सोमवार, 14 जनवरी 2013

ये निर्णय ... शून्‍य होकर भी अडिग कैसे है ???














निर्णय शून्‍य है
हर तरफ एक रिक्‍तता का अहसास है
सन्‍नाटा भयाक्रांत अपने आप से
तोहमतो का बाज़ार गर्म है
कुछ तोहमतें लटकी हैं सलीब पर
बहते लहू के साथ
बड़ा ही भयावह दृश्‍य है
अंतर्रात्‍मा चीत्‍कार करती है
हर बार इक नई कसौटी पर
कब तक आखिर कब तक
वह अपने अधिकारों के लिये
आहुति देगी अपने स्‍वाभिमान की
...
निर्णय .. आखिर कब लिया जाएगा ???
या किया जाएगा ...
ये सवाल आज भी अटल है
हर शख्‍़स के कांधे पर
हर माँ की आँखो में,  हर बेटी की जुबान पर
तारीख गवाह होती है हर बार
कानून की नज़र में
जुर्म बड़े ही शातिर तरीके
बड़े ही सुनियोजित ढंग से
अंजाम दे दिया जाता है
फरियादी सुनवाई के लिये
आत्‍मा की पैरवी करते-करते
एक दिन खुद-ब-खुद तारीख बन जाता है !!!
...
निर्णय .. खुद कैद में है जब
कहो कैसे वह जिरह करे अपनी आजादी की
मुझे बुलंदी का ताज़ पहनाओ
हर सोई हुई आत्‍मा को जगाओ
व्‍यथित है हर भाव मन का
पर फिर सोचती हूँ
ये निर्णय ... शून्‍य होकर भी
अडिग कैसे है
जरूर रूह इसकी भी छटपटा रही होगी
तभी तो इसने अपने जैसी रूहों को
एक साथ कर ...
एक नाम दिया है संकल्‍प का
...

28 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर रचना, सामयिक

    फरियादी सुनवाई के लिये
    आत्‍मा की पैरवी करते-करते
    एक दिन खुद-ब-खुद तारीख बन जाता है !!!

    बिल्कुल सहमत..

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  2. जुर्म बड़े ही शातिर तरीके
    बड़े ही सुनियोजित ढंग से
    अंजाम दे दिया जाता है
    फरियादी सुनवाई के लिये
    आत्‍मा की पैरवी करते-करते
    एक दिन खुद-ब-खुद तारीख बन जाता है !!!

    बहुत सही प्रस्तुति । निर्णय को बंधमुक्त करना होगा स्त्री को सक्षम बनना ही होगा काया वाचा मन से ।

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  3. अब न हो तो शायद देर न हो जाए ... अभी समय है संकल्प लेना होगा सभी को ...
    सामयिक रचना ...

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  4. आत्‍मा की पैरवी करते-करते
    एक दिन खुद-ब-खुद तारीख बन जाता है !!!
    ...

    संकल्प लिए बिना अब कुछ नहीं होने वाला ... बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  5. sarthak Rachna...
    निर्णय .. खुद कैद में है जब
    कहो कैसे वह जिरह करे अपनी आजादी की

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  6. सुन्दर प्रस्तुति |
    संक्रांति से संकल्प की गति और तेज हो-

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  7. आत्‍मा की पैरवी करते-करते
    एक दिन खुद-ब-खुद तारीख बन जाता है....
    ----------------------------
    सामयिक,सुन्दर रचना..

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  8. बहुत सुन्दर जज्बे को दर्शाती ये कविता हमें और मजबूत होने का सन्देश देती है। ये बाते हराने की और नहीं विजय की ओर इंगित करती हैं

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  9. निर्णय .. खुद कैद में है जब
    कहो कैसे वह जिरह करे अपनी आजादी की
    बहुत सुन्दर।
    New post: कुछ पता नहीं !!!
    New post अहंकार

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  10. सच में ! आँखों के आगे तस्वीर तैर गयी.... रिक्तता के घोर सन्नाटे में सलीब पर लटके हुए कुछ सवाल... लहूलुहान :(
    जवाब चाहिए... निर्णय चाहिए.......
    ~सादर!!!

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  11. विचारणीय प्रश्न.. सार्थक सवाल.. पता नहीं जवाब देने वालों के पास जवाब है भी या नहीं!!

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  12. बहुत सुन्दर रचना...
    गहन भाव लिए..

    मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ सदा!
    सस्नेह
    अनु

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  13. गहनता लिए हुए भावपूर्ण रचना...
    मकर संक्रांति की बहुत - बहुत शुभकामनाएं...

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  14. फरियादी सुनवाई के लिये
    आत्‍मा की पैरवी करते-करते
    एक दिन खुद-ब-खुद तारीख बन जाता है !!!

    ....गहन भाव लिए बहुत भावपूर्ण सशक्त अभिव्यक्ति..

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  15. निर्णय .. खुद कैद में है जब
    कहो कैसे वह जिरह करे अपनी आजादी की,,,

    बहुत सुंदर गहन भाव लिए उम्दा प्रस्तुति,,,

    recent post: मातृभूमि,
    मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!,,,,

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  16. बेहतरीन रचना , प्रासंगिक प्रश्न उठाती

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  17. निर्णय - शून्य। सार्थक, प्रासंगिक।
    गीता के प्रथम अध्याय सा अर्जुन की शून्यता??

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  18. प्रासंगिक प्रश्न उठाती, गहन भाव लिए बहुत सुंदर प्रस्तुति... मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएँ!,,

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  19. जुर्म बड़े ही शातिर तरीके
    बड़े ही सुनियोजित ढंग से
    अंजाम दे दिया जाता है
    फरियादी सुनवाई के लिये
    आत्‍मा की पैरवी करते-करते
    एक दिन खुद-ब-खुद तारीख बन जाता है !!!कट्टू सत्य को दर्शाती सुंदर एवं सार्थक भवाभिव्यक्ति...

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