एक दिन में तो अभी भी
वही पूरे चौबिस घंटे होते हैं
जैसे पहले होते थे
अभी भी पहले की तरह भोर में
सूरज का निकलना
शाम ढले छिप जाना
फिर क्यों हम
इतना व्यस्त हो गये हैं
जब देखो हर दूसरा व्यक्ति
यही शिकायत करता है
समय न मिलने की बात करता है
यह सच है कि
पहले की अपेक्षा
हमने अधिक उन्नति कर ली है
पर दूर हो गये हैं हम
इन भौतिक संसाधनों के चलते
अपनो से ...
और वक्त की कमी का
ढिंढोरा पीटते रहते हैं ..... ।।
kaam karne ka dhang badal gaya , her koi naukri karne laga ... waqt bechara hataash hai
जवाब देंहटाएंआदरणीय सदा जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
वाकई, आपने एक लाजवाब कविता के माध्यम से वक्त की कमी को दर्शाया है...
खूबसूरत रचना बधाई !
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बडी गहरी और सही बात कह दी।
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सही कहा ...वक्त की कमी का रोना लिए बैठे रहते हैं ...सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंसदा जी ,
मैं तो यही कहूँगी की -"तारीफ़ है फिर भी की लोग अपने कीमती समय में से कुछ समय औरों के लिए भी निकाल ही लेते हैं "
.
बहुत सटीक और सार्थक रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक प्रस्तुति.. अगर चाह है तो राह है,और अपनों के लिये समय भी निकाला जा सकता है..लेकिन हम इतने आत्मकेंद्रित हो गये हैं कि अपने सिवाय दूसरों की भावनाओं के बारे में सोचते ही नहीं..
जवाब देंहटाएंbahut sundar bhavabhivyakti.
जवाब देंहटाएंसटीक पंक्तियाँ ....
जवाब देंहटाएंhakikat baya karti rachnna badhai
जवाब देंहटाएंbhavpurn marmikmrachana . abhar ji
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हम तकनीक से एक दूसरे के पास तो बहुत आ गए है पर मन से दूर जा रहे है ...बस वक्त तो बहाना है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
bilkul sahi kaha aapne ...sundar tareeke se apni baat kah di hai aapne is rachna ke maadhym se
जवाब देंहटाएंbilkul sahi baat keh di aapne rachna ke madhyam se....
जवाब देंहटाएंअक्षय-मन "!!कुछ मुक्तक कुछ क्षणिकाएं!!" से
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई...
In 24 ghanton mein ham poora jeevan jo jeena chaahte hain ... samvedansheel rachna hai ...
जवाब देंहटाएंhakikat kahti rachna...
जवाब देंहटाएं...सच बात काही आपने । और हमारी ढेर सारी व्यस्तता तो गैरज़रूरी चीजों के लिए होती है । सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंएक शानदार और अनुपम प्रस्तुति जो वक्त न होने के बहाने पर तीखा व्यंग्य है.चाह से ही राह है.
जवाब देंहटाएंभौतिक संसाधनों ने कही दूरियां बढ़ायी हैं तो कही नजदीकियां भी ...
जवाब देंहटाएंआज पूरा विश्व सिमट गया है , तो नजदीकी रिश्ते दूर हो गए हैं ...
परिवर्तन को दर्शा रही है कविता !
अनावश्यक को जीवन में लपेट लेने से समय कम लगने लगता है।
जवाब देंहटाएंइस कविता में बहुत सही सवाल उठाया है आपने. इंसान के पास समय की इतनी कमी कभी नहीं थी.यह समय से आगे निकलने की हठ का नतीजा है. आधुनिकता के इस दौर में हम अपने ही बनाये जाल में कसमसा रहे हैं. किसी दूरस्थ गांव या कस्बे में देखें. आज भी लोगों के पास समय ही समय है.
जवाब देंहटाएं-----देवेंद्र गौतम
ahsaason se saraabore rachna......
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