रविवार, 31 मई 2015

इन जिदों की मनमानी!!!!


कुछ जि़दों में से
एक को आज मैने
बाँध दिया है
ओखल डोरी से
और बंद कर दिया है
मन के अँधेरे कमरे में
सोचा है अब
नहीं जाऊँगी पास इनके.
....
इन जिदों की मनमानी
अपनी हर बात को पूरा करवाना
बहुत हुआ
कुछ समय पश्‍चात्
उस अँधेरे कमरे से आवाज आती है
मेरा कुसूर तो बताओ
मैं हथेलियाँ रखती कानों पे
पर क्‍या होता
आवाज़ तो मन के भीतर से थी
कुछ ताक़तें
न हीं क़ैद होती है न भयभीत
उन्‍हें लाख अँधेरे कमरे में रख लो
वो हौसले की मशाल बनकर उभरती हैं
जि़द भी एक ऐसी ताक़त है
जो ठान लेती है एक बार
उसे पूरा करके ही दम़ लेती है
फिर उसकी शक्‍़ल में
चाहे मुहब्‍बत हो या नफ़रत
....


शनिवार, 9 मई 2015

सिर्फ माँ ही !!!









माँ ने नहीं पढ़े होते
नियम क़ायदे
ना ही ली होती है डिग्री
कोई कानून की
फिर भी हर लम्‍हा सज़ग रहती है
अपने बच्‍चों के अधिकारों के प्रति
लड़ती है जरूरत पड़ने पर
बिना किसी हथियार के
करती है बचाव सदा
खुद वार सहकर भी !
....
माँ के लिये एक समान होती हैं
उसकी सभी संताने
किसी एक से कम
किसी एक से ज्‍यादा
कभी भी प्‍यार नहीं कर पाती वह
ये न्‍याय वो कोई तुला से नहीं
बल्कि करती है दिल से
ममता की परख
बच्‍चे कई बार करते हैं !!
...
कसौटियों पर रख ये भी कहते हैं
हमें कम तुम्‍हें ज्‍यादा चाहती है माँ
कहकर आपस में जब झगड़ते हैं
तो उन झगड़ों को वो अक्‍़सर
एक सहज सी मुस्‍कान से मिटा देती है
और सब लग जाते हैं गले
ऐसा न्‍याय सिर्फ माँ ही कर सकती है !!!

...