शनिवार, 1 अक्तूबर 2011

स्‍नेह को समर्पित ....












प्रेम
सदा ही मधुर होता है,
चाहे लिया जाये या दिया जाये
जहां भी होता है यह
वहां विश्‍वास स्‍वयं उपजता है
किसी के कहने या करने
की जरूरत ही नहीं पड़ती
इसके लिए
प्रेम निस्‍वार्थ भाव
कब ले आता है मन में
कब समर्पण जाग जाता है
कब आस्‍था
आत्‍मा में जागृत हो उठती है
और एक ऊर्जा का संचार करती है
तरंगित धमनियां स्‍नेहमय हो
हर आडम्‍बर से परे
सिर्फ स्‍नेह की छाया तले
अपने जीवन को सौंप
अनेकोनेक सोपान पार कर जाती है
बिना थकान का अनुभव किये
मन हर्षित होता है
जीवन में सिर्फ उल्‍लास होता है
रंजो-गम से दूर
उसे सिर्फ एक ही अक्‍स नजर आता है
स्‍नेह का जिसे जितना बांटो
उतना ही बढ़ता है
अमर बेल की तरह .....
जब काम मरता है तब
प्रेम जागृत होता है
जब लोभ मरता है तो
वैराग्‍य का जन्‍म होता है
जब क्रोध का नष्‍ट होता है
तो क्षमा अस्तित्‍व में आती है
और क्षमा के साथ हम
फिर स्‍नेह को समर्पित हो जाते हैं ....!!!

30 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम पर गहरे भाव के साथ सशक्‍त रचना।
    शुभकामनाएं................

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  2. कब आस्‍था
    आत्‍मा में जागृत हो उठती है

    bahut sundar

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  3. सच ऐ प्रेम जितना बांटो बढ़ता है ... लाजवाब रचना है ...

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  4. प्रेम का शाश्वत तत्त्व बिलकुल वैसा ही है जैसा आपने कविता में कहा है. विकारों से अलग और स्निग्ध.

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  5. एक अलौकिक सा देश है जहाँ प्रेम बसता है ,उस देश का वासी हरेक संवेदनशील मन है जो सिर्फ प्रेम गुनता है और ये प्रेम वो ही है जो आपने वर्णित किया है ...

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  6. आग कहते हैं, औरत को,
    भट्टी में बच्चा पका लो,
    चाहे तो रोटियाँ पकवा लो,
    चाहे तो अपने को जला लो,

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  7. प्रेम सदा ही मधुर होता है,
    चाहे लिया जाये या दिया जाये
    जहां भी होता है यह
    वहां विश्‍वास स्‍वयं उपजता है
    waakai.... sachchi baat kahti ho tum

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  8. बढ़िया प्रस्तुति ||

    बहुत-बहुत बधाई ||

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  9. वाह वाह आज तो इश्क मुश्क की बातें हो रही हैं .....
    बधाई .....:))

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  10. और क्षमा के साथ हम
    फिर स्‍नेह को समर्पित हो जाते हैं...

    Essence of this lovely creation !

    .

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  11. एकदम सही कहा है आपने .....प्रेम सदा ही मधुर होता है

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  12. sada ji
    bahut bahut hi behtreen lagi aapki post.
    bahut hi sateek tareeke se aapne sneh ki paribhashhsa likhi hai .sachchi baat jo isme puri tarah se nihswarth bhav se duub gaya samjhiye uska jivan hi anmol ho gaya..
    bahut hi prerana avam urja deti hai aapki yah post
    badhai
    poonam

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  13. प्रेम सदा ही मधुर होता है,
    चाहे लिया जाये या दिया जाये
    जहां भी होता है यह
    वहां विश्‍वास स्‍वयं उपजता है..
    अत्यंत भाव पूर्ण सशक्त अभिव्यक्ति शुभकामनायें एवं हार्दिक अभिनन्दन !!!

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  14. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो
    चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  15. प्रेम और स्नेह का प्रवाह कविता में. सुंदर प्रस्तुति.

    धन्यबाद.

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  16. उसे सिर्फ एक ही अक्‍स नजर आता है
    स्‍नेह का जिसे जितना बांटो
    उतना ही बढ़ता है
    अमर बेल की तरह .....
    जब काम मरता है तब
    प्रेम जागृत होता है
    जब लोभ मरता है तो
    वैराग्‍य का जन्‍म होता है
    जब क्रोध का नष्‍ट होता है
    तो क्षमा अस्तित्‍व में आती है
    और क्षमा के साथ हम
    फिर स्‍नेह को समर्पित हो जाते हैं ....!!!
    Kya baat kahee hai!

    जवाब देंहटाएं
  17. कब आस्‍था
    आत्‍मा में जागृत हो उठती है
    और एक ऊर्जा का संचार करती है
    तरंगित धमनियां स्‍नेहमय हो
    हर आडम्‍बर से परे
    सिर्फ स्‍नेह की छाया तले
    अपने जीवन को सौंप
    अनेकोनेक सोपान पार कर जाती है

    सशक्त अभिव्यक्ति...
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  18. प्रेम पर गहरे भाव के साथ सशक्‍त रचना। सुंदर प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं
  19. जब काम मरता है तब
    प्रेम जागृत होता है
    जब लोभ मरता है तो
    वैराग्‍य का जन्‍म होता है
    जब क्रोध का नष्‍ट होता है
    तो क्षमा अस्तित्‍व में आती है
    और क्षमा के साथ हम
    फिर स्‍नेह को समर्पित हो जाते हैं ....!!!
    ......................................
    तारीफ़ के लिए शब्द तलाश रहा हूँ....अतिशयोक्ति न समझें तो कहूँ कि उपरोक्त पंक्तियों पर मेरी सारी कवितायें निछावर......

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  20. आपकी एक रचना पढ़ी नाम था "कैसे न करूँ मैं परिक्रमा आपकी" मगर यहाँ मुझे वो रचना दिखी ही नहीं, यह आपकी बहुत ही सुंदर और मार्मिक प्रस्तुत है।
    समय मिले तो कभी आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  21. प्रेम सदा ही मधुर होता है ...
    बिल्‍कुल सच कहा है आपने ..बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  22. बहुत खूबसूरत अहसास समेटे पोस्ट.........लाजवाब |

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  23. स्‍नेह का जिसे जितना बांटो
    उतना ही बढ़ता है
    अमर बेल की तरह .....
    जब काम मरता है तब
    प्रेम जागृत होता है
    जब लोभ मरता है तो
    वैराग्‍य का जन्‍म होता है
    जब क्रोध का नष्‍ट होता है
    तो क्षमा अस्तित्‍व में आती है
    और क्षमा के साथ हम
    फिर स्‍नेह को समर्पित हो जाते हैं ....!!!
    स्नेह ओर विद्या दोनों बांटने से बढतें हैं लेकिन प्रेम न बाड़ी उपजे प्रेम न हाट बिकाय ...अच्छी प्रस्तुति सौदेश्य विचार परक दर्शन को समेटती .

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  24. प्रेम सदा ही मधुर होता है,
    चाहे लिया जाये या दिया जाये
    जहां भी होता है यह
    वहां विश्‍वास स्‍वयं उपजता है
    किसी के कहने या करने
    की जरूरत ही नहीं पड़ती
    ...इन पंक्तियों में सत्य का दर्शन होता है। इस कविता को पढ़कर ही मन के धुलने का एहसास होने लगता है। आनंद की अनुभूति होती है।

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