रविवार, 29 मार्च 2015

किसी और की खुशी में!!!!

खुशियों को जब भी देखा मैने
नये परिधान में
सोचा ज़रूर ये आज
किसी की हो जाने के लिये
तैयार हुई हैं!
...
बस उनके आग़त का
स्‍वागत करेगा जो
ये वहीं ठहर जाएंगी
पर कहाँ
इन्‍हें तो पल भर बाद
फिर आगे बढ़ जाना था
हिम्‍म़त कर पूछा
इतनी जल्‍दी चल दीं
थोड़ी देर तो और मेरा
साथ निभाया होता!!
....
वो मुस्‍करा के बोल उठीं
हम तो रहती हैं
यूँ ही गतिमान
नहीं है निश्चित
हमारा कोई परिधान
जब चाहा
एक लम्‍हा लिया रब से
किसी को सौंप दिया
फि़र किसी और के पास चले
हम लम्‍हों के संग
साथ तो तुम्‍हें निभाना होता है
किसी और की खुशी में
मुस्‍काराना होता है !!!!



बुधवार, 4 मार्च 2015

होली मुबारक!

फागुन मुस्‍काराता है
जब गुलाल
उँगली और अॅंगूठे को छोड़
हथेली में जाने को मचलता है
रंगीला सावन मनभावन हो
हर चेहरे को रंगता है
रंगों की फुहार में
भीग जाती है अनबन भी
तो बोल उठती है
होली मुबारक!
...
रंगों को भी
प्‍यास है पानी की
अपनों को भिगोने की
कुछ रिश्‍तों को
रंग देना चाहते हैं
स्‍नेह, प्‍यार और सम्‍मान से!!
....
एक चुटकी अबीर
माथे पे लगकर
सम्‍मान हो जाता है
गाल पे लगता है तो
स्‍नेह का फागुन
भीगकर प्‍यार हो जाता है
रंगों का ये त्‍योहार
घोलता है मिठास
सम्‍बंधों में जब-जब
तो जीवन का पल-पल
बस उल्‍लास हो जाता है!!!