शुक्रवार, 26 जून 2009

चल रही हवायें इन दिनों . . .

चल रही हवायें इन दिनों मतलब की,

तू चला कर तो जरा संभल-संभल के ।

इनका झौंका तुझे भी ना लेकर चल दे,

अपनी बात किया कर संभल-संभल के ।

खुदगर्जी की आदत हो जाए अगर जिसे,

हिसाब की बातें किया कर संभल-संभल के ।

नादान दिल आ ही जाता है ऐसी बातों में,

लोगों से मिलाया कर इसको संभल-संभल के ।

निभाने को रिस्‍ते-नाते बात कहने की होती है,

अब तो सदा रिस्‍ते बनाया कर संभल-संभल के ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. नादान दिल आ ही जाता है ऐसी बातों में,

    लोगों से मिलाया कर इसको संभल-संभल के ।

    सही व सटीक अभिव्यक्ति पर बधाई
    स्नेहिल मित्र
    हिन्द-युग्म पर मेरी अनेक गज़लें आपके स्नेह को प्राप्त हुई हैं आज भी
    सरस पायस पर मेरे बालगीत बादल भैया.......आओ नाचें त ता थैया पर स्नेहिल टिपण्णी मिली आपका आभार
    श्याम सखा श्याम
    ‘कौन पूछे है, लियाकत को यहाँ पर
    पेट भरना है तुझे तो तोड़ पत्थर’

    इस गज़ल को पूरा पढ़ने व अन्य गज़लो के लिये यहां पधारें
    http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
    http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें

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  2. रचना के भाव बहुत सुन्दर हैं।बधाई।

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  3. नादान दिल आ ही जाता है ऐसी बातों में,

    लोगों से मिलाया कर इसको संभल-संभल के ।

    निभाने को रिस्‍ते-नाते बात कहने की होती है,

    अब तो ‘सदा’ रिस्‍ते बनाया कर संभल-संभल के ।

    bahut hi khubsoorat nzma aapne likhi hai ...........ek ek panktiyon me kuchh hai sikhane ko.......anupam

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  4. निभाने को रिस्‍ते-नाते बात कहने की होती है,

    अब तो‘सदा’रिस्‍ते बनाया कर संभल-संभल के।

    Dear SADA,
    Aapka andaaze bayan kamaal ka.badhaai.

    जवाब देंहटाएं