शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

यक़ीन के रास्‍ते में !!!!

दबी जुबान का सच  सुनकर तुम्‍हें
यक़ीन होता है क्‍या ???
फिर आखिर उस सच के मायने
बदल ही गये न !
शक़ का घेरा कसा पर यह कसाव
किस पर हुआ कैसे ह‍ुआ
हर बात बेमानी हुई
सच आज भी अपनी जगह अटल है
पर दबी जुबान का सच
शक़ के घेरे में ही रहता है
यक़ीन के रास्‍ते में
जब भी दोहरापन आता है
सच दूर खड़ा होकर उसकी इस हरक़त पर
उसे ही तिरस्‍कृत करता है
...
जाने क्‍यूँ लोग सच की भी परतें उतारने लगते हैं
छीलते जाते हैं - छीलते जाते है इतना
जब तक सच के नीचे दब न जायें
भूल जाते हैं परत-दर-परत सच का वज़न
और बढ़ता जाएगा फिर वही सच
सवालों के कटघरे में अपनी परतों के साथ
सुबूत बन जाएगा उसके खिलाफ़
विश्‍वास का कत्‍ल किया, सच को गुनहगार बनाया
फिर भी जी नहीं माना तो खुद को
बेक़सूर बता निर्दोष होने की दुहाई दी
और समर्पण कर दिया !!!

27 टिप्‍पणियां:

  1. विश्‍वास का कत्‍ल किया, सच को गुनहगार बनाया
    फिर भी जी नहीं माना तो खुद को
    बेक़सूर बता निर्दोष होने की दुहाई दी
    और समर्पण कर दिया !!!
    सुंदर प्रस्तुति , बधाई

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  2. बेहतरीन सुन्दर अभिव्यक्ति,आभार.

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  3. कौन कहता है सच खुलकर..... सब समझौतावादी हुए....

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  4. दबी जुबान के सच को सजा भुगतने की आदत सी हो जाती है...
    उमड़ते भाव का सच्चा चित्रण ....

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  5. सुन्दर भाव. ऑस्कर पिस्तोरिउस का ताज़ा मामला ही देख लीजिये.

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई ...

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  7. समझौतों से ज़िन्दगी नहीं चलती
    सच कहते तो आज दिल
    कुछ और ही होता
    या तू होता या मैं होता
    पर सच साथ तो होता
    न तुम घुटते न मैं घुटता
    ये घर आबाद तो होता

    सुन्दर रचना | पर समझौते के जीवन की उम्र ज्यादा नहीं होती | आभार

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  8. विश्‍वास का कत्‍ल किया, सच को गुनहगार बनाया
    फिर भी जी नहीं माना तो खुद को
    बेक़सूर बता निर्दोष होने की दुहाई दी
    और समर्पण कर दिया !!!

    बहुत उम्दा भावपूर्ण रचना ,,,,

    Recent post: गरीबी रेखा की खोज

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  9. सच आज भी अपनी जगह अटल है
    पर दबी जुबान का सच
    शक़ के घेरे में ही रहता है

    शत प्रतिशत सच कहा आपने . वैसे ताकतवर के सच को दबी जुबान से ही कहा जाता है क्योंकि कहीं वह सच जुबान हमेशा के लिए खामोश न कर दे .

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  10. सच का सौन्दर्य बने रहने देने में ही भलाई है..

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  11. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (24-02-2013) के चर्चा मंच-1165 पर भी होगी. सूचनार्थ

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  12. बहुत बढ़िया आदरेया -
    आभार आपका ||

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  13. सच आखिर तक सच ही रहता है, हाँ कड़वा जरुर हो जाता है... गहन भाव... शुभकामनायें

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  14. जाने क्‍यूँ लोग सच की भी परतें उतारने लगते हैं
    छीलते जाते हैं - छीलते जाते है इतना
    जब तक सच के नीचे दब न जायें
    भूल जाते हैं परत-दर-परत सच का वज़न
    और बढ़ता जाएगा फिर वही सच
    सवालों के कटघरे में अपनी परतों के साथ

    बहुत खूब!

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  15. बहुत भावपूर्ण रचना, शुभकामनायें

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  16. संगीता स्‍वरूप जी E-mail से
    दबी ज़ुबान का सच .... भले ही शक के घेरे में रहे पर होता तो सच ही है .....कितना भी झुठलाओ सच का वज़न हमेशा ज्यादा होता है .....खुद को निर्दोष बताने के लिए भले ही कोई सच को दबाये पर वो खुद से नहीं भाग सकता ...... सशक्त अभिव्यक्ति ॥

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  17. मनोवैज्ञानिक तत्व लिए बढ़िया प्रस्तुति

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  18. बहुत सही बयान करती कविता |सच के वजन को तो बढ़ना ही है |
    आशा

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  19. ये बात तो सही है की सच कभी हारता नहीं है .......वक्त में दब जरुर जाता है कुछ वक्त के लिए ...पर वो सामने आता जरूर है

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  20. विश्‍वास का कत्‍ल किया, सच को गुनहगार बनाया
    फिर भी जी नहीं माना तो खुद को
    बेक़सूर बता निर्दोष होने की दुहाई दी
    और समर्पण कर दिया !!!

    ....बहुत खूब! बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...

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  21. शुक्रिया सदा मेरी कविता को पसंद करने के लिए
    आपकी ये नज़्म पढ़ी . बहुत सुन्दर लिखा है .. बधाई स्वीकार करिए
    सच के कई शेड्स है इसमें. शब्द भावपूर्ण है . और सही है कि सच हमेशा ही उभर कर आता है . आपकी दूसरी सारी रचनाये भी सुन्दर है .

    विजय
    www.poemsofvijay.blogspot.in

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