शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

जिन्‍दगी कहां अंकगणित ....???

सम कुछ भी नहीं,
किसी के पास नहीं
सिवाय अंकों के खेल में
पर जिन्‍दगी
कहां अंकगणित होती है ....
बुद्धत्‍व का बोध कब होता है
जब हम अपने अंदर के
अशुद्ध विचारों को मार देते हैं
उसी पल हमारा नया जन्‍म होता है
खुद को मारने का अर्थ
उन स्थितियों को मारना
जो अहंकार को
बनाये रखती हैं
दृढ़ रहकर
उन हालातों को हटाना जो
हमें सत्‍य की राह से
विलग करते हैं ...
कभी सुख से सुख का सामना हो तो
ईर्ष्‍या हो उठती है
सामने वाले को आखिर वो
सुखी कैसे
मुझसे कम क्‍यूं नहीं
मेरी बराबरी पे
सच बहुत ही नागवार गुजरता है
सुख का सुख से मिलना
मानव मन में
समानता का भाव
कहीं ऊंच-नीच
कहीं वर्ण भेद
कहीं अमीरी-गरीबी तो है ही
लेकिन जब
दुख से दुख मिला तो
मन यहां भी
कसमसा उठता है
खुद को तसल्‍ली देने के लिए
ओह ... मैं अकेला नहीं
वो भी तो दुखी है
खुद को समझा लेता है
किसी तरह
ये मन है ही ऐसा
कुछ भी सम नहीं होने देता ...
किसी ने कहा है
इंसान मन से ही राजा मन से ही फ़कीर ...
भावनाएं ही आपको श्रेष्‍ठ बनाती हैं
फिर वह नज़र आपकी हो या
किसी और की ... !!!

34 टिप्‍पणियां:

  1. बुद्धत्‍व का बोध कब होता है ... जब हमारे अन्दर से हमारी सोच रुग्ण,वृद्ध और मृत होने लगती है ...

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  2. किसी के पास नहीं
    सिवाय अंकों के खेल में
    भावों का अनूठा समन्वयन हर पंक्ति बहुत कुछ कहती हैं।

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  3. ऐसे विषयों पर कविता लिखना बहुत महत्वपूर्ण कार्य है ।

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  4. इंसान मन से ही राजा मन से ही फ़कीर ...
    भावनाएं ही आपको श्रेष्‍ठ बनाती हैं
    फिर वह नज़र आपकी हो या
    किसी और की ... !!!
    Wah! Kya baat kah dee! Yahee to pooree rachana ka nichod hai!

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  5. मन को साधना ही तो दुष्कर होता है और यदि मन को साध लिया तो समत्व स्वंय प्राप्त हो जाता है।

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  6. खुद को मारने का अर्थ
    उन स्थितियों को मारना
    जो अहंकार को
    बनाये रखती हैं

    बहुत ही सुन्दर पोस्ट......हम स्वयं ही अपने लिए बाधा हैं बहुत खूब|

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  7. यही क्या कम है कि हर विषम के बाद सम आ जाता है।

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  8. खुद को मारने का अर्थ
    उन स्थितियों को मारना
    जो अहंकार को
    बनाये रखती हैं....

    बहुत सुन्दर रचना
    सादर

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  9. भावनाएं ही आपको श्रेष्‍ठ बनाती हैं....
    सच...

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  10. इंसान मन से ही राजा मन से ही फ़कीर ...
    भावनाएं ही आपको श्रेष्‍ठ बनाती हैं
    फिर वह नज़र आपकी हो या
    किसी और की ...

    Great philosophy ...

    .

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  11. भावनाए ही इंसान को आगे बढाती,...सुंदर पोस्ट

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

    नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
    अमरशहीद मातृभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
    भूल हुई शासन दे डाला, सरे आम दु:शाशन को
    हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  12. Sada ji...

    visham aur sam pahlu sikke ke...
    Rahte sang sada hi man ke...
    Paate kuchh to sam ho jaata..
    Visham jo chhote to ban jata..

    Khushiyan baante khushiyan badhtin..
    Gam baate hota hai kam..
    Ankganit jeevan ka saada..
    Sam ho ya ho fir ye visham...

    Sundar kavita...

    Deeapak Shukla..

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  13. मन न सम रहने देता है न विषम ... बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  14. sahi kaha, bhaavnaayen hamaari soch ka nirdharan karti hai aur jivan ko disha deti hai.

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  15. पर जिन्‍दगी
    कहां अंकगणित होती है ....
    वाह ! बिलकुल सही ..

    आभार !!

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  16. आपकी यह पोस्ट सीधे हृदय को संप्रेषित होती है और 'अ-सम' होने की प्रवृत्ति को सरल शब्दों में कहती है और समझा देती है. उत्कृष्ट पोस्ट.

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  17. जब हम अपने अंदर के
    अशुद्ध विचारों को मार देते हैं
    उसी पल हमारा नया जन्‍म होता है...
    बहुत अच्छी प्रस्तुति .

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  18. उन्नत भाषा शैली समेटे विचार ..

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  19. इंसान मन से ही राजा मन से ही फ़कीर ...
    भावनाएं ही आपको श्रेष्‍ठ बनाती हैं
    फिर वह नज़र आपकी हो या
    किसी और की ... !!!

    जिसने कहा है वो आज की जिंदगी को नहीं जी रहे हैं... भावनाओं का कोई मोल नहीं है जी... वो पता नहीं किस जमाने का कथन है...

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  20. बहुत सुंदर, क्या कहने

    ये मन है ही ऐसा
    कुछ भी सम नहीं होने देता ...
    किसी ने कहा है
    इंसान मन से ही राजा मन से ही फ़कीर ...

    बिल्कुल सच

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  21. बुद्धत्‍व का बोध कब होता है
    जब हम अपने अंदर के
    अशुद्ध विचारों को मार देते हैं
    उसी पल हमारा नया जन्‍म होता है
    खुद को मारने का अर्थ
    उन स्थितियों को मारना
    जो अहंकार को
    बनाये रखती हैं

    ati uttam..

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  22. मन के नियंत्रण में ही तो हो गया है सब कुछ...काश इसे भी नियंत्रित कर बुद्धत्व को प्राप्त कर सकते...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

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  23. भावनाएं ही आपको श्रेष्‍ठ बनाती हैं
    फिर वह नज़र आपकी हो या
    किसी और की ... !!!

    बहुत ही सुन्दर और अर्थपूर्ण पंक्तियाँ हैं

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  24. बहुत खूब...
    वास्तव में मन के सटीक व्याख्या की है ....

    इंसान मन से ही राजा मन से ही फ़कीर ...
    बधाई.

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  25. मन के भावों पर यदि नियंत्रण हो तो सब कुछ संभव है. सुंदर अर्थपूर्ण प्रस्तुति.

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  26. मन शुद्ध और ईमानदार हो तभी हम श्रेष्ठता का दावा कर सकते हैं ! शुभकामनायें आपको !

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  27. वाह बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति ....

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