मंगलवार, 30 जून 2009

जितना रंग . . .

रिश्‍ते न बढ़ते हैं,

रिश्‍ते न घटते हैं,

वो तो उतना ही

उभरते हैं ।

जितना रंग उनमें,

हम अपनी

मुहब्‍बत का भरते हैं ।

रिश्‍ते उतना ही

मिटते हैं

जितनी नफरत

हम आपस में

करते हैं ।


13 टिप्‍पणियां:

  1. रिश्ते भी , हमारी भावनाओं की,
    कोख में ही तो पलते हैं..
    जैसे चलते हैं हम, साथ साथ,
    रिश्ते भी चलते हैं...

    तुम थाम के रखना ,
    हाथों में हाथ हमारा,
    सुना है रिश्ते भी,
    गिरते हैं संभलते हैं..

    जाने क्यूँ कुछ लोग हैं ऐसे,
    ऐसा सोचते हैं कैसे,
    रिश्ते बेमाने होते हैं, वे,
    हर रिश्ते की बात पे जलते हैं...


    सदा यूँ ही रिश्ते बनाती-निभाती रहे आप..हमारी शुब्काम्नायें ..

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  2. बहुत ही अच्छी बात कही है एक बहुत ही बढिया नसिहत भी.........

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  3. रिश्‍ते न बढ़ते हैं,
    रिश्‍ते न घटते हैं,
    वो तो उतना ही
    उभरते हैं ।
    जितना रंग उनमें,
    हम अपनी
    मुहब्‍बत का भरते हैं ।
    सच कहा .......आपके शब्द बोलते हुवे लगते हैं.........

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  4. सच्ची बात...थोड़े से शब्दों में गहरी बात कही है आपने...
    नीरज

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  5. वाह शब्द चातुर्य --
    भाव भी अनमोल

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  6. रिश्‍ते न बढ़ते हैं,
    रिश्‍ते न घटते हैं,
    वो तो उतना ही
    उभरते हैं ।
    जितना रंग उनमें,
    हम अपनी
    मुहब्‍बत का भरते हैं
    बहुत सही और सार्थक अभिव्यक्ति है बधाइ

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  7. रिश्‍ते न बढ़ते हैं,
    रिश्‍ते न घटते हैं,
    वो तो उतना ही
    उभरते हैं ।
    जितना रंग उनमें,
    हम अपनी
    मुहब्‍बत का भरते हैं ।
    बहुत सही और सार्थक अभिव्यक्ति बधाइ

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  8. बहुत सुन्दर नज़्म का सृजन किया है आपने बधाई

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  9. आप सभी का बहुत-बहुत आभार । आप सबके प्रोत्‍साहन से ये संभव हो सका है ।

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  10. रचना ना केवल रिश्तों को मज़बूत बनाये रखने की समझईश दे रही है बल्कि रिश्ते बचाये रखने के उपाय भी सुझा रही है।

    अच्छी रचना है, बधाई।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  11. रिश्‍ते न बढ़ते हैं,
    रिश्‍ते न घटते हैं,
    वो तो उतना ही
    उभरते हैं ।
    जितना रंग उनमें,
    हम अपनी
    मुहब्‍बत का भरते हैं ।
    kamal ki rachna hai......
    aapko dher saari badhayeyan........
    aage bhi esi sunder rachnayen padati rahiyega......

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