आस्थावान होता है मन तो
भावनाओं का अभिषेक होना स्वाभाविक है
लेकिन जब भी कभी यह आस्था
किसी दिन विशेष को ईश्वर की दहलीज़
पर आती भीड़ का सैलाब़ आ जाता
ईश्वर की एक झलक पाने के लिए
धक्का-मुक्की मच जाती
पहले आप की श्रेणी यहां नादारद
सिर्फ रह जाता पहले मैं -पहले मैं
दर्शन करके अपना जीवन धन्य करना
.........
यह आस्था किसी दिन विशेष को ही
क्यूँ उमड़ती नवरात्रि हो महाशिवरात्रि
गंगा स्नान हो या फिर
हर की पौढ़ी पर मां गंगा की आरती
आस्था अपनी चरम सीमा पार करते हुए
उत्सव में परीणित हो जाती
यह उत्सव व्यापार हो जाता
मार्ग अवरूद्ध हो
संकरी गली में तब्दील हो जाते
प्रसाद की दुकाने सज जाती ...
आलम यहां तक भी देखा
देव प्रतिमा को समर्पित जल
किसी अगले श्रद्धालु को अर्पित हो जाता
यही होता अंत में
आस्था का परम दर्शन !!!
आस्था जब भी कभी ईश्वर की दहलीज़
पर आती भीड़ का सैलाब़ आ जाता
.....
आस्थावान होता है मन तो
जवाब देंहटाएंभावनाओं का अभिषेक होना स्वाभाविक है
लेकिन जब भी कभी यह आस्था
किसी दिन विशेष को ईश्वर की दहलीज़
पर आती भीड़ का सैलाब़ आ जाता
ईश्वर की एक झलक पाने के लिए
धक्का-मुक्की मच जाती
पहले आप की श्रेणी यहां नादारद
सिर्फ रह जाता पहले मैं -पहले मैं
दर्शन करके अपना जीवन धन्य करना .... भावों में तकलीफ दृष्टिगत है
सच में सोचने वाली बात है....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ..
अनु
अच्छी, सच्ची और सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
बहुत खूब. भीड़ और आस्था के अंतर्संबंध को बखूबी ब्यान कर दिया है आपने. आभार.
जवाब देंहटाएंपूजा भीड़ में हो ही नहीं सकती। इसलिए,अपन ऐसे अवसरों से दूर रहते हैं।
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन .... आस्था भीड़ का रूप ले कर आती है ... और अनचाहे दुर्घटनाएँ हो जाती हैं ...
जवाब देंहटाएंआस्था दिखावा नही ये बात समझनी होगी जहाँ हो वहाँ से भी यदि मानसिक समर्पण कर दिया तो ऊपर वाले को वो भी पहुँच गया ।
जवाब देंहटाएंआस्था मन से होती है ...दिखावे से नही ....
जवाब देंहटाएंमें तो इस में ही यकीन करता हूँ ?
बिलकुल सही कहा आपने......सहमत हूँ ।
जवाब देंहटाएंBehad sahee kaha aapne....sach to ye ki,eeshwar gar hai to wo charachar me hai....sirf kisi mandir ya masjid me nahee...
जवाब देंहटाएंसटीक विचार |
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ||
आस्था अपनी चरम सीमा पार करते हुए
जवाब देंहटाएंउत्सव में परीणित हो जाती
यह उत्सव व्यापार हो जाता
डगमगाता विश्वास और आस्था का मंथन दृष्टिगोचर होता है .....
किसी विषय त्यौहार पर विशेष आस्था उमड़ती तो ज़रूर है, मगर अफसोस वही जो आपने लिखा एक वक्त आते ही आस्था ,आस्था न रहकर महज़ दिखावा बन जाती है। सार्थक पोस्ट...
जवाब देंहटाएंअब आस्था दुर्घटना और व्यापार का रूप ले रही है..
जवाब देंहटाएंसार्थक ....चिंतन योग्य रचना....
विचारणीय पंक्तियाँ.... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसार्थक ....चिंतन योग्य रचना....सुंदर
जवाब देंहटाएंsarthak prastuti .अपराध तो अपराध है और कुछ नहीं ..
जवाब देंहटाएंआस्था पर ही संसार टिका है
जवाब देंहटाएंयुनिक ब्ला{ग ----- फेसबुक टाईमलाईन
आस्था का परम दर्शन !!!
जवाब देंहटाएंआस्था जब भी कभी ईश्वर की दहलीज़
पर आती भीड़ का सैलाब़ आ जाता
....आस्था को बखूबी ब्यान कर दिया है आपने... सार्थक चिंतन आभार
आस्था और विश्वास के संगम स्थल का नाम है भारत भूमि।
जवाब देंहटाएंबात सोचने वाली है ... पर सदियों का ये सिलसिला ऐसे ही तो नहीं हो रहा होगा ... इस आस्था का कारण भी जरूर होगा ...
जवाब देंहटाएंवाह ! आस्था के बाजार को दिखा दिया आपने..
जवाब देंहटाएंआस्था के नाम पर हर तीरथ स्थान सजता हैं ....
जवाब देंहटाएंसार्थक सामायिक सुन्दर चिंतन ,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
आस्था भाव प्रवाहित करती है..
जवाब देंहटाएंबढ़िया सशक्त रचना आस्था एक जन सैलाब हो जाती ...
जवाब देंहटाएंsashakt chitran kiya is aastha ka.
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