माँ ने नहीं पढ़े होते
नियम क़ायदे
ना ही ली होती है डिग्री
कोई कानून की
फिर भी हर लम्हा सज़ग रहती है
अपने बच्चों के अधिकारों के प्रति
लड़ती है जरूरत पड़ने पर
बिना किसी हथियार के
करती है बचाव सदा
खुद वार सहकर भी !
....
माँ के लिये एक समान होती हैं
उसकी सभी संताने
किसी एक से कम
किसी एक से ज्यादा
कभी भी प्यार नहीं कर पाती वह
ये न्याय वो कोई तुला से नहीं
बल्कि करती है दिल से
ममता की परख
बच्चे कई बार करते हैं !!
...
कसौटियों पर रख ये भी कहते हैं
हमें कम तुम्हें ज्यादा चाहती है माँ
कहकर आपस में जब झगड़ते हैं
तो उन झगड़ों को वो अक़्सर
एक सहज सी मुस्कान से मिटा देती है
और सब लग जाते हैं गले
माँ तो बस माँ ही होती है...भावपूर्ण कविता...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सच कहा है...माँ तो बस माँ होती है ...बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमातृदिवस की हार्दिक शुभकामना
बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति ! बधाई !
जवाब देंहटाएंA गज़ल्नुमा कविता (न पति देव न पत्नी देवी )
मां बस मां होती है.
जवाब देंहटाएंसरलता लिये हुए सुंदर पोस्ट
बहुत भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंमाँ तो आखिर माँ है ना.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
जवाब देंहटाएंमाँ के असीम वात्सल्य को समेटने के प्रयास में लिखी गई यह कविता आपके भावों का परिचय बखूबी देरही है . बेटी तो वैसे भी अपने अंतिम क्षणों तक माँ से जुडी होती है . हर संतान का यही भाव हो .
जवाब देंहटाएंमाँ की सरल मुस्कान ही बच्चों का संबल होती है ... बहुत सुन्दर रचना .
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