गुरुवार, 3 मई 2012

जिसकी जैसी नज़र ....!!!















शब्‍दो का अलाव
मत जलाओ इनकी जलन से
तुम्‍हारे मन की तपिश
शीतलता में नहीं बदलेगी
जो शब्‍द अधजले हैं
उनके धुंए से
दम घुट जाएगा
भावनाओं को आंच पर
जिस किसी ने भी रखा है
उसकी तपिश से  वह भी
सुलग गया है भीतर ही भीतर
इन भावनाओं की
समझ तो है न तुम्‍हें
ये जितना दुलार देती हैं 
जितना समर्पण का भाव रखती हैं
हृदय में उतनी ही निष्‍ठुर भी हो जाती हैं
इनका निष्‍ठुर होना मतलब
पूरी तरह तुमसे मुँह फेर लेना
....
भावनाओं को जानना है तो
जिन्‍दगी से पूछना
बड़ा ही प्‍यारा रिश्‍ता होता है
इनका जिन्‍दगी के साथ
ये जन्‍म से ही आ जाती हैं साथ में
फिर मरते दम तक
हमारी होकर रह जाती हैं
हमारे दुख में दुखी  तो
हमारी खुशी में खुश रहना
इनकी फि़तरत होती है 
...
इनका समर्पण रूह तय करती है
प़ाक लिब़ास में लिपटी
भावनाएं जैसे मां के आंचल में
कोई अबोध शिशु
बस उतनी ही अबोध होती हैं  ये भी
जिसकी जैसी नज़र होती है
बिल्‍कुल वैसे ही दिखती हैं ये  भावनाएं  भी ...!!!

35 टिप्‍पणियां:

  1. कोई अबोध शिशु
    बस उतनी ही अबोध होती हैं ये भी
    जिसकी जैसी नज़र होती है
    बिल्‍कुल वैसे ही दिखती हैं ये भावनाएं भी ...!!

    बहुत बढ़िया प्रस्तुति,
    सुंदर रचना,भाव बहुत अच्छे लगे,...सदा जी...

    MY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....

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  2. भावनाओं को जानना है तो
    जिन्‍दगी से पूछना
    बड़ा ही प्‍यारा रिश्‍ता होता है
    इनका जिन्‍दगी के साथ
    ये जन्‍म से ही आ जाती हैं साथ में
    फिर मरते दम तक
    हमारी होकर रह जाती हैं
    हमारे दुख में दुखी तो
    हमारी खुशी में खुश रहना
    इनकी फि़तरत होती है
    colour of life is such abeautiful and childish.

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  3. शब्‍दो का अलाव
    मत जलाओ
    इनकी जलन से
    तुम्‍हारे मन की तपिश
    शीतलता में नहीं बदलेगी
    जो शब्‍द अधजले हैं
    उनके धुंए से
    घुट जायेगा दम .... माना घुटता है दम पर शब्दों की यज्ञ अग्नि में कितना कुछ जल जाता है , और मिलता है एक निर्वाण

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  4. भावनाएं जैसे मां के आंचल में
    कोई अबोध शिशु
    बस उतनी ही अबोध होती हैं ये भी
    जिसकी जैसी नज़र होती है
    बिल्‍कुल वैसे ही दिखती हैं ये भावनाएं भी ........गहन भावों को बहुत् खुबसूरत शब्दों से पिरो दिया है.....बहुत सुन्दर सदा जी..

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  5. सुभानाल्लाह कितनी गहन है पोस्ट.....बेहतरीन और लाजवाब......हैट्स ऑफ इसके लिए।

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  6. सदा जी!
    भावनाओं को शब्द देना और शब्दों की भावनाओं को अभिव्यक्ति देना यह आपकी विशेषता है.. जितनी आसानी से आप अपनी बात कह देती हैं, उन्हें दिल में उतरने में तनिक भी समय नहीं लगता.. परमात्मा आपकी कविताओं को संजीदगी का शिखर प्रदान करे!!

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  7. सक्स्च कहा है तभी हर कोई नहीं समझ पाता भावनाओं कों ... पाक और सच्ची नज़र चाहिए देखने वाले के पास ...

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  8. बहुत सुन्दर।
    --
    आज चार दिनों बाद नेट पर आना हुआ है। अतः केवल उपस्थिति ही दर्ज करा रहा हूँ!

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  9. भावनाएं जैसे मां के आंचल में
    कोई अबोध शिशु
    यकीनन, कभी किलकारियां मारता हुआ तो कभी रूदन करता हुआ

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. हमारी जिन्दगी ...हमारी भावनाओं से मिल के खेलती है !!!
    खूबसूरत अहसास ....

