शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

रिश्‍तों की उलझन ....

हर रिस्‍ता

जाने कितनी बार

मरता है

जाने कितनी बार

जन्‍म लेता है

कहीं गुबार उठता

मन में तो

उसकी आंख से

बहते हैं

जाने कितने आंसू

जिन्‍हें वह पोंछ देती है

आंखो की लालिमा

देती है गवाही

कितना बरसी हैं वह

पलकों का भारीपन

बतलाता है पीड़ा मन की

होठों का सूखापन

खामोश तड़प को बयां करता

किसी से

कह न पाने की पीड़ा

शायद जीवित रह जाये

यह रिस्‍ता

टूटने ना पाये

टूट गया तो

इसकी गिरह को

वह खोल नहीं पाएगी

कहना चाहकर भी

बहुत कुछ

बोल नहीं पाएगी ।

22 टिप्‍पणियां:

  1. सदा जी आपने तो रिश्तों की सारी उलझन अपनी कलम और किसी के चहरे से बयां कर दी.....उम्दा..

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  2. kahanaa chaah kar wah bahut kuchh bol nahi payegi ......kya baat hai ....dil ek tis paida kar gayi.

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  3. सदा जी ये वर्ड वेरिफिकेशन हटा लीजिये प्लीज

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  4. रिश्तो पर अच्छी रचना

    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:

    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये!!.

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  5. आप सब को असुविधा हुई उसके लिये खेद है, वर्ड वेरीफिकेशन हटा दिया है सहयोग के लिये आभार ।

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  6. यह रिस्‍ता
    टूटने ना पाये
    रिश्ते जब टूटते है तो रिसते है
    सुन्दर कविता

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  7. हर रिस्‍ता

    जाने कितनी बार

    मरता है

    जाने कितनी बार

    जन्‍म लेता है
    Bilkul sahi likha hai aapne... hamaare aaspaas rozana aise kitne hi rishte hain jo tootte aur bikharte hain.... aur phir ek naya rishta kahin janm le leta hai.... phir se tootne aur bikharne ke aur phir judne ke liye..
    कहीं गुबार उठता

    मन में तो

    उसकी आंख से

    बहते हैं

    जाने कितने आंसू

    जिन्‍हें वह पोंछ देती है

    आंखो की लालिमा

    देती है गवाही
    waaqai mein bahut dukh hota hai.. par aansoo ke alawaa aur kiya bhi kya ja sakta hai?

    खामोश तड़प को बयां करता

    किसी से

    कह न पाने की पीड़ा

    शायद जीवित रह जाये

    यह रिस्‍ता

    टूटने ना पाये

    टूट गया तो

    इसकी गिरह को

    वह खोल नहीं पाएगी

    कहना चाहकर भी

    बहुत कुछ

    बोल नहीं पाएगी..
    aur sahi kaha hai aapne ki tootne ke baad kisse kahen ja kar... kuch sunenge afsos zaahir kar ke chup ho jayenge.... aur kuch mazaak udayenge.... par asli dard to wahi jaanta hai jisei issey ubarna hai....


    sach! bahut hi sunder aur bhaavnapoorn lagi yeh kavita.........

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  8. SACH HAI ........... JAB RISHTE TOOTTE HAI DO BAHOOT DARD DETE HAIN .... IS BANDHAN KO TODNA NAHI CHAHIYE ... SUNDAR LIKHA HAI ...

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  9. दिल जो कहना चाहता है उस एहसास को आपने शब्दों में ढाला है
    वाह !!

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  10. सदा जी,
    इस रचना को पढ़ने के बाद लगा कि रिश्तों का टूटना एक शाश्वत प्रक्रिया है, अतः इसके लिए घुट-घुट कर मरना शायद उचित नहीं
    जीवन कि सार्थकता यादगार कर्मों से होनी चाहिए..............
    अति सुन्दर प्रस्तुति, गहरे मनोभावों का वर्णन हमेशा की तरह एक नए अंदाज़ में

    बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  11. यही तो रिश्‍तों की खासियत है .. बहुत सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

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  12. रिश्तों की सुंदर परिभाषा...बेहद खूबसूरत रचना..धन्यवाद

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  13. ये रिश्ते अजीब रिश्ते
    कभी आग तो कभी ठंडी बर्फ
    नहीं रहते एक से सदा
    बहुत सुन्दर रचना है शुभकामनायें

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  14. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! मेरे इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com

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  15. rishte aksar ulajhne dete he kyoki yah banye jaate he...aapki rachna me rishto ke marm ka ehsaas hota he

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  16. आप सभी का बहुत-बहुत आभार, यूं ही उत्‍साहवर्धन करते रहें, मेरी कलम को प्रेरणा आप सब के सहयोग से ही मिलती है ।

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