पापा की हथेलियों में
होते मेरे दोनो बाजू और मैं
होती हवा में
तो बिल्कुल तितली हो जाती
खिलखिलाकर कहती
पापा और ऊपर
हँसते पापा ये कहते हुये
मेरी बहादुर बेटी!
....
पापा की हथेलियों में
जब भी मेरी तर्जनी कैद होती
मुझे जीवन मेले से लगता
मैं खुद को पाती
वही घेरदार फ्रॉक के साथ
उनके लम्बे कदमों संग
दौड़ लगाती हुई!
....
पापा की हथेलियां
थपकी स्नेह की जब भी
कभी कदम डगमगाये
हौसले से उनके
आने वाला पल मुस्कराये!
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को शनिवार, २० जून, २०१५ की बुलेटिन - "प्यार, साथ और अपनापन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर.... मर्म को छूती रचना
जवाब देंहटाएंदिल को छूती ..
जवाब देंहटाएंआपकी रचना पढ़कर फिर बचपन की प्यारी यादें ताजा हो गयी. और मैं तो अपने पापा की लाड़ली हूँ खूब सताया है पापा को कभी कभी पापा मम्मी बताते है..
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी और हृदयस्पर्शी रचना..
:-)
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-06-2015) को "योगसाधना-तन, मन, आत्मा का शोधन" {चर्चा - 2013} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
माँ धरा है तो पिता छत की तरह संरक्षण देते हैं। फादर्स डे की पूर्वबेला पर इससे अच्छी प्रस्तुति नहीं हो सकती।
जवाब देंहटाएंबहुत सुदर और भाव पूर्ण सृजन, बधाई
जवाब देंहटाएंयादो का जीवन मे इक अलग और अमुपम स्थान है
सुन्दर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंपढकर बचपन में लौट आई हूँ आभार
जवाब देंहटाएं...वाह बेहतरीन , बचपन याद आ गया
जवाब देंहटाएंपापा की हथेलियां थपकी स्नेह की जब भी कभी कदम डगमगाये हौसले से उनके आने वाला पल मुस्कराये!
जवाब देंहटाएं...बहुत ही सुन्दर लिखा है दी बचपन की यादें ताजा सिर्फ आपकी ही पोस्ट कर सकती है
बहुत ही प्यारी और हृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंमैं सन्नाटा बुनता हूँ -- अज्ञेय जी की रचना
राज कुमार
आपका मेरे ब्लॉग पर इंतजार है.
http://rajkumarchuhan.blogspot.in