गुरुवार, 4 जून 2009

बस एक गुजरता काफिला है . . .

ये जिन्‍दगी मुझे तुमसे शिकायत है,

मेरी धड्कन मुझे तुमसे गिला है

आत्‍मा बताना सच सच इस जिन्‍दगी से भी,

दुनिया में किसी को कुछ कभी भी मिला है ।

पूछा है तुमसे तो कहीं यह न कह देना,

जीने का बस यही तो एक सिलसिला है ।

तमन्‍नाओं का नामोंनिशां न बाकी रह जाये,

यह जिन्‍दगी तो बस एक गुजरता काफिला है ।

चन्‍द रोज का मुसाफिर है हर आदमी यहां,

जिसने जो दिया उसको वही तो मिला है ।

शिकवा न करना सदा गिला ना करना बिछड. के,

कौन इस जहां से जाकर उस जहां में मिला है ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. lajawaab rachna......zindagi ki sachchaiyan bayan karti rachna.

    जवाब देंहटाएं
  2. पर जिंदगी अपने आप में जिन्दगी अपने आप में खूबसूरत भी तो है.......... जिन्दगी से किसी को कुछ मिले न मिले पर उम्मीद तो है..........लाजवाब लिखा है आपने

    जवाब देंहटाएं
  3. चन्‍द रोज का मुसाफिर है हर आदमी यहां,
    जिसने जो दिया उसको वही तो मिला है ।

    आसान लफ्जों में ज़िन्दगी की सच्चाई बयां करदी है आपने...कमाल की रचना लिखी है...बधाई..
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  4. बिलकुल सत्य और सश्क्त अभिव्यक्ति है

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया........ज़िन्दगी है क्या, क्या खूब बताया आपने.....

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

    जवाब देंहटाएं