सोमवार, 26 मार्च 2012

तुम्‍हारे लिए ही ...!!!

















मन बग़ावत करने लगा है
आजकल उसका
समझाइशो की भीड़ में
नासमझ मन
हर बात पर खुद को
कटघरे में पाकर
बौखला उठता है  जब
आक्रोश उसका
फूलों की जगह कांटों को
थामकर अपनी
रक्‍त रंजित हथेलियों से
तर्पण कर उठता है
दर्द का ...
चीखें पत्‍थर दिल दीवारों से
टकराकर लौटती हैं
रूदन के बीच  जब
कंपकपाते कदम साथ नहीं देते
फिर चौखट को लांघने का
....
सोचती इतना सन्‍नाटा न होता तो
वो अनसुना कर देती
इन चीखों को
एक कोना जो मन का
हमेशा उसकी परवाह में बेकरार हो
उसका ही रहता था सदा
उसकी ही सुनता था सदा
आज वो अपने हक़ के लिए
बस क़ातर नयन लिए
उसकी राह निहारता रहता है
आओगे तुम कभी तो
इस राह पर ... इस राह पर
रहूंगा मैं सदा ... तुम्‍हारा ही ...
तुम्‍हारे लिए ही ...!!!

गुरुवार, 22 मार्च 2012

मुझे पता है ..!!!

तुम्‍हारे और मेरे बीच
दूरियॉं कोई मायने नहीं रखतीं
हम कितना भी दूर हो जाएं
सोचते हैं बस
एक दूसरे को
मन की नज़दीकियां हैं न हमारे पास
....
ये आहटें कैसी
तुम्‍हारे और मेरे बीच
मीलों की दूरी है
फिर भी
मुझे हर बात का एहसास
कैसे हो जाता है
हर बार ही तो ऐसा होता है
इत्‍तेफ़ाक कभी-कभी होता होगा
पर हर बार जब हो तो ...
शब्‍द-शब्‍द में जिया है तुम्‍हें
यकीं तो होगा न
मेरी बात पर
...
हंसती हो जब तुम
शब्‍द भी मुस्‍कराते हैं संग
तुम्‍हारी उदासी से
कैसे बिखर जाते हैं शब्‍द
तुम्‍हारी सिसकियों से
शब्‍दों की नमी से दर्द रिसता है जब
कागज भी भीग जाता है
इस कदर ....
मेरी रूह की सिहरन से
मन कांप जाता है ..
तुम जब भी
हंसी का प्रतीक :)  बनाती हो
मुझे पता है ...
तुम्‍हारी पलकें भीगी होती हैं
तुम्‍ही कहती हो उदासी की चीखें
खामोशी ही सुनती है
खामोशी ही कहती है आंसुओं से
बस तब वो बह कर
अपना मन हलका कर लेती है
और सुकून के कुछ पल
म़यस्‍सर होते हैं बोझिल मन को ... !!!

सोमवार, 19 मार्च 2012

आंसू खारापन लिए हुए भी ... !!!



आंसुओं को आत्‍मा की जुबान कहूं तो
कोई अतिश्‍योक्ति न होगी ...
ये हर भाव पूरी सच्‍चाई से बयां करते हैं
खुशी में भी इनके होने का एहसास
आंखों से छलकने पर हो जाता है
हंसते-हंसते भी आंखें स्‍वत:
तरल हो उठती है  ...
पीड़ा ... शरीर के किसी भी हिस्‍से में
तकलीफ़ हो तो ये सहज़ ही बहते हैं
आंसुओं का बहना ...
किसी से बिछड़ने का दुख हो
किसी से मिलने की खुशी हो
ये खुद को बखूबी व्‍यक्‍त करते हैं
इंसान तो इंसान ईश्‍वर भी
इन आंसुओं को रोक नहीं पाए
कहते हैं सती के वियोग में
भगवान शिव की आंखों से
आंसू की धारा बह निकली थी तो
वैतरणी नदी का जन्‍म हुआ था
रूद्राक्ष की उत्‍पत्ति भी
शिव के आंसुओं से मानी जाती है  ..
आंसु जितना बहते हैं प्रेम व विरह में
उतना ही कवि की कविताओं से भी
ये अपना रिश्‍ता कायम रखते हैं
शायद ही कोई रचनाकार होगा
जिसने अपनी रचनाओं में
इनका जिक्र न किया हो
भावनाओं से आंसुओं का नाता
जन्‍म जन्‍मांतर का तो है ही
आंसू खारापन लिए हुए भी
जीवन में एक मिठास
कायम रखते हैं ....
आपको क्‍या लगता है ... ???


शुक्रवार, 16 मार्च 2012

कोई कुछ कहे न कहे ....
