    एक अपील ...सिर्फ एक बार ?

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  12. इनका समर्पण रूह तय करती है
    प़ाक लिब़ास में लिपटी
    भावनाएं जैसे मां के आंचल में
    कोई अबोध शिशु
    बस उतनी ही अबोध होती हैं ये भी
    जिसकी जैसी नज़र होती है
    बिल्‍कुल वैसे ही दिखती हैं ये भावनाएं भी ...!!!बहुत ही गहरे भावो की अभिवयक्ति......

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  13. अच्छी कविता है। अवगत हुआ आपकी भावनाओं से भी।

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  14. प़ाक लिब़ास में लिपटी
    भावनाएं जैसे मां के आंचल में
    कोई अबोध शिशु
    बड़ा अच्छा लगा यह प्रयोग! कविता के भाव भी मन को भाए।

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  15. बिलकुल ठीक कहा आपने जिसकी जैसी नज़र उसे वैसे ही नज़र आती हैं यह भावनायें...बहुत बढ़िया भाव संयोजन से सजी सार्थक प्रस्तुति....

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  16. Intense and profound. The poem present many facets of life...

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  17. भावनाएं जैसे मां के आंचल में
    कोई अबोध शिशु
    बस उतनी ही अबोध होती हैं ये भी
    जिसकी जैसी नज़र होती है
    बिल्‍कुल वैसे ही दिखती हैं ये भावनाएं भी ...!!!

    सच ...ऐसी ही होती हैं भावनाएं..... सुंदर रचना

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  18. प़ाक लिब़ास में लिपटी
    भावनाएं जैसे मां के आंचल में
    कोई अबोध शिशु !
    निर्दोष या कुटिल भावनाएं , कई बार अपने मन का दोष हो जाता है ....जांकी रही भावना जैसी !

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  19. बहुत सुंदर सदा,,,,,,,,

    बहुत प्यारी अभिव्यक्ति.
    सस्नेह.

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  20. जिसकी जैसी नज़र होती है
    बिल्‍कुल वैसे ही दिखती हैं ये भावनाएं भी ...!!!ekdam solah aane sach....

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  21. इनका समर्पण रूह तय करती है
    प़ाक लिब़ास में लिपटी
    भावनाएं जैसे मां के आंचल में
    कोई अबोध शिशु
    बस उतनी ही अबोध होती हैं ये भी
    जिसकी जैसी नज़र होती है
    बिल्‍कुल वैसे ही दिखती हैं ये भावनाएं भी ...!!!


    जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी …………अति उत्तम अभिव्यक्ति

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  22. भावनाओं और ज़िंदगी का रिश्ता .... बहुत सुंदर रचना ...

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  23. शब्‍दो का अलाव
    मत जलाओ इनकी जलन से
    तुम्‍हारे मन की तपिश
    शीतलता में नहीं बदलेगी
    जो शब्‍द अधजले हैं
    उनके धुंए से
    दम घुट जाएगा


    गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई

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  24. शब्द भी तो मन की तपन से ही निकलते हैं, हर बार और प्रखर हो

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  25. भावनायों की अभिव्यक्ति बेहद संजीदगी से बयान कर गई ..

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  26. सुन्दर भावमय अभिव्यक्ति ...आभार

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  27. भावनाओं को बहुत गहराई से समझा है...बहुत सुन्दर रचना...

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  28. sada ji----ye panktiyan bahut bahut hi sateek lagin
    इनका समर्पण रूह तय करती है
    प़ाक लिब़ास में लिपटी
    भावनाएं जैसे मां के आंचल में
    कोई अबोध शिशु
    बस उतनी ही अबोध होती हैं ये भी
    जिसकी जैसी नज़र होती है
    बिल्‍कुल वैसे ही दिखती हैं ये भावनाएं भी ...!
    bahut bahut hi behtreen prastuti
    hardik badhai
    poonam

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  29. शब्‍दो का अलाव और अधजले शब्द मन में खलिश जरूर पैदा करते है. सुंदर कविता बेहतरीन शब्द सयोजन के साथ.

    बधाई और शुक्रिया.

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  30. भावनाओं को जानना है तो
    जिन्‍दगी से पूछना
    बड़ा ही प्‍यारा रिश्‍ता होता है
    इनका जिन्‍दगी के साथ!
    ...बहुत सुन्दर रचना!

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