शनिवार, 23 नवंबर 2013

मु़मकिन हो के न हो !!!!













कुछ पाक़ीज़ा से रिश्‍ते
जिनकी सरपरस्‍ती के लिये
दुआ़ जब भी निकलती
सर पे कफ़न बाँध के
ये कहते हुए
मु‍मकि़न हो के न हो
पूरा कर के लौटूंगी
तेरी ख्‍वा़हिश मेरे मौला !!!!
...
तबस्‍सुम की गली
मिला दर्द अंजाना सा तो
बढ़ा दी हथेलियाँ मैने
ओक़ में,
बस आँसू थे ज़ानां
कुछ नमक मिला था इनमें
सलीक़े का इस क़दर
बस लबों को खारापन दे गये
इस उम्‍मीद के साथ
जब भी इनका जि़क्र होगा
तेरा नाम न अाने देंगे
सिहर गई पी के जिंदगी इनको
और एक वादा किया
ये नमक तेरी वफ़ा का
ता-उम्र दिल में छिपा के रखेगी !!!!

28 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद सटीक अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. बहुत सुन्दर

    बस आँसू थे ज़ानां
    कुछ नमक मिला था इनमें
    सलीक़े का इस क़दर
    बस लबों को खारापन दे गये
    इस उम्‍मीद के साथ
    जब भी इनका जि़क्र होगा
    तेरा नाम न अाने देंगे
    सिहर गई पी के जिंदगी इनको
    और एक वादा किया
    ये नमक तेरी वफ़ा का
    ता-उम्र दिल में छिपा के रखेगी !!!!

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  3. गहन भाव ....सुंदर अभिव्यक्ति ....

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  4. निशब्द करती रचना.....
    बेहद खूबसूरत पंक्तियां.... आमीन...!!!

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  5. खुबसूरत ,,अहसासों का वादा निबाहती रचना ,,,,,,
    शुभकामनायें!

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  6. इसे कहते हैं नमक का हक़...सुन्दर रचना...

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  7. वाह!वाह!वाह!..कितना सुन्दर कहा है..

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  8. ये नमक तेरी वफ़ा का
    ता-उम्र दिल में छिपा के रखेगी !!!!

    वाह गज़ब !!!!!

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार को (24-11-2013) बुझ ना जाए आशाओं की डिभरी ........चर्चामंच के 1440 अंक में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  10. तबस्‍सुम की गली
    मिला दर्द अंजाना सा तो
    बढ़ा दी हथेलियाँ मैने
    ओक़ में,
    बस आँसू थे ज़ानां
    कुछ नमक मिला था इनमें
    सलीक़े का इस क़दर
    बस लबों को खारापन दे गये
    इस उम्‍मीद के साथ
    जब भी इनका जि़क्र होगा
    तेरा नाम न अाने देंगे
    सिहर गई पी के जिंदगी इनको
    और एक वादा किया
    ये नमक तेरी वफ़ा का

    सुन्दर भावकनिका।

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  11. दिल को जख्म देता है ये नमक ... पर फिर भी ये अंदर ही रहता है ... दिल के बहर नहीं आता ...

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  12. ये नमक तेरी वफ़ा का
    ता-उम्र दिल में छिपा के रखेगी !!!!
    ...लाज़वाब....दिल को छूते बहुत कोमल अहसास...

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  13. आप की संवेदनाओं को महसूस करने की गहराई और उसी गहराई से निकले अलफ़ाज़ हमेशा दिलोदिमाग पर एक गहरी छाप छोड़ जाते हैं!!

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  14. बहुत शिद्दत से लिखी गयी पंक्तियाँ...बधाई !

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  15. बहुत ही सहज शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने..... खुबसूरत अभिवयक्ति....

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  16. कितनी गहरी बात कह दी आपने...वाह सदा जी।

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  17. दुआ कोई भी ... सिर पर उसके कफ़न तो बँधा ही रहता है..
    दुआ मुक़म्मल हो आपकी....

    ~सादर

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  18. बहुत सुन्दर.....
    बहुत गहरी बात......

    सस्नेह
    अनु

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  19. नमक बना रहे .... बहुत सुंदर ... पाकीज़ा सी रचना

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