सोमवार, 5 नवंबर 2012

कुछ गुनाह ...!!!

कुछ गुनाह भागते हैं
भागते ही रहते हैं सच का सामना करने से
सच का भय उन्‍हें चैन से पलकें भी
झपकने नहीं देता
खोजती दृष्टि ... के आगे
जब भी पड़े सूखे पत्ते से कांप उठे
या पीला ज़र्द चेहरा लिये
अपनी ही नजरो से ओझल होते
...
कुछ गुनाहों को मैने
देखा है नींद के लिये तरसते हुये
खुली आंखों से लम्‍बी रातों की कहानी
सन्‍नाटों को चीरती अंजानी आवाजें
घबराकर कानों पर हथेलियों का रखना
चिल्‍लाकर दीवारों के आगे सच कुबूल करना फिर
पसीने से तर-ब-तर हो
थाम लेना सिर को उफ् ये क्‍या हो गया !
के शब्‍द
सच कहूँ जीना दूभर कर देते हैं
...
कुछ गुनाह़ अंजाने में हो जाते हैं जब भी
सच के सामने शर्मिन्‍दा होते हैं
पश्‍चाताप के आंसुओं से
मन की सारी ग्‍लानि को बहाकर
कुबूल कर लेते हैं अपना अपराध और
हर गुनाह से तौबा कर सच का साथ देते हुए
यही कहते हैं ...
सच कभी छिपता नहीं
कभी कैद नहीं होता 
अटल .. अविचल ... अमिट जो होता है
वही मन का सुकून होता है !!!
....

36 टिप्‍पणियां:

  1. सच कभी छिपता नहीं
    कभी कैद नहीं होता
    अटल .. अविचल ... अमिट जो होता है
    वही मन का सुकून होता है !!!

    शायद यही सत्य है

    जवाब देंहटाएं
  2. सच कभी छिपता नहीं
    कभी कैद नहीं होता
    अटल .. अविचल ... अमिट जो होता है
    वही मन का सुकून होता है !!!

    अमिट सच !!

    बहुत खूब !!

    जवाब देंहटाएं
  3. सच अपने आप से छिपता नहीं , !
    अटल सत्य !

    जवाब देंहटाएं
  4. अखण्ड सत्य सदा जी सच कहा है आपने बेहतरीन रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. कुछ गुनाहों को मैने
    देखा है नींद के लिये तरसते हुये
    खुली आंखों से लम्‍बी रातों की कहानी
    सन्‍नाटों को चीरती अंजानी आवाजें
    घबराकर कानों पर हथेलियों का रखना
    चिल्‍लाकर दीवारों के आगे सच कुबूल करना फिर
    पसीने से तर-ब-तर हो
    थाम लेना सिर को उफ् ये क्‍या हो गया !
    के शब्‍द
    सच कहूँ जीना दूभर कर देते हैं ..........waah bahut sundar baat kah di aapne in panktiyon mein ..

    जवाब देंहटाएं
  6. सच कभी छिपता नहीं
    कभी कैद नहीं होता
    अटल .. अविचल ... अमिट जो होता है
    वही मन का सुकून होता है !!!

    यही शाश्वत है ।

    जवाब देंहटाएं
  7. सच से हरदम भागते, भारी विकट गुनाह |
    कहीं बदल कर रखी तो, आह आह ही आह |
    आह आह ही आह, राह बाधित हो जाए |
    खैरख्वाह शैतान, नहीं फिर पास बुलाये |
    खुराफात में लीन, अगर यह नहीं रहेगा |
    इस दुनिया से जाय, भला क्या वहाँ कहेगा ||

    इसीलिए करता रहे, बन्दा यहाँ कुकर्म |
    छोड़ छाड़ के शर्म को, छेड़-छाड़ का धर्म ||

    जवाब देंहटाएं
  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  9. कुछ गुनाह़ अंजाने में हो जाते हैं जब भी
    सच के सामने शर्मिन्‍दा होते हैं
    पश्‍चाताप के आंसुओं से
    मन की सारी ग्‍लानि को बहाकर
    कुबूल कर लेते हैं अपना अपराध और
    हर गुनाह से तौबा कर सच का साथ देते हुए
    यही कहते हैं ...
    सच कभी छिपता नहीं

    वाह बहुत खुबसूरत.......मैं इस पंक्ति को आपके नाम के साथ फेसबुक पर शेयर कर रहा हूँ :-)

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत बढ़िया...

