बुधवार, 12 अगस्त 2009

शीतल, धवल, ये निश्‍छल मन . . .


शीतल, धवल, ये निश्‍छल मन, करने चले नमन,

लहराने तिरंगा ले के ख्‍वाहिश सब ओर हो अमन ।

चाहत और वफादारी का पैगाम, देता सरहद पे,

बैठा सिपाही निभाने को वादा, देश में हो अमन ।

न ये तेरा है न मेरा है भारत हर हिन्‍दुस्‍तानी का,

रंग-रंग के खिलते फूल जहां ये है वो चमन ।

बना देश को गौरवाशाली लहरा कर शान दिखाये ये,

जीत के संग सम्‍मान दिलाये कहलाये ये मेरा वतन ।

छब्‍बीस जनवरी, पन्‍द्रह अगस्‍त को लाल किले पर,

लहराता जो तिरंगा तो झूमे सदा हर एक मन

3 टिप्‍पणियां:

  1. बना देश को गौरवाशाली लहरा कर शान दिखाये ये,
    जीत के संग सम्‍मान दिलाये कहलाये ये मेरा वतन

    तिरंगे की तो शान ही निराली है............ आपने उसमें और चार चाँद लगा दिए हैं

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  2. तिरंगे की अपनी ही निराली शान है, जो शायद कभी धूमिल नहीं पड़ सकती, वर्ना लोगों ने धूमिल करने में कसर ही क्या छोड़ राखी है.

    शानदार, राष्ट्र-भक्ति से ओत-प्रोत आपकी यह कविता विशेष पसंद आई.

    बधाई.

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