गुरुवार, 8 सितंबर 2011

मन के मुताबिक चलने से .....!!!












आराम
से
थकने के बारे में
सोचा है कभी
इससे भी थक जाता है मन
हर चीज से थकान का अनुभव होता है
नहीं थकते हैं हम सिर्फ
मन के मुताबिक चलने से .....!!!

कभी खुश रहने की
अभिलाषा पूरी नहीं होती
खुशी हमेशा जाने क्‍यूं
दूर ही रहती है
कभी पा लेना
इच्छित वस्‍तु
खुशी को पाना क्षणभंगुर सा
अगले ही पल
बढ़ जाती है खुशी
दूसरे पड़ाव पर
वह नित नये
ठिकाने बदलती रहती ह‍ै
और हम
उसकी तलाश में हो लेते हैं ...!!!

31 टिप्‍पणियां:

  1. अगले ही पल
    बढ़ जाती है खुशी
    दूसरे पड़ाव पर
    वह नित नये
    ठिकाने बदलती रहती ह‍ै
    और हम
    उसकी तलाश में हो लेते हैं ...!!!


    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. नहीं थकते हैं हम सिर्फ
    मन के मुताबिक चलने से .....!!!

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ....अभिलाषाएं भी कभी पूरी नहीं होतीं...ज़िन्दगी हो जाती है.

    नीरज

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  3. आराम से
    थकने के बारे में
    सोचा है कभी
    इससे भी थक जाता है मन
    बहुत सच लिखा आपने मन के मुताबिक चलने तो ही अच्छा है।

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  4. मन के मुताबिक कही गई बात ने कविता को उच्च स्तर प्रदान किया है।

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  5. कभी खुश रहने की
    अभिलाषा पूरी नहीं होती
    खुशी हमेशा जाने क्‍यूं
    दूर ही रहती है...

    It's true ! Quite often I have experienced that.

    .

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  6. आराम से
    थकने के बारे में
    सोचा है कभी
    इससे भी थक जाता है मन
    हर चीज से थकान का अनुभव होता है
    नहीं थकते हैं हम सिर्फ
    मन के मुताबिक चलने से .....!!!

    सार्थक पंक्तियां!!

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  7. गहरा यतार्थ समेटे ये पोस्ट लाजवाब है.......मन को इसीलिए चंचल कहा गया|

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  8. वह नित नये
    ठिकाने बदलती रहती ह‍ै
    और हम
    उसकी तलाश में हो लेते हैं ...!!!

    बढ़िया रचना.....:)

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  9. सहजी है मन की मुताबिक़ ही काम करना चाहिए ... पर कई बार ये संभव भी नहीं होता ....

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  10. उसकी तलाश में हो लेते हैं ...!!!बेहतरीन पंक्तिया....

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  11. खुश रहने के लिये मन नये ठिकाने ढूढ़ता है, सार्थक अभिव्यक्ति।

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  12. खुशियाँ सच ही क्षण भंगुर ही लगती हैं ... मन की सही स्थिति को कहती अच्छी प्रस्तुति

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  13. कुछ तो अपने मन का भी करना पड़ता है. वरना मन नाराज़ हो जाता है.

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  14. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  15. गहरी अभिव्यक्ति . सुन्दर रचना

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  16. ख़ुशी की तलाश में मन के भटकाव के गहन चिंतन को आपकी कविता ने बखूबी जीया है !
    आभार !

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  17. खुशी तो भीतर होती है और हम बाहर खोजते हैं।

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  18. आराम से
    थकने के बारे में
    सोचा है कभी
    इससे भी थक जाता है मन
    हर चीज से थकान का अनुभव होता है
    नहीं थकते हैं हम सिर्फ
    मन के मुताबिक चलने से .....!!!
    अपने मन का दिन भर में कोई काम हो जाए ,मन विश्राम हो जाए .और पसंदीदा काम आदमी दिन भर भी करे तो थकान पास न फटके .
    अच्छी रचना .बधाई !

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  19. गहरी अभिव्यक्ति . सुन्दर रचना

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  20. शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी रचना ....

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  21. खुशी को पाना क्षणभंगुर सा
    अगले ही पल
    बढ़ जाती है खुशी
    दूसरे पड़ाव पर
    वह नित नये
    ठिकाने बदलती रहती

    गहरी अभिव्यक्ति . सुन्दर रचना

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  22. बहुत गहरी अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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  23. गहन चिंतन... सार्थक कविता...
    सादर साधुवाद...

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  24. बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त प्रस्तुती!

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