मंगलवार, 25 अगस्त 2009

एक – एक फूल गूंथकर ...

जाने कब से बिखरी थी

मेरे चारों ओर तेरी यादें

जिन्‍हें समेटकर

मैं तुझे अपनी रूह में

बसाना चाहता था


जिनसे निकलकर

फिर तुम यूं जा ना सको

मुझे देकर तनहाई

मैं खुद के वजूद में,

उन यादों को

यूं गूंथना चाहता हूं

जैसे एक एक फूल गूंथकर

बनती है पूरी माला


जिसकी खुश्‍बू बस जाती है

अन्‍तर्मन में

यादों के साये में

मैं गुनगुनाना चाहता हूं

तुझे गीत की तरह

अपनाना चाहता हूं

संगीत की तरह जीवन में

13 टिप्‍पणियां:

  1. सदा जी बहुत ही बेहतरीन रचना मन खुश हो गया ये लायने तो कुछ ख़ास ही बन पड़ी है

    मैं गुनगुनाना चाहता हूं

    तुझे गीत की तरह

    अपनाना चाहता हूं
    संगीत की तरह जीवन में
    मेरी बधाई स्वीकार करे
    सादर
    प्रवीण पथिक

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  2. बहुत सुन्दर रचना है बधाई स्वीकारें।

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  3. अत्यन्त सुंदर रचना! यही कहूँगी की आपकी लेखनी को सलाम!

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  4. तुझे गीत की तरह

    अपनाना चाहता हूं

    संगीत की तरह जीवन में।

    सुंदर, आह्ललादक लाइने।

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  5. सदा जी की सदा की तरह एक और बेहतरीन प्रस्तुति.
    बधाई.

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  6. dil se nikli hui
    dil hi ki baateiN
    anmol rachnaa
    anmol prastuti

    ---MUFLIS---

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  7. जिनसे निकलकर

    फिर तुम यूं जा ना सको

    मुझे देकर तनहाई

    मैं खुद के वजूद में,

    उन यादों को

    यूं गूंथना चाहता हूं

    जैसे एक –एक फूल गूंथकर

    बनती है पूरी माला...mujhe ye kavita etni achhi lagi kyee baar padhi...boht khoobsurat likhti hai aap....

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  8. मैं गुनगुनाना चाहता हूं
    तुझे गीत की तरह
    अपनाना चाहता हूं
    संगीत की तरह जीवन में

    लाजवाब लिखा है ............ किसी को मन में basaane की chaah .......... sundar रचना

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  9. यादों के साये में

    मैं गुनगुनाना चाहता हूं

    तुझे गीत की तरह

    अपनाना चाहता हूं

    संगीत की तरह जीवन में

    ..यादों के सहारे जीवन के सकारात्मक पक्षों को उजागर करती कविता.

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  10. बहुत प्यारी रचना सदा जी...
    आज कुछ पुराने पन्ने पलट रही हूँ...
    आप भी यादें ताज़ा कर लीजिए :-)

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  11. बहुत सुन्दर रचना.दिल को भा गयी

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