आईना मन का
संवारे घड़ी-घड़ी रूप अपना
करे श्रृंगार जब प्रेम का
तो खुद ही ये इतराये
उदासी की सूरत में
पलकें भी न झपकाये
कोई इसको
कितना भी समझाये!
....
पगला है मन कहते हैं सब
पल में खुश पल में नाखुश
इसकी खुशियों का हिसाब
रखते हुए जिंदगी
कई बार चूक कर जाती है
रिश्तों के गणित में
शून्य आता है जब परिणाम
तो नये सिरे से करती है
ज़मा और घटे का हिसाब
पर कहाँ मिलता है सू्त्र
जो मन को हमेशा
सौ में सौ दे सके!!
...
मन राजा हो तो
कुछ न होकर भी
बहुत कुछ होता है पास
संतोष का धन
हमेशा खजाने में
होना ज़रूरी है
फिर ये अमीरी
ताजिंदगी साथ रहती है !!!!
बिलकुल , ये अमीरी साथ नहीं छोड़ती
जवाब देंहटाएंशुभ संंध्या दीदी
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों के बाद नेट पर आई हूँ
आते ही आपके दर्शन हो गए...अहोभाग्य
बहुत सुन्दर रचना पढ़वाई आपने
आभार...
मन के हारे हार है मन के जीते जीत !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंमन राजा हो तो कुछ न होकर भी बहुत कुछ होता है पास संतोष का धन हमेशा खजाने में होना ज़रूरी है फिर ये अमीरी ताजिंदगी साथ रहती है !!!!
जवाब देंहटाएंसुंदर पंक्तियां।
सच में सुख दुःख सब मन के ऊपर ही निर्भर है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसुन्दर सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंसंतोष की अमीरी ताजिंदगी साथ रहती है..बहुत सही...
जवाब देंहटाएंनमस्कार..
संतोष ही तो सब है ..अति सुन्दर कहा है .. आभार..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, मंगलकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना --- मन से मन तक भाती हुई
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
:) हम तो मन के राजा हैं :)
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