शनिवार, 16 जून 2018
शुक्रवार, 8 जून 2018
घर की दहलीज़ !!!!
घर की दहलीज़ ने
आना-जाना और निभाना देखा
बन्द किवाड़ों ने सिर्फ़
अपना वजूद जाना
ये भूलकर की उन्हें थामकर
रखने वाली दहलीज़
कोई साँकल नहीं जो हर बार
बजकर या कुंदे पे चढ़कर
अपने होने का अहसास कराती
वो तो बस मौन ही
अपना होने का फ़र्ज निभाती है !!
...
खुशियों में रौनक बन जाती
त्योहारों पे दीप सजा
जगमग हो जाती
बने रंगोली जब भी
ये फूली न समाती
रंग उत्सव के पूछो इससे
हर क्षण बस मंगल गाती !!!!