मायूसियों को क्‍यूँ
इस तरह तुम अपने कांधों पे
ढोये फिरते हो
कोई कुछ कहे न कहे
कोई तुमसे बात करे या न करे
कोई तुम्‍हारे साथ हंसे न हंसे
कोई तुम्‍हें अनदेखा करके गुज़र जाए
तुम क्‍यूँ इस बात को दिल पे लेते हो
सम्‍बंध तुम्‍हारे अकेले का 
तो  नहीं था
ताली कभी एक हाथ से 
बजती है क्‍या .. ?
सम्‍बंधों का कुछ अंश तो 
उसका भी था
जिसके लिए तुम खुद से खफ़ा हो
जब उसे परवाह नहीं तो फिर ...
तुम ही अकेले क्‍यूँ
उस परवाह का लबादा ओढ़कर
उदास लेटे हो
कभी आंसू तो कभी तनहाई
कभी यादें तो कभी वफ़ा की दुहाई
ये सब बस एक टीस ही देते हैं
दिल को ...
बात में दम हो तो
उसे साबित करने की जरूरत नहीं पड़ती
बात बस इतनी ही सही ह‍ै कि
सच्‍ची बात हमेशा कड़वी लगती है
मायूसी ... बुज़दिली सब
मन के हारने की कहानी कहते हैं
एक आवाज़ हमेशा
हौसले की दिल को देना
कोई दे न दे वो पलटकर
जवाब जरूर देगा ...!!!!

सोमवार, 12 मार्च 2012

मेरे कांधे पर तुम्‍हारे हांथ की तरह ...


















उत्‍साह का होना बहुत जरूरी है
इससे रक्‍त का संचार
जितने वेग से बहता है
हमारी वाणी में
जोश भी उतनी ही तेजी से आता है
उत्‍साह यदि अच्‍छे-बुरे का ज्ञान भी
साथ लेकर चले तो
कदम सार्थक हो सकते हैं ...
दिशाओं के भ्रमित होने का
पथ से डिगने का
परिस्थितियों के अनुकूल व प्रतिकूल
होने का अर्थ जब तक
समझ में आए
उन्‍नति की राह पर बाधक
हम स्‍वयं अपने बनें
उनसे सीखने का समझने का
मार्ग हम चुन लें जब भी
मंजिल पे पहुंचने से
हमें कोई रोक नहीं सकता  ...
हथेली को जब भी बन्‍द करता
सोचता मुट्ठी खाली है
फिर भी ये ताकतवाली है
किसी को क्‍या पता
यह खाली है या इसके अन्‍दर बंद हैं मेरी
किस्‍मत की लकीरें
या फिर विश्‍वास का वो रूप
जो मेरे कांधे पर
तुम्‍हारे हांथ की तरह ठहरा है .......

सोमवार, 5 मार्च 2012

मेरे सारे नये रंग भी ...













मां तुम रंग नया लाती तो हो,
पर उसे छिपा लेती हो मुझसे
हर बार  ...
मेरे इंतजार न करने की आदत
से तुम खूब परिचित हो
अपनी मीठी मुस्‍कान से
मन ही मन खुश हो रही हो
जानती हो ...
मेरे सारे नये रंग भी
तुम्‍हारे उस छिपे हुए रंग के
आगे फीके लगते
तुम्‍हारी हथेलियों का स्‍नेह
जब तक मेरी
हथेलियों से नहीं मिलता
रंग निखरते ही नहीं  ...
गुलाल का टीका
सिर पे आशीषों वाला हांथ
हर रंग पे निखा़र ले आता है
आओ न मां ... 

गुरुवार, 1 मार्च 2012

''अर्पिता'' यहां है ...

राजधानी दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले में किताबों की रौनक अपनी छटा बिखेर रही है ....
जिसके लिए आप सभी को इन चित्रों के माध्‍यम से एक संदेश भी प्रेषित है ...
इस मेले में मेरा प्रथम काव्‍य संग्रह ''अर्पिता'' आपकी प्रतीक्षा में है ...


''अर्पिता'' देखने तथा खरीदने के लिए पधारें ..
20वाँ विश्‍व पुस्‍तक मेला
हिंद युग्‍म डॉट कॉम
स्‍टाल-59, हॉल- 11, प्रगति मैदान, नई दिल्‍ली
(भारतीय ज्ञान पीठ के स्‍टॉल के पीछे )


 ''अर्पिता'' जब तक समर्पण का भाव नहीं होता ..
यूँ ही कोई नाम नहीं होता ...


 क्‍यूँकि मेला 4 मार्च 2012 तक ही रहेगा ... समय बेहद सीमित है ...


हर्ष का विषय है कि ....
किताबों को ऑनलाइन बेचने वाली कंपनी फ्लिपकॉर्ट की वेबसाइट पर
विक्रय के लिए ''अर्पिता '' उपलब्ध करा दी गयी है ...
यह वेबसाइट किताबों को क्रेता तक 3-4 दिनों में पहुँचा भी देती है।