मुझे बीज बहुत अच्छे लगते हैं,
बचपन में कभी
कोई बीज हांथ लगता तो
उसे घर के आंगन में
उत्साह के साथ बो देती थी
नियम से सींचना
और उसे अंकुरित होते
देखने की उत्सुकता में
भोर में उठ जाना
मां मेरी उत्सुकता देख कहती
तुम्हें पता है ...
जैसे ये बीज हैं न
वैसे ही होते हैं संस्कार के बीज
बस फर्क इतना होता है
उन्हें धरती पर नहीं
मन के आंगन में बोया जाता है
मैं हैरानी से कहती ...मन का आंगन
मां बातों के प्रवाह में कहती
हां परोपकार... सदाचार ...कर्तव्य ... निष्ठा...
समर्पण ... सम्मान
त्याग और प्रेम
जो हमें मिलते हैं विरासत में
उनके बीज बचपन से ही तो
बोये जाते हैं
बस बेटा एक बीज
बहुत बुरा होता है और कड़वा भी
वो है द्वेष का
जानती हो इसमें ईर्ष्या की खाद व
अहित भाव का जल पड़ता है
इसे कभी भी पनपने मत देना
वर्ना यह द्वेश भाव कब
प्रेम की जड़ों को खोखला कर देता है
कोई नहीं जानता
बड़े से बड़ा वृक्ष
धराशाई हो जाता है
और कितने घोसले उजड़ जाते हैं ...!!!
बचपन में कभी
कोई बीज हांथ लगता तो
उसे घर के आंगन में
उत्साह के साथ बो देती थी
नियम से सींचना
और उसे अंकुरित होते
देखने की उत्सुकता में
भोर में उठ जाना
मां मेरी उत्सुकता देख कहती
तुम्हें पता है ...
जैसे ये बीज हैं न
वैसे ही होते हैं संस्कार के बीज
बस फर्क इतना होता है
उन्हें धरती पर नहीं
मन के आंगन में बोया जाता है
मैं हैरानी से कहती ...मन का आंगन
मां बातों के प्रवाह में कहती
हां परोपकार... सदाचार ...कर्तव्य ... निष्ठा...
समर्पण ... सम्मान
त्याग और प्रेम
जो हमें मिलते हैं विरासत में
उनके बीज बचपन से ही तो
बोये जाते हैं
बस बेटा एक बीज
बहुत बुरा होता है और कड़वा भी
वो है द्वेष का
जानती हो इसमें ईर्ष्या की खाद व
अहित भाव का जल पड़ता है
इसे कभी भी पनपने मत देना
वर्ना यह द्वेश भाव कब
प्रेम की जड़ों को खोखला कर देता है
कोई नहीं जानता
बड़े से बड़ा वृक्ष
धराशाई हो जाता है
और कितने घोसले उजड़ जाते हैं ...!!!
मां ने सच कहा है।
जवाब देंहटाएंबहुत सही।
जवाब देंहटाएंसादर
बिलकुल सही कहा।
जवाब देंहटाएंघृणा, द्वेष आध्यात्मिक रोगों में शुमार होते हैं. माताओं ने इन्हें वर्जनाओं की भाँति माना और प्रेम, स्नेह के संस्कार के बीज बोए. ऐसी माताओं को नमन.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और सशक्त अभिव्यक्ति दिल को छू गयी …………सुन्दर सीख दे गयी।
जवाब देंहटाएंbahut khoob,
जवाब देंहटाएंmagar kuchh bimaariyaan
bagiche mein baahar se bhee aa jaatee hein
bageeche ke paudhon ko beemaar kartee hein
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंबहुत सच कहा है..
जवाब देंहटाएंvery nice.
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति इक सुन्दर दिखी, ले आया इस मंच |
जवाब देंहटाएंबाँच टिप्पणी कीजिये, प्यारे पाठक पञ्च ||
cahrchamanch.blogspot.com
सचमुच...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर तथ्य को रखांकित करती खूबसूरत रचना...
सादर बधाई...
Kitna sundar sandesh hai is rachana me!
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश देती हुई बेहतरीन रचना ....
जवाब देंहटाएंEXCILENT बड़ी सरलता से आज अपने बहुत ही गहन बात कहदी...
जवाब देंहटाएंएक कहावत है,..जैसा बोओंगे वैसा काटोगे,..
जवाब देंहटाएंप्रेरणा देती,बहुत अच्छी प्रस्तुति,..
नए पोस्ट् में इंतजार है,...
behtareen....
जवाब देंहटाएंwww.poeticprakash.com
एक खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.....
जवाब देंहटाएंमन में बोया संस्कार का बीज!
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
maa hameasha sach kahti hain aur unki seekh ko manNa chaahiye.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक सत्य को उद्घाटित करती रचना ...शुभ कामनायें
जवाब देंहटाएंआप तो आज भी नित्य नियम से बीज बो ही रही हैं।
जवाब देंहटाएंसदाविचार पर के आपके पोस्ट संस्कारों के बीज बोने के समान ही है।
बहुत अच्छी कविता।
बीज प्रेम का बो लें आज।
जवाब देंहटाएंvery inspiring creation ..
जवाब देंहटाएंबढिया सीख।
जवाब देंहटाएंआभार....
द्वेश भाव प्रेम की जड़ों को खोखला कर देता है
जवाब देंहटाएंsach hai
त्याग और प्रेम
जवाब देंहटाएंजो हमें मिलते हैं विरासत में
उनके बीज बचपन से ही तो
बोये जाते हैं
बस बेटा एक बीज
बहुत बुरा होता है और कड़वा भी
वो है द्वेष का
जानती हो इसमें ईर्ष्या की खाद व
अहित भाव का जल पड़ता है
इसे कभी भी पनपने मत देना
PRERAK AUR SUNDAR PRASTUTI.
सच कहा है ... इर्षा का बीज जो एक बार पनप जाता है तो निकालना मुश्किल होता है ... बहुत उम्दा ...
जवाब देंहटाएंsuperb!!! sanskaar ke beej ko kitne achchhe tarike se samjhaayaa hai. waah!!
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