गुरुवार, 18 जून 2009

कानों को छू लिया कर . . .

ना बातें मुकद्दर की किया कर,

जो भी है तू हंस के जिया कर ।

जीने के हैं चार दिन इसी बात

पर ही अमल कर लिया कर ।

तेरे-मेरे की रूसवाईयों को छोड़,

सच्‍चाई से रूबरू हो लिया कर ।

झुका के सजदे में सर रब के,

आगे कानों को छू लिया कर ।

करनी कर के पछतावे जो कोई

तू ऐसे जुर्म से बच लिया कर ।

ये बातें गजल तो ना हुईं सदा तू

सीधी सच्‍ची बात समझ लिया कर ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. सीधे सच्चे अंदाज़ में लाजवाब लिखा है............ सत्य को पहचानने की की कोशिच कराती उम्दा ग़ज़ल

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  2. "ये बातें गजल तो ना हुईं सदा तू
    सीधी सच्‍ची बात समझ लिया कर ।"
    सदा।
    तुमने सादेपन से बहुत ऊँची बात कह दी है।
    बधाई।

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  3. जो भी है तू हंस कर जिया कर
    सकारात्मक अभिव्यक्ति पर बधाई
    हिन्द युग्म पर मेरी गज़ल देखने का शुक्रिया

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  4. "ये बातें गजल तो ना हुईं सदा तू
    सीधी सच्‍ची बात समझ लिया कर ।
    बहुत सुन्दर संदेश देती बडिया गज़ल

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  5. ek alag se niraale andaaz me apni baatein rakhi aapne...ant to kaafi akarshak lagaa


    www.pyasasajal.blogspot.com

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  6. सदा नहीं यदा-कदा ही आया करो
    रातरानी सी यूं ही महक जाया करो
    हंसने रोने की बात तो सब करते
    तुम यूं ही चुपके से छू जाया करो

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  7. आप सभी का बहुत-बहुत आभार प्रोत्‍साहन के लिये ।

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