शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

उम्र के किसी न किसी दौर में :)

एक चश्‍मा प्‍लस (+) का
हो गया है जीवन भी
जब भी लगाया
नये सिरे से
निगाहों को अभ्‍यस्‍त करना पड़ा,
कई बार धुँधली इन आकृतियाँ से
मन की अकबकाहट
चेहरे पर साफ़ उभर आती
एक प्रयास देखने का
कटे हुये शीशे में नज़र को टिकाना
या फिर छोटे से गोले में
देखना निकट दृश्‍य !!
.....
चश्‍मा माइनस (-)
सब कुछ दूर बस दूर
नज़दीक में देखो तो लगता
रास्‍ते ऊपर - नीचे कब हो गये :)
सँभल के रखते कदम
ऐसे ही जिंदगी और रिश्‍तों में भी
आ जाती है समय के साथ दूरियाँ
इस माइनस (-) दूरी  के लिए
नहीं है कोई विशेषज्ञ
ना ही कोई चश्‍मा
इन फ़ासलों को कम करने के लिए
जिंदगी की किताब को पढ़ने के लिये
हर किसी को लगाना पड़ता है चश्‍मा
उम्र के किसी न किसी दौर में :)
....

33 टिप्‍पणियां:

  1. कवि ह्रदय में डॉक्टरी घुसपैठ :-)
    बहुत बढ़िया !!!!

    सस्नेह
    अनु

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  2. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीया-

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  3. चश्मा लगाना अच्छा नहीं लगता पर लगाना ही पड़ता है किसी न किसी दौर में..भाव पूर्ण पंक्तियाँ..

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  4. सुंदर बिंब, बहुत बेहतरीन.

    रामराम.

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  5. अमूमन...
    जब रिश्ते क़रीब होते हैं... '-' का चश्मा चढ़ता है...
    जब रिश्ते दूर होने लगते हैं... '+' का चश्मा चढ़ जाता है..

    सही वक़्त पर सही चिन्ह का चश्मा लगवाती है ये ज़िंदगी भी... :)
    सादर

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  6. बहुत बढ़िया.....!!
    सच जिंदगी और रिश्ते में भी समय के साथ आ आती हैं दुरिया ......

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  7. बहुत सटीक विश्लेषण .....वाह!
    बधाई !

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  8. जिंदगी की किताब होती ही ऐसी है ....उसे पढ़ने के लिए न जाने कितने जतन करने पड़ते हैं ...फिर भी ?

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  9. वाह बहत खूब रूपक तत्व का बहतरीन अभिनव समावेश किया है रचना में।

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  10. उपमाओं के ज़रिये सार्थक सन्देश देती हुई बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
    बस ज़िन्दगी कि इतनी समझ ही तो बनानी है!
    बहुत सुन्दर सीमा दीदी।

    सादर
    मधुरेश

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  11. बहुत सुंदर सार्थक सन्देश देती उत्कृष्ट रचना ....!
    ============================
    नई पोस्ट-: चुनाव आया...

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  12. ज़िंदगी और रिश्तों को देखने के लिए यह चश्मा स्वतः ही लगा देता है ऊपर वाला ...सार्थक भाव लिए सुंदर रचना॥:)

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  13. Zindagi ke plus minus ko jis bhavnaatmakata se joda hai wo sachmuch tareef ke kabil hai!! Bahut khoob!!

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  14. वाह ! अद्भुत ! चश्मे के + और - पर इतनी सुन्दर रचना । वाह !

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  15. वक्त के साथ लगता चश्मा..वाह! क्या सुन्दर परिभाषा..

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  16. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  17. ऐसे ही जिंदगी और रिश्‍तों में भी
    आ जाती है समय के साथ दूरियाँ
    इस माइनस (-) दूरी के लिए
    नहीं है कोई विशेषज्ञ
    ना ही कोई चश्‍मा ....बिल्कुल सही

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  18. इन फ़ासलों को कम करने के लिए
    जिंदगी की किताब को पढ़ने के लिये
    हर किसी को लगाना पड़ता है चश्‍मा
    उम्र के किसी न किसी दौर में :)
    ...नहीं है छुटकारा इस चश्मे से...एक गहन अभिव्यक्ति...

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  19. ये चश्मा हमें खुद ही बनाना पड़ता है , कोई और नहीं बता सकता कितना माईनस कितना प्लस !
    रिश्तों को सहेजने की सीख देती कविता !

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  20. जीवन को चश्मे की नज़र से देखा है आपने ... जीवन दर्शन स्पष्ट है ओ आँखें बंद होने पे भी दिखता है ...

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  21. जिंदगी और रिश्ते में भी समय के साथ आ आती हैं दुरिया

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  22. ज़िन्दगी को उम्र के चश्मा के साथ ही नज़र का चश्मा भी लग जाता है... स्पष्ट या अस्पष्ट... सब कुछ. भावपूर्ण, बधाई.

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  23. कल्पना का अप्रतिम सौंदर्य...
    चश्मे के प्लस-माइनस से क्या दर्शन खोजा है आपने। लाजवाब।

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  24. प्लस और माईनस का चश्मा और रिश्ते .... अद्भुत बिम्ब प्रयोग किया है ....

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  25. जब प्रिंट डिजिटल मीडिया नहीं था तो आँखों का उपयोग भी कम था...अब तो दिन में सूर्य देव हैं तो रात में लाइट देवी...जितना मर्ज़ी देखिये...भला हो डॉक्टरों का जो हमारी इस बीमारी का इलाज़ भी किये दे रहे हैं...चश्मा अपरिहार्य होता जा रहा है...उम्र के किसी न किसी दौर में...

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