शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

एक जिन्‍दगी ....










वो जाने क्‍यों

होने लगी कमजोर

मुहब्‍बत का उस पर

असर होने लगा,

सामने होने पर

जिसको न देखा

नजर उठा के,

निगाहें

उसके आने का

रस्‍ता तकने लगी

बातें करती सांसे आपस में

जब तेज-तेज

वह खुद की

हालत से डरने लगी

कैसे बता पाएगी

इन पलों की सरगोशियां

ख्‍यालों के तसव्‍वुर

पे उस अजनबी चेहरे का छा जाना

हौले-हौले होठों का कंपकपाना

छिपा के हथेलियों में चेहरा

फिर मुस्‍कराना,

जैसे एक जिन्‍दगी

का जीकर हर पल खुशी-खुशी

गुजर जाना ।

14 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत सुन्दर दुलहन की तरह रचना भी सुन्दर है बधाई

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  2. खूबसूरत एहसासों को खूबसूरती से लिखा है....

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  3. वो जाने क्‍यों

    होने लगी कमजोर

    मुहब्‍बत का उस पर

    असर होने लगा,.....


    सुन्दर भावाभिव्यक्ति!

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  4. Antarim Sanvedanao ko bahut hi sunder dhaung se sajaya hai aapne....Bahut bdadiya!!

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  5. सच में मोहब्बत में ऐसा ही होता है.... पल भर की ख़ुशी में पूरा जहाँ मिल जाता है.....


    बहुत अच्छी लगी यह कविता ... दिल में उतर गई.....

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  6. शायद ये प्रेम की इब्त्दा है .......... इस प्रेम में तो जीने की राह है ......... ख्यालों के तस्सवुर में जीना ...... कमाल का लिखा है .........

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  7. बहुत सुन्दर रचना! आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

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  8. बहुत अच्छी और सुंदर पंक्तियों के साथ बहुत ..... सुंदर पोस्ट....

    नोट: लखनऊ से बाहर होने की वजह से .... काफी दिनों तक नहीं आ पाया ....माफ़ी चाहता हूँ....

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