सोमवार, 23 अप्रैल 2018

मरहम के साये में दर्द !!!!

कड़वे शब्द
कठिन समय में
बस मरहम होते हैं
जख्मो की ज़बान होती
तो वो चीखते शोर मचाते
आक्रमण करते
मरहम के साये में दर्द नम होकर
यूँ पसीज हिचकियाँ ना लेते !!!!
...
छलनी होती रूह पे
घड़ी दो घड़ी की तसल्ली
वाले शब्दों से
कुछ हुआ है ना कभी होगा
गुनाहों की शक्ल
बदलने के वास्ते
रूहों का लिबास बदलना होगा !!!
...

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 24 एप्रिल 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. दर्द स्वयं ही भोगना होता है, बंटता नहीं है
    बहुत सही

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  3. कड़वे शब्द
    कठिन समय में
    बस मरहम होते हैं
    एकदम सही कहा आपने मैंने उन लम्हों की सिसकियाँ सुनी हैं दर्द को गहरे भावो को शब्दो मे कैसे पिरो देती है दीदी आप :)

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  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  5. हृदयस्पर्शी रचना...बहुत सुंदर👌

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  6. वाह!!बहुत सुंदर ,हृदय को छू गई आपकी रचना ।

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  7. बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी प्रस्तुति....
    वाह!!!

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  8. कड़वे शब्द रिसते जख्मों का मरहम...
    नई सी बात!!

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  9. बहुत सटीक और मर्मस्पर्शी रचना...

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  10. सही है गुनाहों के चेहरे

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  11. काश रूह का लिबास बदलना आसान होता ...
    पर दर्द खुद का खुद को झेलना होता है ... सटीक रचना है ...

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