    कुछ गुनाह़ अंजाने में हो जाते हैं जब भी
    सच के सामने शर्मिन्‍दा होते हैं
    पश्‍चाताप के आंसुओं से
    मन की सारी ग्‍लानि को बहाकर
    कुबूल कर लेते हैं अपना अपराध ....

    सच बात..
    सस्नेह
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  11. ज़ख्म जब भी कोई जहन-ओ-दिल पे लगा ज़िंदगी की तरफ एक दरीचा खुला
    हम भी गोया किसी साज़ के तार हैं चोट खाते रहे गुन-गुनाते रहे.....

    जवाब देंहटाएं
  12. मन के सुकून से बढ़ कर कोई सुकून नही ......
    शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  13. सच ही जीते, हर घटना में..वही साध्य हो।

    जवाब देंहटाएं
  14. वाह बहुत खूब ... :)

    भुने काजू की प्लेट, विस्की का गिलास, विधायक निवास, रामराज - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  15. कुछ गुनाह़ अंजाने में हो जाते हैं जब भी
    सच के सामने शर्मिन्‍दा होते हैं
    पश्‍चाताप के आंसुओं से
    मन की सारी ग्‍लानि को बहाकर
    कुबूल कर लेते हैं अपना अपराध ....बहुत सही कहा सदा जी.बहुत बढ़िया...

    जवाब देंहटाएं
  16. क्या इत्तेफाक है , मैं अभी crime petrol ही देख रहा था , कि यहाँ भी गुनाह की बात | :)
    वैसे सचमुच बहुत ही बखूबी लिखा है , मन की मनोभावनाओं को | गुनाह तो हर कोई करता होगा कोई छोटा तो कोई बड़ा , लेकिन उसके बाद जो उसके मन में अंतर्द्वंद चलता है उसका बहुत अच्छा चित्रण |
    "चिल्‍लाकर दीवारों के आगे सच कुबूल करना"
    मेरी पसंदीदा पंक्ति |
    कुछ मेरा भी -
    आज जब नाखूनों से दिल को करोंचा अपने ,
    मुझे तेरे लहू के वहाँ , छींटे नजर आये |

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  17. अंजाने में किया गया गुनाह तो क्षम्य होता है यदि लोग यह समझने लगें कि उनका किया गया कार्य गुनाह है तो शायद गुनाह कुछ कम हो जाएँ ..... सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  18. बिल्कुल..... विचारणीय भाव लिए कविता

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....

    जवाब देंहटाएं
  20. सच कभी छिपता नहीं
    कभी कैद नहीं होता
    अटल .. अविचल ... अमिट जो होता है
    वही मन का सुकून होता है !!!

    ..बेहद उम्दा और सटीक.
    एक झूट को छिपाने के लिए हजार झूट बोलने पड़ते हैं और इस तरह आदमी झूट के सागर में डूबता जाता है-डूबता जाता है ...फिर एक सच्च के साथ ही इस सागर से बहार निकल आता है और एक सकून भरी जिन्दगी जीने लगता हैं.

    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत हैं ...
    http://rohitasghorela.blogspot.in/2012/11/blog-post_6.html

    जवाब देंहटाएं
  21. कुछ गुनाह़ अंजाने में हो जाते हैं जब भी
    सच के सामने शर्मिन्‍दा होते हैं
    पश्‍चाताप के आंसुओं से
    मन की सारी ग्‍लानि को बहाकर
    कुबूल कर लेते हैं अपना अपराध और
    हर गुनाह से तौबा कर सच का साथ देते हुए
    यही कहते हैं ...
    सच कभी छिपता नहीं
    कभी कैद नहीं होता
    अटल .. अविचल ... अमिट जो होता है
    वही मन का सुकून होता है !!!


