शनिवार, 15 नवंबर 2014

यादों के धागे !!!

 तुम्‍हारी यादों के रास्‍ते
चलते-चलते मैं जब भी
अतीत के घर पहुँचती
तुम रख देते
एक संदूक मेरे सामने
मैं तुम्‍हें महसूस करती
कुछ स्‍मृतियों की
धूल झाड़ती
कुछ को धूप दिखाती
ये सीली-सीली यादें
कितना कुछ कहती बिना कुछ कहे !
...
तुम कहा करते थे न कि
खुशियों के बीज़ बोने पड़ते हैं
दर्द की कँटीली बाडि़याँ
उग आती हैं खुद-ब-खुद
मैं हँसती थी औ’ कहती थी
तुम्‍हें तो फिलॉसफ़र होना चाहिये था
नाहक़ ही तिज़ारत में आ गये
तुम मुँह फ़ेर कहते
अब कुछ नहीं कहूँगा !!
...
सच, मैने भी तो बोये थे
कुछ हँसी और मुस्‍कराहट के पल
इन सीली यादों का साथ तो
नहीं माँगा था
पर ये खुद-ब-खुद
ले आईं थीं वक्‍़त के साथ नमीं
तुम्‍हारी बातों का अर्थ
जिंदगी के कितने क़रीब था
सच यादों के धागे बिना
गठान बाँधे भी
आजीवन साथ बंधे रहते हैं !!!


16 टिप्‍पणियां:

  1. खुशियों के बीज़ बोने पड़ते हैं दर्द की कँटीली बाडि़याँ उग आती हैं खुद-ब-खुद......

    सुंदर पंक्तियाँ...बोध देती हुईं..

    जवाब देंहटाएं
  2. सारगर्भित बहुत ही सुन्दर रचना !

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (16-11-2014) को "रुकिए प्लीज ! खबर आपकी ..." {चर्चा - 1799) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  4. सच यादों के धागे बिना गठान बाँधे भी आजीवन साथ बंधे रहते हैं !
    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. खुशियों के बीज़ बोने पड़ते हैं दर्द की कँटीली बाडि़याँ उग आती हैं खुद-ब-खुद.....

    वाह।

    जवाब देंहटाएं
  6. सच है। यादों के धागों को गूंथने के लिए समय की सलाई की आवश्यकता भी नहीं। अपने आप साथ चले आते हैं!

    जवाब देंहटाएं
  7. खुशियों के बीज बोते रहने होते हैं ... यादों को पीना होता है प्यास बुझाने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर ........महकती हुई यादें सदा ही साथ चलती हैं !!

    जवाब देंहटाएं
  9. सच यादों के धागे बिना
    गठान बाँधे भी
    आजीवन साथ बंधे रहते हैं !!!
    ...बिलकुल सच...यादों की नमी कहाँ सूखती है...

    जवाब देंहटाएं
  10. खुशियों के बीज बोना आना ही एक कला है । यादें तो बिना गाँठ लगाए खुद ही गुंथति जाती हैं । बहुत सुन्दर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  11. सच, मैने भी तो बोये थे कुछ हँसी और मुस्‍कराहट के पल इन सीली यादों का साथ तो नहीं माँगा था पर ये खुद-ब-खुद ले आईं थीं वक्‍़त के साथ नमीं तुम्‍हारी बातों का अर्थ जिंदगी के कितने क़रीब था सच यादों के धागे बिना गठान बाँधे भी आजीवन साथ बंधे रहते हैं !!!

    बेहद सुंदर पंक्तियां।

    जवाब देंहटाएं