गुरुवार, 19 मई 2011

परिक्रमा ....











कविता संग्रह परिक्रमा जिसके रचनाकार हैं बेहद सहज एवं सरल व्‍यक्तित्‍व के धनी आदरणीय सुमन सिन्हा जी ब्‍लॉग जगत में भी इनकी रचनाओं को काफी सराहा गया है इनका यह पहला काव्‍य संग्रह है जिसका विमोचन हाल ही में हिन्‍द युग्‍म के सौजन्‍य से सम्‍पन्‍न हुआ।

परिक्रमा पढ़ते हुए यदि कभी आपको यह लगे कि आप गीता का पाठ कर रहे हैं या महाभारत का अध्‍ययन तो यह रचनाकार की कलम का ओज है जो मुखर हो कभी राधा का सम्‍मान करेगा या कृष्‍ण की बांसुरी की तरह प्रत्‍येक शब्‍द पर माधुर्य बरसाएगा अपने पराये के भावों से मुक्‍त आत्‍ममंथन करते हुए....कृष्‍ण को बखूबी गुना है उन्‍होंने अपनी रचनाओं में,

इस पुस्‍तक का संपादन किया साहित्‍य एवं ब्‍लॉग जगत की चिर-परिचित लेखिका आदरणीय रश्मि प्रभा जी ने जिनके संयोजन का जादू आप परिक्रमा को पढ़ने के बाद ही जान पाएंगे ....

परिक्रमा की शुरूआत होती है लक्ष्‍य साधना से कितनी अद्भुत सोच है रचनाकार की हर रचना इनके शब्‍द पा जीवंत हो उठी है . मन के तार तार झंकृत हो उठते हैं जहां पर इन्होंने कहा है ...

न्‍याय के लिए मैं सारथी हो सकता हूं,

तो अर्जुन

तुम्‍हें बस यह गांडीव उठाना है

और लक्ष्‍य साधना है’’

और फिर आगे बढ़कर आपने गुलमर्ग बनाने के लिये परिवर्तन की बात कही है ....

पानी खाद के लिए

तो सहज हो गया है कैक्‍टस

या फिर नकली फूल

फिर भी मैं हर सुबह

एक बीज परिवर्तन के बोता हूं

क्रमश: आगे बढ़ते हुए कभी राजा और रंक हो जाना तो आत्‍मा-परमात्‍मा वार्तालाप के साथ ही पृष्‍ठ दर पृष्‍ठ अपनी उत्‍सुकता कायम रखने में सफल हुए हैं ...पानी का कैनवस हो या रहस्‍योद्धाटन करते हुए कहते हैं जब कृष्‍ण ने खुद से पहले राधा का नाम लिया हो .और व्याख्‍या कालजयी ग्रंथ की इस तरह से ...

मैने बंद दरवाजे खोल दिए हैं,

अब मैं एक सूक्ष्‍म विचार हूं

वह कलम

और लिखा जा रहा है एक कालजयी ग्रंथ

परिक्रमा में रचनाकार ने कई जगह प्रेरक संदेश भी दिये हैं कुछ इस तरह से जो उनकी रचनाओं को ऊंचाई के शिखर पर विराजित करती हैं ...

पाने से पहले देना सीखो,

किसी एक चेहरे की

मुस्‍कान बनकर देखो

तुम अपने आप में पूर्ण हो जाओगे ।

इस संदेश के बाद हम अनेक भावों को समेटे सशक्‍त रचनाओं से परिचित होते हैं तब परिक्रमा के पूरे होने की बात करते हुए रचनाकार कह उठता है जब जिन्‍दगी रूपी धुंए के रहस्‍य से पर्दा उठाता है और उससे मित्रता कर बैठता है तो वह अगर का धुंआ हो जाता है और वह उससे अलग नहीं होना चाहता बल्कि उस धुंए में समाहित हो विलीन हो जाना चाहता है हमेशा के लिए एक साधक की तरह ....

परिक्रमा की समीक्षा करना मेरे लिये इतना आसान तो नहीं है परन्‍तु इनके भावों ने और प्रस्‍तुतिकरण ने मुझे आपके सामने लाने के लिये प्रेरित किया ...परिक्रमा खुद में एक कालजयी ग्रन्थ है , जिसे पढ़ने के बाद आत्मा परमात्मा में एकाकार हो जाती है ।

आपका ब्‍लॉग ....Main hoo ....


बुधवार, 18 मई 2011

भुलाना चाहोगे ....











तुम मुझसे दूर जाकर जाने क्या सुकून पाओगे,
जितना भुलाना चाहोगे उतना ही करीब पाओगे

अश्कों का सौदा हो गया दिल से वरना ज़ख्,
दिखाता तुम्हें तो यूं छोड़ के जा भी ना पाओगे

हंसते-हंसते मैने तुम्हें रूख्सत किया है जब भी,
रोये हैं हम तेरी याद में ये तो कह ना पाओगे

सिमट गया हर लम्हा तेरी चाहत की कैद मे,
मुझको इल्जाम यूं सरेआम दे तो पाओगे

वक् की साजि़शों का शिकार जब भी होते तुम,
मुझे कुसूरवार अपना सदा कह तो ना पाओगे

गुरुवार, 12 मई 2011

ये खामोशी नहीं ....

पूछा मैने खामोशी से,

तुम यूं ही चुपचाप सी क्‍या सोचती हो

वो बोली मैं सिर्फ दिखने में

खामोश रहती हूं ......

मेरी बोली सुनता मेरा अन्‍तर्मन

पढ़ता है गुजरे पलों को

संजोता है वो

उन यादों को

जिनसे मैं बेहद प्‍यार करती हूं

संवार लेती हूं

यदा-कदा आहत मन को भी

कभी फटकार भी देती हूं इसे

जब यह विचलित होता है

मैं उन्‍हें भी समझती हूं

जो मुझसे प्‍यार करते हैं

और खामोश रहकर

उन्‍हें भी देखती हूं

जो मुझसे ईर्ष्‍या भाव रखते हैं

मेरी सफलता पर

ताने कसते हैं ....

तुम्‍हें घुटन नहीं होती ...?

इस तरह खामोशी के साथ

एक मुस्‍कान लाई लबों पर वो

फिर बोली

अरे यह तो मेरा सम्‍बल है

वर्ना मैं तो

कब की अस्तित्‍वहीन

हो चुकी होती

इसने मुझे शब्‍दों के हथियार दिये

जीने के लिये हौसला दिया

ये खामोशी नहीं ...

मेरी बोली है ...

जिसे हर कोई नहीं समझ पाता

और मुझसे अपनी सफाई में

सबसे हर वक्‍त कुछ

कहा भी नहीं जाता .... !!