गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

... पर प्रेम











प्रेम में सच्‍चाई होती है जब
वह बस सहज हो जाता है
तज देता है द्वेष और अहंकार को
हर बात पर विश्‍वास कर लेता है
मन से
स्‍वार्थ की भावना को मिटाकर 
हो जाता है कृपालु
ईर्ष्‍या क्‍या होती भूल जाता है
जाने कब
अपनी बड़ाई नहीं करता  प्रेम स्‍वयं कभी
बस मन में  आस्‍था रखते हुये 
आशान्वित हो जाता है
हर बात के प्रति
इतनी सहनशीलता होती है प्रेम में 
इसमें तो अन्‍तर्मन बस कुंदन हो जाता है
वह देना सीख लेता है
पाने की अपेक्षा
बुरा नहीं सोचता ...बुरा नहीं बोलता 
कुचाल नहीं चलता ...झुंझलाता भी नहीं
हर परिस्थिति में
एक मुस्‍कान लबों पर सजाकर
हर्षित रहता है हर पल
श्रद्धा...आशा...प्रेम
ये तीनो स्‍थायी होते हैं ... पर प्रेम
इन सबमें श्रेष्‍ठ ..... बस श्रेष्‍ठ ....।

35 टिप्‍पणियां:

  1. इसमें तो अन्‍तर्मन बस कुंदन हो जाता है
    वह देना सीख लेता है
    पाने की अपेक्षा

    सच है.........
    यही सच्चा प्रेम है....
    बहुत सुंदर सदा.

    सस्नेह.

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  2. क्या कहने
    बहुत सुंदर

    अपनी बड़ाई नहीं करता प्रेम स्‍वयं कभी
    बस मन में आस्‍था रखते हुये
    आशान्वित हो जाता है
    हर बात के प्रति
    इतनी सहनशीलता होती है प्रेम में

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  3. प्रेम शश्वत है...बहुत सुन्दर भाव ...सदा जी....

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  4. प्रेम ही शाश्वत है …………तो वो ही तो पूर्ण होगा ना ………सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  5. प्रेम व्याख्यित होकर भी अव्याख्यित

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  6. हर परिस्थिति में
    एक मुस्‍कान लबों पर सजाकर
    हर्षित रहता है हर पल
    श्रद्धा...आशा...प्रेम
    ये तीनो स्‍थायी होते हैं पर प्रेम
    इन सबमें श्रेष्‍ठ ..... बस श्रेष्‍ठ ....।

    सुंदर अभिव्यक्ति की बेहतरीन रचना...

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  7. प्रेम की परिभाषा और प्रेम का अन्तर्निहित सार आपने बहुत ही सुन्दर तरीके से व्यक्त किया है!!

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  8. हर परिस्थिति में
    एक मुस्‍कान लबों पर सजाकर
    हर्षित रहता है हर पल
    श्रद्धा...आशा...प्रेम
    ये तीनो स्‍थायी होते हैं पर प्रेम
    इन सबमें श्रेष्‍ठ ..... बस श्रेष्‍ठ

    prem kee sateek paribhasha....bahut khoob!

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  9. प्रेम......????????? क्या और कितना कहा जाये कम है.......उन्चैयाँ भी हैं और गहन घाटियाँ भी ।

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  10. निर्विवाद है प्रेम की श्रेष्ठता ...

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  11. प्रेम में समर्पण होता है। समर्पण श्रद्धा, विश्वास और आस्था से ही आता है। कविता में इन भावों को बड़ी सहजता से समझाया गया है।

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  12. प्रेम खुद में ही सम्पूर्ण हैं

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  13. प्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति...

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  14. प्रेम...वाकई श्रेष्ठ है...इसके आने पर बाकि अपने आप आ जाता है..

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  15. श्रद्धा...आशा...प्रेम
    ये तीनो स्‍थायी होते हैं ... पर प्रेम
    इन सबमें श्रेष्‍ठ ..... बस श्रेष्‍ठ ....।
    we cant define the love and its spirite

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  16. बहुत श्रेष्ठ होता है प्रेम - दूसरे पर कुछ लादता नहीं ,स्वयं समर्पित हो जाता है !

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  17. प्रेम का यह उद्दात्त स्वरूप बड़ा ही विरल है।

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  18. पर-प्रेम हो या स्वयं से प्रेम हो या परस्पर प्रेम हो ,
    आवश्यक है की बस निः स्वार्थ प्रेम हो |

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  19. श्रद्धा...आशा...प्रेम
    ये तीनो स्‍थायी होते हैं ... पर प्रेम
    इन सबमें श्रेष्‍ठ ..... बस श्रेष्‍ठ ....।

    ....सच है प्रेम से बढ कर कुछ नहीं...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..

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  20. एक मुस्‍कान लबों पर सजाकर
    हर्षित रहता है हर पल
    श्रद्धा...आशा...प्रेम
    ये तीनो स्‍थायी होते हैं ... पर प्रेम
    इन सबमें श्रेष्‍ठ ..... बस श्रेष्‍ठ ....।.....क्योंकि सच्चा प्रेम सिर्फ देना जानता है .....इसीसे श्रेष्ठ है !..वाह सदाजी !

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  21. मन को छू लेने वाली रचना...सुन्दर अभिव्यक्ति ...

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  22. "शाश्वत प्रेम पर सुंदर अभिव्यक्‍ति ! बधाई !

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  23. बहुत ही सुन्दर प्रेमपगी रचना...
    अति उत्तम अभिव्यक्ति ....

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  24. एक मुस्‍कान लबों पर सजाकर
    हर्षित रहता है हर पल
    श्रद्धा...आशा...प्रेम
    ये तीनो स्‍थायी होते हैं ... पर प्रेम
    इन सबमें श्रेष्‍ठ ..... बस श्रेष्‍ठ ....।

    मखमली भावों की सुंदर रचना.

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  25. एक मुस्‍कान लबों पर सजाकर
    हर्षित रहता है हर पल
    श्रद्धा...आशा...प्रेम
    ये तीनो स्‍थायी होते हैं ... पर प्रेम
    इन सबमें श्रेष्‍ठ ..... बस श्रेष्‍ठ ...

    मर्मस्पर्शी प्रस्तुति.

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  26. सारगर्भित रचना । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  27. प्रेम तो वो गहरा सागर होता है जिसकी एक बूंद ही काफी होती है जीवन तो तृप्त कर देने के लिए ...बहुत ही सुंदर भाव संयोजन बेहतरीन अभिव्यक्ति....

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  28. प्रेम की ऊँचाई अवर्णनीय है!
    सुन्दर!

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  29. प्रेम का पंक्षी बस में स्वार्थ नहीं ..सम्पूर्णता है ... प्रेम के गुणों पर सुन्दर रचना

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  30. प्रेम के बारे नें अति सुन्दर भावनाएं . अछ्छी लगीं .

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