कुछ घोषणाओं, कुछ वादों को,
सरकारी नल से
पी लिया था जी भर ...
आज सुबह ही ओक से
किया था जब दातून ..
समझाया था मुनिया को,
किसी से भी, कहीं भी
कुछ मत ले लेना
ये महामारी है !
छूने से हो जाती है,
राजा और रंक में
कोई भेद नहीं करती !!
...
जब बंद हो जाता है आवागमन
तब कितना कुछ
मन के पास आ जाता है
बिना किसी पूर्व नियोजन के
बंद हैं बाज़ार सारे,
पैदल भी निकलने की
मनाही है
तभी निकल पड़ी भूख
बदहवास सी
कुछ भी, कहीं से भी, मिले
बस उसे तृप्त करना है,
उस क्षुधा को,
जिसने खो दिया है धैर्य,
पर ... दिखाना है उसे
भय मृत्यु का, सुरक्षित रहोगे
तभी खा पाओगे,
वर्ना एक श्वास भी
अपने मन से न ले पाओगे !!!
©
सरकारी नल से
पी लिया था जी भर ...
आज सुबह ही ओक से
किया था जब दातून ..
समझाया था मुनिया को,
किसी से भी, कहीं भी
कुछ मत ले लेना
ये महामारी है !
छूने से हो जाती है,
राजा और रंक में
कोई भेद नहीं करती !!
...
जब बंद हो जाता है आवागमन
तब कितना कुछ
मन के पास आ जाता है
बिना किसी पूर्व नियोजन के
बंद हैं बाज़ार सारे,
पैदल भी निकलने की
मनाही है
तभी निकल पड़ी भूख
बदहवास सी
कुछ भी, कहीं से भी, मिले
बस उसे तृप्त करना है,
उस क्षुधा को,
जिसने खो दिया है धैर्य,
पर ... दिखाना है उसे
भय मृत्यु का, सुरक्षित रहोगे
तभी खा पाओगे,
वर्ना एक श्वास भी
अपने मन से न ले पाओगे !!!
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हमेशा की तरह सरल मगर सशक्त पंक्तियाँ। सार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक लिखा । इस महामारी की त्रासदी बहुत बुरी है ।
जवाब देंहटाएंसमायिक और सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (20-04-2020) को 'सबके मन को भाते आम' (चर्चा अंक-3677) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
आप सभी का प्रोत्साहन के लिए बेहद आभार
जवाब देंहटाएंसार्थक शब्द हैं ... सच में इस महामारी से बचने का उपाय अभ्जी तक एक ही है ... अपना बचाव ...
जवाब देंहटाएंवाकई इस महामारी ने सारे भेद मिटा दिए हैं
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत आभार आप सभी का ...
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२५-०४-२०२०) को 'पुस्तक से सम्वाद'(चर्चा अंक-३६८२) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
बस उसे तृप्त करना है,
जवाब देंहटाएंउस क्षुधा को,
जिसने खो दिया है धैर्य,
पर ... दिखाना है उसे
भय मृत्यु का, सुरक्षित रहोगे
तभी खा पाओगे,
वर्ना एक श्वास भी
अपने मन से न ले पाओगे !!!
सामयिक मौजूदा हालातो की सटीक काव्यचित्रण
वाह!!!
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।
आभार आप सभी का ...💐💐
जवाब देंहटाएंकाफी सशक्त और संवेदनशील रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...सामयिक और सत्य
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