सोमवार, 20 सितंबर 2010

श्रृंगार हो जाती .....


बदल जाती हर सुबह
एक कली की जिंदगी,
वह खिलकर फूल बन जाती
कभी वह चढ़ा दी जाती
किसी देवता के चरणों में
कभी चढ़ा दी जाती
अर्थी पे
कहीं उसकी खुश्‍बू से
महक उठता
घर का कोना-कोना
कभी किसी के बालों का
श्रृंगार हो जाती
इक सुबह‍ आती ऐसी भी
उतार दी जाती
देवता के चरणों से
बिखर जाती किसी के जुल्‍फों में
सजी उसकी पंखड़ी
और अंत हो जाता उसका
सदा के लिए !!

25 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भाव ....माखन लाल चतुर्वेदी की पंक्तियाँ याद आ गयीं ...फूल की अभिलाषा ...

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  2. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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  3. उत्तम विचार, सुंदर चित्र! बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    समझ का फेर, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वरूप की लघुकथा, पधारें

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  4. बहुत सुन्दर औरत का हश्र इन फूलों जैसा ही होता है
    बधाई इस रचना के लिये।

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  5. जीवन् संचार करती है ... फूल बन के खिलने की प्रेरणा देती है कली .... जबकि जानती है उसका जीवन बहुत छोटा होता है ...

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  6. क्षणभंगूर जीवन का अहसास कराती रचना!!

    आभार।

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  7. परिवर्तन संसार का नियम है...लेकिन ऐसा परिवर्तन दुख लाता है. सुंदर रचना.

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  8. वाह बेहद सुन्दर शब्दों में कलि की व्यथा लिख डाली है आपने...बधाई..

    नीरज

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  9. kali ke dono paksho ko badi khoobsurati ke saath saamne rakkha hai ,badhiya laga .

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  10. सुंदर रचना ...कली जो फूल बन जाती है.......Beautiफूल

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  11. आपने तो बहुत सुन्दर कविता लिखी...बधाई.


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    'पाखी की दुनिया' में- डाटर्स- डे पर इक ड्राइंग !

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  12. sada ji,
    bhahut achhi kavita.seedhi-saral-sacchi.

    mera geet apne pasand kiya, iske liye bhi dhanywad.
    rohit g.r.
    rohitkalyaan@gmail.com

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  13. कली की ज़िन्दगी तो हर पल बदलती है

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