वह क्या कुछ ऐसा महसूस नहीं करता . . .
मेहनत और लगन से काम करो तो,
कहते हैं किस्मत भी साथ देती है ।
कितनी की मेहनत, कितना बहा पसीना,
क्यों नहीं किस्मत मजदूर का साथ देती है ।
खेल खेलती किस्मत भी रूपयों का तभी तो
अमीर को धनी गरीब को ऋणी कर देती है ।
छोटी-छोटी चाहत छोटे–छोटे सपने सब हैं,
अधूरे ये बातें तो जीना मुश्किल कर देती हैं ।
श्रमिक के जीवन की किस्मत ही मेहनत है,
श्रम करते हुए ही जीवन का अंत कर देती है ।
यही बात उसके जीवन में बस रंग भर देती है ।
रिश्ते क्यों आज कल तनहाई मांगने लगे हैं,
लोग अपनों से अपनों का पता पूछने लगे हैं ।
लगाकर गले से बेगानों को अपनों की पीठ में,
हांथ मतलब का बस जब देखो फेरने लगे हैं ।
बनाने में अपना किसी को जब अपना कोई छूटे,
क्यों ऐसे ही रिश्ते आंगन में अपने जुटाने लगे हैं ।
लहू के रिश्ते बेनामी बन गये इसकदर क्या कहें
अपनों से मिलकर अब तो नजरें चुराने लगे हैं ।
फासले दिलों में हो गये इतनी दूरियां बढ़ गईं
महफिल में सदा बचकर निकल जाने लगे हैं ।
ये जिन्दगी मुझे तुमसे शिकायत है,
मेरी धड्कन मुझे तुमसे गिला है ।
आत्मा बताना सच – सच इस जिन्दगी से भी,
दुनिया में किसी को कुछ कभी भी मिला है ।
जीने का बस यही तो एक सिलसिला है ।
तमन्नाओं का नामोंनिशां न बाकी रह जाये,
यह जिन्दगी तो बस एक गुजरता काफिला है ।
चन्द रोज का मुसाफिर है हर आदमी यहां,
जिसने जो दिया उसको वही तो मिला है ।
शिकवा न करना सदा गिला ना करना बिछड. के,
कौन इस जहां से जाकर उस जहां में मिला है ।