मुझसे पूछ तो मैं सच बतलाऊं तुझको लोगो के पास,
अपने दुख और दूसरों की ख़ुशियों का हिसाब होता है।
घाव पे किसी के कोई मरहम नही रखता यहां पर,
सब के पास बस अपने जख्मों का हिसाब होता है ।
कहने दे जिसे जो कहता है बुरा मत माना कर तू,
ऊपर वाला अच्छे-बुरे सबका हिसाब कर लेता है।
कोई किसी का खुदा नहीं होता मत डरा कर किसी से,
सबका मालिक तो एक है जो खुद हिसाब कर लेता है।
इंसान की फितरत है अच्छे दिन भूल जाता है अक्सर वो,
गर्दिश में जो दिन गुजरे ‘सदा' उनका हिसाब रख लेता है।
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंघाव पे किसी के कोई मरहम नही रखता यहां पर,
सब के पास बस अपने जख्मों का हिसाब होता है ।
बहुत बढिया ...
जवाब देंहटाएंउम्दा कविता मित्र
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंसस्नेह
अनु
बहुत सुंदर भाव !
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