बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

गौरैया की चोंच में दबी किरण ...!!!














एक छवि तुम भाव की,
नज़र तुम पर जो उठे सम्‍मान की,
विषमताओं के मार्ग भी
अवरूद्ध से हो गये
जो हँसे लब तल्खियों से
वो विक्षिप्‍तता का भान अब कर रहे
तुम्‍हारे रास्‍ते में
सत्‍य अविचल था खड़ा हर मोड़ पर
देखकर कंटीली बाडियां
रक्‍तरंजित हथेलियों में कुंठाओं के तीर थामे
आह! के वो स्‍वर लिये
बच निकलने के रास्‍ते को थे खोजते
....
कामयाबी के शोर में वो हर कदम पे
असफलता का स्‍वाद चखते हुए
अपनी पीठ खुद थपथपाते
पूछते मूलमंत्र तुम्‍हारी सफलताओं का
माथे पे पसीने की बूंदों को  छिपाते
विस्मित नयनों को मूंदकर
कुछ चमत्‍कार की अभिलाषा रखते
लड़खड़ाते कदमों से
अपने शरीर का भार घसीटते चलते
ये दृश्‍य उनके लिए करूण है
पर मेरे लिये जैसे को तैसा
...
तुम साधक बन हर शब्‍द का
आह्वान करती मन के मंदिर में
एहसासों के दीप जलाती
मिटाती हर मन के क्‍लेश को
अलौकित करती हर भावना को
सद्भावनाओं के द्वार पर
प्रतीक बनती विनम्रता का
...
तुम्‍हारी तपस्‍या से मेरा मन
भाव-विह्वल हो नित दिन अभिषेक  करने को
अर्पित करता स्‍नेह, कभी सम्‍मान, कभी ध्‍यान
वंदित स्‍वरों की पुकार तुम तक पहुँचती जब
तुम मंद मुस्‍कान लिए
मुझे भी तप में अपने साथ कर लेती ...!!!

35 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ चमत्‍कार की अभिलाषा रखते
    लड़खड़ाते कदमों से
    अपने शरीर का भार घसीटते चलते
    ये दृश्‍य उनके लिए करूण है
    पर मेरे लिये जैसे को तैसा

    सुंदर और भाव विविधता लिए कविता.

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  2. मन को छू कर ह्रदय को भावविभोर करती आपकी ये रचना उम्दा

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  3. अति उत्तम रचना !

    क्रोंच की वेदना का त्राण!
    और मनः स्थिति की वेदना !
    दोनों ही अपूर्तनीय हैं !

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  4. बहुत खुबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..

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  5. गौरैया की क्षमता से अभिभूत तुम्हारी कलम में भर गई है जिजीविषा

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  6. तुम साधक बन हर शब्‍द का
    आह्वान करती मन के मंदिर में
    एहसासों के दीप जलाती
    मिटाती हर मन के क्‍लेश को
    अलौकित करती हर भावना को

    अच्छी रचना
    बहुत सुंदर

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  7. तुम मंद मुस्‍कान लिए
    मुझे भी तप में अपने साथ कर लेती...
    बेहद-बेहद खूबसूरत

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  8. बढ़िया पंक्तियाँ |
    सुन्दर भाव |
    बधाई सदा ||
    सादर -

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  9. "कामयाबी के शोर में वो हर कदम पे
    असफलता का स्‍वाद चखते हुए "
    बहुत खूब...|

    सादर |

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  10. पूरी रचना एक उद्दाम आवेग लिए है भाव का भाव विस्तार का अर्थ और अर्थ विस्तार का ,प्रतीक की मोहताज़ नहीं रही है यह रचना जो आये सहज रूप आये हैं .

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  11. कोमल भावपूर्ण रचना..
    बेहद सुन्दर.....
    :-)

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  12. एक छवि तुम भाव की,
    नज़र तुम पर जो उठे सम्‍मान की,
    विषमताओं के मार्ग भी
    अवरूद्ध से हो गये
    जो हँसे लब तल्खियों से
    वो विक्षिप्‍तता का भान अब कर रहे

    ....बहुत खूब! बहुत उत्कृष्ट भावपूर्ण रचना...

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  13. आपकी रचना मन को अद्भुत भावना से सम्मोहित कर आवेशित कर गयी ! बहुत बहुत सुन्दर ! नवरात्र की शुभकामनायें स्वीकार करें !

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  14. अति सुन्दर हृदय-स्पर्शी मार्मिक रचना।
    प्रतीकात्मक सहज अभिव्यक्ति।

    आनन्द विश्वास

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  15. Aur kaise ho sakti hai zindagee!Navratree kee anek shubhkamnayen!

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  16. एक छवि तुम भाव की,
    नज़र तुम पर जो उठे सम्‍मान की,
    विषमताओं के मार्ग भी
    अवरूद्ध से हो गये
    जो हँसे लब तल्खियों से
    वो विक्षिप्‍तता का भान अब कर रहे
    तुम्‍हारे रास्‍ते में
    सत्‍य अविचल था खड़ा हर मोड़ पर
    देखकर कंटीली बाडियां
    रक्‍तरंजित हथेलियों में कुंठाओं के तीर थामे
    आह! के वो स्‍वर लिये
    बच निकलने के रास्‍ते को थे खोजते

    very beautiful lines.emotions and feelings.

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  17. तुम मंद मुस्‍कान लिए
    मुझे भी तप में अपने साथ कर लेती ...!!!
    हाथ से हाथ मिलते एक कारवां बनता जाता है !
    बेहद भावपूर्ण !

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  18. प्रेरणा देती सुन्दर कविता हेतु बधाई ऍ

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  19. माथे पे पसीने की बूंदों को छिपाते
    विस्मित नयनों को मूंदकर
    कुछ चमत्‍कार की अभिलाषा रखते
    लड़खड़ाते कदमों से
    अपने शरीर का भार घसीटते चलत

    सुंदर रचना।

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  20. भावपूर्ण, उत्तम रचना | बहुत खूब |

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  21. बचपन को याद दिलीती रचना हमारे घर के सामने सांय के समय लगने वाला वो मेला आज भी याद आता है जो गोरया चहचहा कर पता नही क्‍या वार्तालाप करती थी पर इसे देखकर भी मनुस्‍य के मन मे यह भाव नही आता है कि हम भी उन की तरह मिलजूल कर रहे

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  22. बहुत ही अच्छा लिखा आपने /बहुत ही भावनामई रचना /बहुत बधाई आपको

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  23. मन को प्रभावित करने वाली पंक्तियाँ..

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  24. अर्पित करता स्‍नेह, कभी सम्‍मान, कभी ध्‍यान
    वंदित स्‍वरों की पुकार तुम तक पहुँचती जब
    तुम मंद मुस्‍कान लिए
    मुझे भी तप में अपने साथ कर लेती ...!!!
    ..बहुत सुन्दर कोमल मनोभाव की प्रस्तुति

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