    बिल्कुल सच, मन को छू गई ये रचना
    बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  22. सच कभी छिपता नहीं
    कभी कैद नहीं होता
    अटल .. अविचल ... अमिट जो होता है
    वही मन का सुकून होता है !!!

    गलतियों से सबक लेकर आगे बढना ही जिंदगी है
    दुख तो तब होता है जब लोग गलती करके भी खुद को सही ठहराते है
    और दुनिया में अधिकतर समस्याएँ इसी वजह से होती है
    बहुत उम्दा रचना है ।

    जवाब देंहटाएं
  23. पश्‍चाताप के आंसुओं से
    मन की सारी ग्‍लानि को बहाकर
    कुबूल कर लेते हैं अपना अपराध और
    हर गुनाह से तौबा कर सच का साथ देते हुए
    यही कहते हैं ...
    सच कभी छिपता नहीं

    सही कहा कि गुनाह कबूलने में ही मन की शांति है ।

    जवाब देंहटाएं
  24. bahu sundar rachna" jb sachayee nirvasn hone lagi log bastra pahnane lage hai.....such ko khule man se swikar kar lena hi shreyashkr hota hai

    जवाब देंहटाएं
  25. बहुत बढ़िया और सच्ची बात

    जवाब देंहटाएं
  26. ...anjane me sahi ,anubhuti hote hi kuchh pashchataap ajeevan chalte hain.man ko chhooti panktiyan

    जवाब देंहटाएं
  27. कुछ गुनाह़ अंजाने में हो जाते हैं जब भी
    सच के सामने शर्मिन्‍दा होते हैं
    पश्‍चाताप के आंसुओं से
    मन की सारी ग्‍लानि को बहाकर
    कुबूल कर लेते हैं अपना अपराध और
    हर गुनाह से तौबा कर सच का साथ देते हुए
    यही कहते हैं ...
    सच कभी छिपता नहीं
    कभी कैद नहीं होता
    अटल .. अविचल ... अमिट जो होता है
    वही मन का सुकून होता है !!!
    bahut behtareen abhiwayakti .......sacchaai ko uker diya hai kagaj ke pannon par ...badhai....

    जवाब देंहटाएं
  28. सच कभी छिपता नहीं
    कभी कैद नहीं होता
    अटल .. अविचल ... अमिट जो होता है
    वही मन का सुकून होता है !!!
    ....

    SADA JI BAHUT HI SUNDAR RACHANA ....VAKAI SACH KABHI NAHI CHHIPATA HAI .

    जवाब देंहटाएं
  29. कुछ गुनाह़ अंजाने में हो जाते हैं जब भी
    सच के सामने शर्मिन्‍दा होते हैं
    पश्‍चाताप के आंसुओं से
    मन की सारी ग्‍लानि को बहाकर
    कुबूल कर लेते हैं अपना अपराध ....
    एकदम सही बात..
    बहुत ही बढ़ियाँ रचना...

    जवाब देंहटाएं
  30. झूट के आवरण तले सच कुलबुलाता रहता है...कभी न कभी वह आवरण को हटा देने में सफल हो ही जाता है...सुंदर रचना!!

    जवाब देंहटाएं
  31. कुछ गुनाहों को मैने
    देखा है नींद के लिये तरसते हुये
    खुली आंखों से लम्‍बी रातों की कहानी
    सन्‍नाटों को चीरती अंजानी आवाजें
    घबराकर कानों पर हथेलियों का रखना...


    कुछ गुनहा जान कर किए जाते हैं और कुछ अनजाने में हो जाते है ...पर मन पर पड़े बोझ को कोई कैसे कम करे ...सशक्त अभिव्यक्ति ...बहुत खूब ...सादर

    जवाब देंहटाएं