सोमवार, 12 दिसंबर 2011

कभी झगड़ा तो कभी मुस्‍काना .... !!!

मुक्ति ... मुक्ति ... यह शोर
सुनकर मैंने इस पर
ध्‍यान केन्द्रित किया तो जाना
यह आवाज
मेरे ही अन्‍तर्मन का एक हिस्‍सा थी
शरीर के प्रत्‍येक अव्‍यवों ने
एक स्‍वर साध रखा था
हमें भी कुछ अपने मन की करने दो
बेसाख्‍़ता मैं हंस दी
तुम्‍हारा मन ... मेरी हंसी सुन
सब शांत हो गए मुंह लटक सा गया था
हां-हां तुम्‍हारा मन ...मुझे भी तो बताओ
कौन है ... तभी हथेली बोली
इन बाजुओं को तो देखो
कितना भार हमारे सहारे उठाते हैं
और सारा का सारा क्रेडिट खुद ले जाते हैं
तभी आंख ने  धीरे से कहा
सारे दृश्‍यों का अवलोकन मैं करती हूं
और इसका प्रतिफल मष्तिष्‍क ले उड़ता है
वो कहता है ये उसकी समझ है
तभी तुम सब चीजें पहचान पाते हो
तभी कान ने फड़ककर कहा
यदि मैं न सुनूं ना तो ... तुम सब का
पत्‍ता साफ हो जाएगा ...
कोई कुछ कहता इससे पहले ही
जिभ्‍या गरज़ सी पड़ी और मैं जो
बत्‍तीस दातों के बीच रहकर हर चीज का
रसास्‍वादन कराती हूं वह कुछ नहीं
मैंने तो अपना सर थाम लिया
अरे.. इनके मन में ये सब कब आ गया
मैने बारी-बारी सबको समझाया
एक दूसरे को
उनकी खूबियों से परिचित कराया
तुम सबका मन एक ही है
भले ही तुम्‍हारे कार्य अलग हैं
देखो उंगली को चोट लगती है तो
आंख रोती है न  ...
जब आंख रोती है तो
उंगली आंसू भी पोछती है न
देर रात जाकर कहीं यह निष्‍कर्ष आया
यही तो मन का काम है
एक दूसरे के दुख-सुख में काम आना
कभी झगड़ा तो कभी मुस्‍काना .... !!!

31 टिप्‍पणियां:

  1. कभी झगड़ा तो कभी मुस्‍काना .... !!!
    jeevan kaa roop niraalaa hai
    kabhee hansaataa kabhee rulaataa hai

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  2. एक और शानदार
    और
    प्रभावी प्रस्तुति ||
    बधाई ||

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  3. hahaha...bahut hi sundar prastuti...

    Sundar varnan har panktiyon me...

    Sara ka sara CREDIT apke khayalon ka, apki Kalam ka hai..:-)

    www.poeticprakash.com

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  4. देखो उंगली को चोट लगती है तो
    आंख रोती है न ...
    जब आंख रोती है तो
    उंगली आंसू भी पोछती है न
    देर रात जाकर कहीं यह निष्‍कर्ष आया
    यही तो मन का काम है
    एक दूसरे के दुख-सुख में काम आना
    कभी झगड़ा तो कभी मुस्‍काना .... !!!
    Aapne to kamaal ka likha hai!

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  5. बेहतरीन उपमाये दी है आपने अच्छी कविता बधाई

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  6. अंगो की भाषा दी है आपने.......बहुत खूब|

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  7. हमारी मुक्ति की पुकारें कर्तव्यों के दलदल में दम तोड़ देती हैं।

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  8. बेहतरीन प्रस्तुति ...

    देखो उंगली को चोट लगती है तो
    आंख रोती है न ...
    जब आंख रोती है तो
    उंगली आंसू भी पोछती है न

    बहुत सुन्दर पंक्तियां ...

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  9. मैने बारी-बारी सबको समझाया
    एक दूसरे को
    उनकी खूबियों से परिचित कराया
    तुम सबका मन एक ही है
    भले ही तुम्‍हारे कार्य अलग हैं
    देखो उंगली को चोट लगती है तो
    आंख रोती है न ...
    जब आंख रोती है तो
    उंगली आंसू भी पोछती है न ....sahi samjhaya , bahut achhi rachna

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  10. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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  11. एक बार मैंने भी कुछ ऐसा ही लिखा था न :) मगर मुझसे कहीं अच्छा लिखा है आपने हमेशा की तरह :)

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  12. आपकी पोस्ट मानव रचना के दार्शनिक पहलू से हो कर व्यावहारिक समाधान तक ले आती है. रचना का परिप्रेक्ष्य बहुत बड़ा है.

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  13. सदा जी,हमेशा की तरह आज भी मन में उठते भावो की सुंदर प्रस्तुति..

    मेरी नई रचना,....
    नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
    अमरशहीद मात्रभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
    भूलसे हमने शासन देडाला, सरे आम दु:शाशन को
    हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,

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  14. यही जीवन है।
    कई तरह के रंग लिए....
    सबका अपना अलग मजा है।
    सुंदर रचना।

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  15. यही तो मन का काम है
    एक दूसरे के दुख-सुख में काम आना
    कभी झगड़ा तो कभी मुस्‍काना .... !!!

    यही मन का कम और यही जीवन का नाम ....

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  16. मैने बारी-बारी सबको समझाया
    एक दूसरे को
    उनकी खूबियों से परिचित कराया
    तुम सबका मन एक ही है

    बेहतरीन पंक्तियाँ हैं।

    सादर

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  17. मैने बारी-बारी सबको समझाया
    एक दूसरे को
    उनकी खूबियों से परिचित कराया
    तुम सबका मन एक ही है ...........बेहतरीन प्रस्तुति

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  18. ये अंतिम निष्कर्ष ही उत्तम है ... और यदि पूरा समाज भी इसको समझ ले तो जीवन कितना सरल हो जायगा ...

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  19. यही तो मन का काम है
    एक दूसरे के दुख-सुख में काम आना
    कभी झगड़ा तो कभी मुस्‍काना .... !!!

    ....यही तो शास्वत सत्य है...बेहतरीन प्रस्तुति..

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  20. देखो उंगली को चोट लगती है तो
    आंख रोती है न ...
    जब आंख रोती है तो
    उंगली आंसू भी पोछती है न
    देर रात जाकर कहीं यह निष्‍कर्ष आया
    यही तो मन का काम है
    एक दूसरे के दुख-सुख में काम आना
    कभी झगड़ा तो कभी मुस्‍काना .... !!!

    बिलकुल अलग सोच..!
    मन को छू गया खासकर उपरोक्त अंतिम कड़ी ..!

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  21. खुबसूरत चित्रावली के साथ सुन्दर रचना...
    सादर बधाइयां...

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  22. सच कहा मन तो सबका एक ही है ।

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  23. बहुत खूबशूरत प्रस्तुति,....सुंदर पोस्ट

    मेरे नए पोस्ट की चंद लाइने पेश है..........

    नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
    देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
    इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
    इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,

    अगर आपको पसंद आए तो समर्थक बने....
    मुझे अपार खुशी होगी,......धन्यबाद....

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  24. सार्वभौमिक सत्य को खूबसूरती के साथ पेश किया है आपने। बधाई।

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