बुधवार, 23 सितंबर 2009

मां के सपने .....

सपने बुनते-बुनते,

आंखे थक सी गईं थीं

मां की कभी

वह कहती मेरा लाल

जल्‍दी से बड़ा हो जाए

फिर कहती

खूब पढ़-लिख जाए

लाल बड़ा भी हुआ

पढ़ लिख भी गया

मां की आंखो ने

फिर एक सपना बुना

अब यह कमाने लगे तो

मैं एक चांद सी

दुल्‍हन ले आऊं

इसके लिए

मैं डरने लगा था

सपनो से

कहीं

मैं

एक दिन

अलग न हो जाऊं

मां से

इन सपनों की वजह से

मां की दुल्‍हन भी

सपने लेकर आएगी

अपने साजन के

मैं किसकी

आंख में बसूंगा

किसके

सपने पूरे करूंगा ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. जी चाहता है सिर्फ वाह वाह वाह वाह कहूँ.........

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  2. bahut hi oomda kavita........... pesopesh mein to admi aa hi ajyega.........

    bahut shandar.........



    thanx for sharing........

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  3. बेटे के साथ ये उलझन तो हमेशा ही रहती है।

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  4. acchee रचना cहै बेटा अक्सर ही इस उहापोह मे कई जीने के पल खो बैठता है वहीक्यों तीनो ही । क्या माँ जरा स समझौता नहीं कर सकती उसे इस स्थिती से उबारने के लिये। ताकि वो दोनो खुश रह सकें।

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